बचपन से ही हम एक सूत्र सुनते आ रहे हैं, और वह है – “चिंता, चिता के समान है।“ अनावश्यक चिंता करेंगे तो तनाव बढ़ेगा, तनाव बढ़ेगा तो खान-पान अस्त-व्यस्त होगा, और शरीर में भिन्न-भिन्न बीमारियों को घर करने का मौका मिलेगा। आज हर डाक्टर हमें तनाव के विरुद्ध चेतावनी देता है और तनाव से बचने के लिए योग सहित तरह-तरह के उपाय सुझाए जाते हैं। चिंता एक मानसिक स्थिति है और इससे उबरने के लिए विशेष प्रयत्न अथवा काउंसलिंग की आवश्यकता होती है। पर, कई ऐसी अन्य आदतें भी हैं जिनके कारण हम अपना स्वास्थ्य खुद ही खराब करते हैं और थोड़ी-सी सावधानी से हम बहुत सी बीमारियों से बच सकते हैं।
आज मोबाइल फोन हमारे जीवन का अहम हिस्सा बन गया है। स्मार्टफोन की सुविधाओं ने हमारे जीवन में क्रांति ही ला दी है, परंतु मोबाइल फोन के अत्यधिक प्रयोग ने कई समस्याएं भी खड़ी की हैं। एसएमएस, सोशल मीडिया, गेम्स और म्यूजि़क की सुविधा ने स्थिति को और भी जटिल बना दिया है। इन सुविधाओं ने जहां मोबाइल फोन पर हमारी निर्भरता को बढ़ाया है, वहीं कई समस्याएं भी पैदा की हैं।
ज्य़ादा एसएमएस करने वाले लोगों के हाथों की उंगलियों में जकड़न अथवा दर्द की शिकायत हो सकती है, हाथ खाली न होने पर गर्दन टेढ़ी करके फोन सुनने पर अथवा मोबाइल फोन पर गेम खेलने के लिए सदैव गर्दन झुकाए रहने पर सर्वाइकल की समस्या हो सकती है और ईयर-फोन से लगातार संगीत सुनने पर बहरेपन की शिकायत हो सकती है।
एक ताज़ा अध्ययन में पाया गया है कि ईयर-फोन से लगातार संगीत सुनना इतना ही खतरनाक है जितना जेट विमान के
पिज़ा, बर्गर, नूडल्स आदि सुविधाजनक भोज्य पदार्थ हैं और राह चलते या सफर में या जल्दी होने पर इन्हें तुरत-फुरत मंगवाया और खाया जा सकता है लेकिन इनसे मोटापे की शिकायतें बढ़ी हैं। तला हुआ अथवा गरिष्ठ भोजन हमारे शरीर में चर्बी बढ़ाता है और उससे सेहत के बजाए मोटापा बढ़ता है। आज अमेरिका में 70 प्रतिशत लोग, मैं दोहराता हूं, 70 प्रतिशत लोग मोटापे से पीड़ित हैं। हम भारतीय पर पश्चिम की नकल में उन बुराइयों को अनदेखा कर रहे हैं, जो पश्चिमी देशों में रोग बन कर उभरे हैं। यूं भी शरीर की ज्य़ादातर बीमारियां पेट से पैदा होती हैं, यानी, हमारा खान-पान गलत हो तो हम कई बीमारियों के शिकार हो सकते हैं।
पीढ़ियों से चले आ रहे विश्वास भी हमारे जीवन में अहम रोल अदा करते हैं और अक्सर हम बिना सोचे-समझे कुछ मान्यताओं को निभाते रह जाते हैं जिनका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं होता। भारतवर्ष में सवेरे-सवेरे खाली पेट पानी पीना बहुत स्वास्थ्यकर माना गया है परंतु विभिन्न अध्ययनों से यह सिद्ध हो चुका है कि काला मोतिया की शिकायत वाले लोगों के लिए यह आदत हानिकारक है क्योंकि इससे उनके आंखों की नाड़ियों में दबाव बढ़ जाता है जो उनके लिए पीड़ादायक है। वस्तुत: काला मोतिया से पीड़ित लोगों को बड़ी मात्रा में तरल पदार्थ का सेवन ही हानिकारक है। वैसे ही जैसे दूध स्वास्थ्यकर है लेकिन पीलिया रोग से पीड़ित व्यक्ति के लिए दूध का सेवन वर्जित है।
इसी तरह आंखों पर ताज़े पानी के छींटे देने की परंपरा है। हमारे देश में जनसंख्या का एक बहुत बड़ा भाग कस्बों और गांवों में रहता है और आज भी हमारे लिए नदियां और पोखर जल का प्रमुख स्रोत हैं। समस्या सिर्फ इतनी है कि इन नदियों अथवा पोखरों का जल यदि प्रदूषित हो तो उनसे आंखें धोने पर आंखों को लाभ के बजाए हानि ही होती है।
गर्मियों में प्यास लगने पर, सफर में रहते हुए और मेहमान नवाज़ी निभाने के लिए हम अक्सर शीतल पेय के रूप में कार्बोनेटेड सोडा यानी साफ्ट ड्रिंक्स का प्रयोग करते हैं। साफ्ट ड्रिंक के अत्यधिक प्रयोग से दांतों का क्षय होता है। हम दूध, लस्सी, ताज़े नींबू अथवा नारियल पानी तथा फलों के ताज़े रस के बजाए साफ्ट ड्रिंक को प्राथमिकता देते हैं क्योंकि वह न केवल सुविधाजनक है बल्कि फैशनेबल भी है, परंतु हम यह भूल जाते हैं कि साफ्ट ड्रिंक का अत्यधिक प्रयोग स्वास्थ्यकर नहीं है।
हमारे देश में सुबह-सवेरे सूर्य को अध्र्य देते हुए सूर्य नमस्कार की पुरानी परंपरा है और बहुत से लोग जल का पात्र सिर से ऊपर ले जाकर जल का अर्ध्य देते हुए सूर्य की ओर देखते हैं और यह विश्वास करते हैं कि इससे आंखों की रोशनी तेज़ होती है। दरअसल, यह विज्ञान-सम्मत नहीं है और सूर्य नमस्कार करते हुए सूर्य की ओर देखने से आंखों को स्थाई हानि हो सकती है। वस्तुत: हमारे शास्त्र भी सूर्य नमस्कार में जल के पात्र को सिर के ऊपर उठाकर सूर्य की ओर देखते हुए अर्ध्य देने का समर्थन नहीं करते हैं। सूर्य नमस्कार की शास्त्र सम्मत पद्धति यही है कि अर्ध्य देते समय आंखें बंद रखी जाएं। सूर्य की ओर खुली आंखों से नहीं देखना चाहिए क्योंकि यह आंखों के लिए खतरनाक हो सकता है।
We can live a happy and prosperous life by being aware about health
छोटी-छोटी बातें हमारे स्वास्थ्य की रक्षा में अहम भूमिका निभा सकती हैं। सही ज्ञान के अभाव में सिर्फ पुराने विश्वासों पर चलते रहना या नई अस्वास्थ्यकर आदतें अपना लेना सेहत के लिए अच्छा नहीं होता। गलत तरीके से मोबाइल फोन का प्रयोग अथवा सूर्य नमस्कार दोनों की हमारे लिए हानिकारक हैं। स्वास्थ्य के बारे में जागरूक रहकर हम सुखी और समृद्ध जीवन जी सकते हैं और जीवन के उपहारों का आनंद उठा सकते हैं वरना स्वास्थ्य खराब कर लेने पर वही नियामतें हमारे लिए दूभर हो जाती हैं। पहले जहां हम ठूंस-ठूंस कर खाने के आदी होते हैं, वहीं उम्र के एक पड़ाव के बाद खान-पान पर ऐसी मनाही हो जाती है कि हमें लगता है कि दुनिया ही छिन गई। प्रौढ़ावस्था में जब व्यक्ति सफलता के सोपान चढ़ रहा होता है, स्वास्थ्य की गड़बड़ियां उसकी खुशियां छीन लेती हैं। इससे बचने का एक ही तरीका है कि हम खान-पान की सही आदतों को अपनाएं, स्वास्थ्यकर व्यायाम करें और चिंता से दूर रहें ताकि हम स्वस्थ, खुशहाल और समृद्ध जीवन का आनंद ले सकें।
पी.के. खुराना
लेखक एक हैप्पीनेस गुरू और मोटिवेशनल स्पीकर हैं।
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