अभी हाल ही में मोदी जी ने वाराणसी दौरे के समय अपनी सरकार द्वारा लाए कृषि कानूनों पर बात रखते हुए वाराणसी से अलग होकर बने चंदौली जनपद के किसानों द्वारा काला चावल प्रजाति के चावल की खेती के अनुभव (Experiences of rice cultivation of black rice species) बताते हुए कहा कि इसके निर्यात से चंदौली के किसान मालामाल हो गए. पीएम मोदी के दावे को जमीनी हकीकत खारिज करती है.
प्रदेश सरकार ने जब वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट की बात शुरू की तो चंदौली जनपद में शुगर फ्री चावल के नाम पर चाको हाओ यानि काला चावल (Black rice) की खेती शुरू करा दी गयी। इस काले चावल की खेती में और विपणन और प्रचार प्रसार में सरकार की कोई प्रत्यक्ष भूमिका नहीं है। इसके लिए एक गैर सरकारी संगठन चंदौली काला चावल समिति बनाई गई है जो इसे बेचने पैदा करने से जुड़ी समस्याओं को हल करने में लगी है।
सन 2018 में करीब 30 किसानों ने इसकी खेती की शुरूआत की, उन्हें काफी महंगे दर
कृषि विभाग के अनुसार 2018 में 30 किसान 10 हेक्टेयर तो सन् 2019 में 400 किसान 250 हेक्टेयर तो सन् 2020 मे 1000 किसानों ने काला चावल वाले धान की खेती (Black Rice Paddy Cultivation) की है। अनुमानतः सन् 2019 में 7500 कुन्तल धान पैदा हुआ जिसमें से मात्र 800 कुन्तल धान सुखवीर एग्रो गाजीपुर ने रूपया 85/-प्रति किलो की दर से खरीद किया है। बाकी चावल किसानों ने खुद ही उपयोग किया, जिसे निर्यातक बताया जा रहा है वह भी इस साल खरीदने में रूचि नहीं ले रहे हैं। उनके पास आज भी 6700 कुन्तल धान है जो बर्बाद हो रहा है।
प्रधान मंत्री मोदी के वाराणसी दौरे के दौरान काला चावल की तारीफ के बाद अधिकारियों द्वारा बैठकों का दौर शुरू है। काले चावल के भविष्य को लेकर इसके उत्पादक बहुत आशान्वित नहीं दिख रहे. वहीं समिति के अध्यक्ष बड़े ग्राहक न होने की बात स्वीकार करते हैं। जिसकी तलाश समिति और इसके प्रमोटर पिछले तीन सालों से कर रहे हैं। काला चावल का उत्पादन जिले में खरीददार के अभाव में कभी भी बंद हो सकता है, ऐसा इसे पैदा करने वाले किसानों का कहना है। वैसे इसकी खासियत के तौर भारतीय चावल अनुसन्धान हैदराबाद की रिपोर्ट के मुताबिक जिंक की मात्रा जहां सामान्य चावल में 8.5 पीपीएम काला चावल में 9.8 पीपीएम वही पूर्व में पैदा होने वाले काला नमक (धान की एक किस्म) में 14.3 पीपीएम तो आइरन काला चावल में 9.8 पीपीएम काला नमक में 7.7 पीपीएम पायी जाती है।
धमेन्द्र सिंह
लेखक खुद किसान हैं और चंदौली जनपद में अधिवक्ता हैं, साथ ही मजदूर किसान मंच के जरिये किसानों को कारपोरेट परस्त नीतियों के खिलाफ संगठित कर रहे हैं।