Hastakshep.com-समाचार-आंध्र प्रदेश-aandhr-prdesh-गुंटूर-gunttuur-ग्रीनफील्ड कैपिटल-griinphiildd-kaipittl-चंद्रबाबू नायडू-cndrbaabuu-naaydduu-नंदीग्राम की डायरी-nndiigraam-kii-ddaayrii-लैंड पुलिंग स्कीम-laindd-puling-skiim-विजयवाड़ा-vijyvaaddaa

नंदीग्राम की डायरी के लेखक और यायावर प्रकृति के पत्रकार पुष्पराज हाल ही में विजयवाड़ा और गुंटूर की लंबी यात्रा से वापिस लौटे हैं। आंध्र प्रदेश की नयी राजधानी (New capital of Andhra Pradesh) बनाने को लेकर किस तरह किसानों की जमीन की लूट चंद्रबाबू नायडू की सरकार (Chandrababu Naidu's government) कर रही है, उस पर पुष्पराज ने एक लंबी रिपोर्ट समकालीन तीसरी दुनिया में लिखी है। हम यहां उस लंबी रिपोर्ट को चार किस्तों में प्रकाशित कर रहे हैं। सभी किस्तें अवश्य पढ़ें और मित्रों के साथ शेयर करके उन्हें भी पढ़वाएं।

-संपादक "हस्तक्षेप"

लैंड पुलिंग स्कीम-फार्मर्स किलिंग स्कीम -2

आंखों से आंसू की बजाय लहू टपकने लगेगा विजयवाड़ा-गुंटूर इलाके की दर्दनाक दास्तां लिखते हुए

आंध्र प्रदेश सरकार की प्रस्तावित राजधानी की परियोजना को जानने - समझने, दस्तावेजों को संकलित करने और नीतिगत अन्वेषण में आप जितने तल्लीन होंगे, आप उतने अधिक उलझते जायेंगे। विजयवाड़ा-गुंटूर इलाके की दर्दनाक दास्तां लिखते हुए अगर आपकी आंखों से आंसू की बजाय लहू टपकने लगे और आप अपने हाथों में लाल -लाल लहू महसूस कर रहे हों तो इस असहायता की स्थिति में क्या उन बेजुबान किसानों से आप अपना मुंह मोड़ लेंगे?

हरसूद, मणिबेली या टिहड़ी के उजड़ने से ज्यादा भयानक कारूणिक कथा गुंटूर इलाके के उजाड़ की है। यह रचनात्मक उपराध बोध का मसला है कि आप उनके उजाड़ने के नीति विरूद्ध साजिशों को समझते ही रह गये और उनका जबरिया जमीन हड़प अभियान पूरा भी हो गया। आप किस तरह उस दृश्य का रूपांकन करेंगे, जिसमें रक्त का एक कतरा भी ना गिरा और 50 हजार एकड़ जमीन पर सरकार का कब्जा हो गया। यह एक चुनी हुई सरकार का अश्वमेध यज्ञ है, जिसे नागरिकों के साथ सरकार के प्रेमालाप की तरह पेश किया जा रहा है। कृष्णा नदी शोक-संतप्त आंसुओं की नदी में परिणत हो गयी तो बुरा क्या है।

राष्ट्रवादी विकास का मोक्ष शायद इसी नदी में तर्पण करने से प्राप्त हो जाये?

पहली जनवरी को आंध्र सरकार ने सी० आर० डी० ए० एक्ट के तहत लैंड पुलिंग स्कीम का गजट जारी किया तो 5 जनवरी को गुंटूर के किसानों ने एन० ए० पी० एम० के साथ होकर हैदराबार में राउंड टेबल सेमिनार आयोजित किया। इस सेमिनार में चर्चित पीपुल्स आई० ए० एस० के० बी० सक्सेना, भूख के अधिकार मामलों के सुप्रीम कोर्ट में आयुक्त हर्ष मंदर, पूर्व चुनाव आयुक्त जे० एम० लिंगदोह, न्यायमूर्ति लक्ष्मण रेड्डी, अ० प्रा० पुलिस महानिरीक्षक हनुमंथ रेड्डी, हंस इंडिया के संपादक नागेश्वर राव, समाजवादी नेता रावेला सोमैय्या, वरिष्ठ पत्रकार टंकसाल अशोक, पूर्व मंत्री व सांसद वड्डे शोभनाद्रीसवारा राव, आई० पी० एस० रहे सी० अंजनेया रेड्डी, वैज्ञानिक डॉ० बाबू राव, पोस्को आंदोलन के नेता प्रफुल्ल सामांतर, एम० जी० देवसहायम, कृषक नेता अनुमोलू वेंकटेश गांधी, एन० बी० भास्कर राव, रामकृष्णन राजू सहित आंध्र प्रदेश के सौ से ज्यादा सामाजिक कार्यकर्ता मौजूद थे।

कैपिटल सिटी प्रोजेक्ट का गजट जारी होने के चौथे दिन उपरांत आयोजित इस सेमिनार में देवसहायम ने ‘ग्रीनफील्ड कैपिटल सिटी’ की कमियों से हमें वाकिफ कराया।

मुझे सेमिनार के बाद अखबारों और स्थानीय चैनलों से ज्यादा निराशा नहीं हुई। सरकार पक्षधरीय मीडिया ने किसान पक्षधरीय होने की हिम्मत नहीं जुटायी। स्थानीय व राष्ट्रीय मीडिया समूह के तेलुगू और अंग्रेजी के जिन समाचार पत्रों ने कैपिटल सिटी एक्ट जारी होने से पहले प्रस्तावित योजना की कमियों को प्रकाश में लाने की भूमिका निभायी थी, वे सभी कैपिटल-सिटी सिंगापुर के अभिनंदन में पलक-पांवड़े बिछाने में लग गये।

विकास का स्वाभाविक स्वरूप कैसा होता है, देखना हो तो गुंटूर की सैर करिये।

गुंटूर इलाके के किसान अनुमोलू वेंकटेश गांधी अपनी एक महंगी गाड़ी को खुद ड्राइव करते हुए हैदराबाद से विजयवाड़ा की तरफ बढ़ रहे हैं। हैदराबाद से विजयवाड़ा की दूरी 325 कि० मी० से ज्यादा है। हमारे साथ सफर कर रहे दलित कृषक का नाम क्रांति है। मैंने पूछा-क्रांति जी क्या विजयवाड़ा-गुंटूर के किसान अपनी खेती बचाने के लिए क्रांति करना चाहेंगे।

क्रांति ने कहा-क्रांति की जरूरत नहीं है। मुझे देर से समझ आयी कि जहां ‘क्रांति’ और ‘संघर्ष’ वर्जित हो चुके हों, वहां ये शब्द अब कर्णप्रिय नहीं लगते हैं।

कहीं-कहीं सड़कें के मध्य मंदिर खड़े हैं। कहीं किसी व्यापारिक प्रतिष्ठान को अतिक्रमण के बुल्डोजर से रोकने के लिए सामने भगवान को खड़ा कर दिया गया है। विवेकानंद की कई भव्य प्रतिमाएँ देखकर बात समझ में आयी कि विवेकानंद का विवेक जहां जाकर सिमट गया, भारत उससे आगे सोच नहीं पा रहा है। हमारे मुल्क के मार्क्स - लेनिन तो गांधी और विवेकानंद ही हैं।

विजयवाड़ा में वकालत खाना के समक्ष एक स्त्री की प्रतिमा खड़ी है। हाथों में तराजू है और आंखों पर काली पट्टी चढ़ी है। एक अधिवक्ता ने कहा - ये न्याय की देवी हैं। न्याय की देवी अंधी होती है। देवी न्याय की हों या स्वतंत्रता की, मैंने उन्हे ठीक से देख लेने की कोशिश की।

विजयवाड़ा से गुंटूर की दूरी 32 कि०मी० है। न्यू कैपिटल सिटी के लिए प्रथम चरण में 52 हजार एकड़ जमीन का अधिग्रहण किया जायेगा। सी० आर० डी० ए० ने अभी 45,625 एकड़ जमीन के अधिग्रहण की अधिसूचना जारी कर दी है। अधिग्रहण के प्रथम चरण में गुंटुंर और कृष्णा जिला के गांव में पुलिस की गश्ती बहुत तेज कर दी गयी है इसलिए हर अजनबी को संदेह की दृष्टि से देखा जा रहा है। मानवाधिकार संगठनों की एक तथ्य - अन्वेषी समूह में मुझे साथ कर लिया गया है। गुंटुंर जिला के उन्दावल्ली गांव के किसान पुलिस के आतंक की कहानी सुनाते हैं। इस गांव के कुछ युवा किसान ‘लैंड पुलिंग स्कीम’ का मतलब समझने के लिए किसी सामुदायिक भवन में विमर्श कर रहे थे तो तेलुगू देशम के कार्यकर्ताओं ने पुलिस को सूचना दी और पुलिस ने छः किसानों के विरूद्ध कल ही शांति भंग करने का मुकदमा दर्ज किया है। इस गांव के लोग लिल्ली और गुलाब की पैदावार करते हैं।

शांभा रेड्डी 55 वर्षीय कृषक हैं। इनका नाम पुलिस के मुकदमे में दर्ज हो गया है। शांभा रेड्डी भू-अधिग्रहण और लैंड पुलिंग का वास्तविक अर्थ समझ गये हैं। गुलाब पैदा करने वाले कृषक दुखी और आतंकित हैं तो यह किसे अच्छा लगेगा। किसानों की घर-गृहस्थी में आर्थिक पीड़ा की कोई जगह नहीं है। एक छोटे ट्रक पर काजू - किशमिश लदा है, माईक से घर-घर खबर पहुंच रही है। सेव, संतरे भी इसी तरह बिक रहे हैं। गुलाब पैदा करने वाले किसान काजू - किशमिश, सेव, संतरे खा रहे हैं, यह सब सुखद है।

80 वर्षीय कृषक जी० शांभा शिवराव बताते हैं, 5 जनवरी को गुंटूर के 9 गांवों के किसानों ने राज्यपाल से मिलकर “लैंड-पुलिंग स्कीम” के तहत जबरन भूमि-अधिग्रहण के खिलाफ स्मार पत्र दिया है। जिसमें इस गांव के किसान शामिल थे। कल्लन शंभा रेड्डी ने अपने मोबाइल में पुलिस की आवाज को टेप कर लिया है। पुलिस गांव में घुसकर लोगों को आतंकित कर रही है। लोग ना ही ठीक से सो पा रहे हैं, ना ही व्यवस्थित खेती-बाड़ी कर पा रहे हैं। गेंदा-गुलाब के खेत सुंदर हैं। अनुमोलू गांधी के खेत में केला, प्याज, केला - कडै़ला की मिश्रित फसल देखकर आंखे चमक उठी।

आंध्र प्रदेश में तेलुगू मानस कृषक खेतों में कृषि कार्य के लिए बनाये गये डेरे को ‘गुडीसे’ कहते हैं। झोंपड़ीनुमा गुडीसे में आग किसने लगायी। रायपुरी में सड़क से गुजरते हुए दो गुडीसे जले हुए हैं, गुडीसे के भीतर किसान ने खाद और कृषि - उपकरण सुरक्षित रखे थे। किसान का ठिकाना, सारा समान जल गया।  नीम का पेड़ किसान को कड़ी धूप में छांव और सुकून देता होगा। छांव और सुकून से किसको छल हो गया। आग तो नीम के गाछ में ही लगायी थी पर छांव और सुकून भी जल गये।

अब हम जल्द ही गुंटूर जिला सें सफर करते हुए कृष्णा जिला के कृष्णा सागर नदी के किनारे के खेतिहर इलाकों से गुजर रहे हैं। शिवराम कृष्णा रेड्डी अमरीका से अपना रोजगार समेटकर वापस लौट आयें हैं और अपने गांव में खेती में मगन हैं। मल्लिकार्जुन रेड्डी के पास 10 एकड़ में केले का बगान है। रेड्डी का गुडीसे किसने जलाया। गुडीसे राख की ढेर में तब्दील हो गया है। हैंडपंप का हैंडल टूटा है। पुलिस कह रही है कि किसानों ने सरकार को बदनाम करने के लिए खुद ही अपने - अपने गुडीसे में आग लगा ली है। पुलिस हमलोगों के पीठ -पीछे क्यों आ रही है? अधिवक्ता शेषगिरी से पुलिस पड़ताल कर रही है। गढ़डों से होकर गुजरती कच्ची सड़कों को पाटा जा रहा है। सड़क पर गिट्टियां बिछायी जा रही है और टैंकर से पानी बहाकर सड़क को धोया जा रहा है। रातोंरात टूटी-फूटी, उबड़-खाबड़ राहों को पक्की सड़क में बदल दिया जायेगा ताकि कैपिटल सिटी के स्वप्नों को चोट ना लगे। केले के खेत के पास प्याज की बोरियां भरी जा रही हैं। केले ओर प्याज की खुशबू साथ होकर जिस तरह का अहसास दिला रही है। इसका इजहार करने से बेहतर है कि सिर्फ महसूस किया जाये।

पेनमाका गांव के पानाकला रेड्डी का गुडीसे पक्के का है। छत पर आग लगायी गयी है। छत पर कृषि कार्य के लिए रखे सौ से ज्यादा बांस जला दिये गये। सिंचाई के लिए रखे गये पटवन के प्लास्टिक पाईप जल कर राख हो गये हैं। अपनी सहूलियत से हम कभी - कभी उजले - लाल फूल देख ही लेते हैं। पुलिस साथ-साथ चल रही हो तो तेलुगू भाषी इलाके में एक अजनबी (हिन्दी भाषी) के लिए सतर्कता जरूरी है। पुलिस ने अभी हमारी गाड़ी में साथ चल रहे एक - एक लोगों के बारे में जानकारी ली है। किसानों के अड्डों में आग लगाने वालों के बारे में नहीं जानने वाली पुलिस दिन के उजाले में ज्यादा सख्त दिख रही है। हमलोग अभी कृष्णा नदी और प्रकाशम बैराज के इलाके से गुजर रहे हैं।

लिंगायपालम में एक किसान के केला बगान के कोने में खड़े नलकूप के पास राख के ढेर से नुकसान का आकलन किया जा रहा है। युवा कृषक का नाम मधु है। खेती के जरूरी औजार खाद, बीज, कीट नाशक दवा, स्प्रे मशीन के साथ-साथ किसान के कपड़े, खाने के बर्तन तक जल चुके हैं। मधु के पास 25 एकड़ की खेती है। 20 एकड़ की खेती पट्टे की है। हमने किसानों के जले हुए गुडीसे अपनी आंखो से देखने के बाद जानने की कोशिश की कि हकीकत में आग किसने लगायी? 13 दिसंबर, 16 दिसंबर और 28 दिसंबर की देर रातों में आगजनी की ये घटनाऐं हुईं। 13 दिसंबर की रात पहली बार देर अंधेरी रात लिंगायापालम और तारायपालम में एक-एक किसानों के गुडीसे जलाये गये। इस आगलगी में एक हजार से ज्यादा बांस जल गये। 16 दिसंबर को बांस, गुडीसे की छत और 2 डीजल पंप में आग लगायी गयी। 28 दिसंबर की रात रामपुरी, लिंगायापालम, मंदरम, पेनमाका, वंडवल्ली में कुल 10 गुडीसे जला दिये गये। अनुमोलू गांधी के आकलन के अनुसार अगलगी में लगभग 10 लाख  से ज्यादा की क्षति हुई है।

29 दिसंबर 2014 की सुबह मीडिया ने तस्वीरें ली। कृषि मंत्री पोल्लाराव ने क्षेत्र का भ्रमण किया। अचानक पुलिस की गश्त बहुत ज्यादा बढ़ा दी गयी। गृहमंत्री और मुख्यमंत्री का संयुक्त बयान आया कि यह अगलगी विपक्ष वाई० एस० आर० कांग्रेस के लोगों ने किसानों को सरकार के विरूद्ध भड़काने के लिए करायी गयी है। सरकार अगर अगलगी के पीछे विपक्ष को जिम्मेदार मानती है तो वाई० एस० आर० कांग्रेस के किसी स्थानीय नेता की पहचान कर उसके विरूद्ध पुलिस ने प्राथमिकी क्यों नहीं दर्ज करायी। किसानों की आम समझ है कि पुलिस और सत्ताधारी तेलुगू देशम ने किसानों को डराने और भूअधिग्रहण के विरूद्ध गोलबंदी से रोकने के लिए ऐसा किया है।

जारी.....

गुंटूर-विजयवाड़ा से लौटकर - पुष्पराज

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