और कितने टोबा टेकसिंह
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ज़मीन बँट चुकी
मुल्क का बँटवारा पूरा हुआ
मंटो तुमनें लिखा
'उधर खरदार तारों के पीछे हिंदुस्तान था
इधर वैसे ही तारों के पीछे पाकिस्तान
दरमियान में ज़मीन के उस टुकड़े पर जिसका कोई नाम नहीं था
टोबा टेक सिंह पड़ा था'
टोबा टेकसिंह याने बिशन सिंह
गाँव टोबा टेकसिंह का पागल किसान
पड़ा है आज भी वहीं
मुल्कों के दरमियाँ
नो मेन्स लेंड
ढूँढ रहा अपनी पहचान
सरहदों पार
देश और बँटे
सूबेदारो के इलाके
अपनी सरहदें अपने कानून
मजहबी सियासी बँटवारे
ढेरों नो मेन्स लेंड
कई और टोबा टेकसिंह
ढूँढ रहे अपनी अपनी बेटीयां
सब मर्दों की नज़र चढ़ी
रूपकौर अायशा
माई मुख्तार निर्भया
अपनी ज़मीन अपना आसमान
अजीबोग़रीब आवाज़ में बड़बडा रहे सब
'औ पड़ दि गड़ गड़ अनैक्स दि बेध्यानां दि मुँग दि दाल आफ दी लालटेन'
'हिंदुस्तान पाकिस्तान दुर फिटे मुंह'
'टोबा' तो सचमुच पागल था
ये राजनैतिक दिमाग़ी मरीज़
बाँहें उठा रहे
गड्डमड्ड आवाज़ों में चीखते
लहरा रहे परचम
मुल्क भर में चिल्ला रहे
'औ पड़ दि गड़ गड़ अनैक्स दि बेध्यानां दि मुँग दी दाल आफ नफरत फ़िरक़ापरस्ती'
( टोबा टेकसिंह : साहित्य को गौरवान्वित करने वाली सआदत हसन मंटो की विशेष कहानी )
।।जसबीर चावला।।