Hastakshep.com-Opinion-अंबेडकर जयंती-anbeddkr-jyntii-अंबेडकर-anbeddkr-डॉ. अंबेडकर-ddon-anbeddkr-बाबा साहेब अंबेडकर-baabaa-saaheb-anbeddkr-बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर-baabaasaaheb-bhiimraav-anbeddkr

The Sangh agenda of character assassination of Dr Ambedkar is quite old.

एक तरफ अंबेडकर-पेरियार स्टडी सर्किल पर प्रतिबंध (Ambedkar-Periyar Study Circle banned) लगाया जा रहा है तो दूसरी तरफ डॉ. अंबेडकर की जयंती (Dr. Ambedkar Jayanti) मनाने की सरकारी घोषणा की जा रही है। दरअसल संघ परिवार की दत्तक मोदी सरकार को डॉ. अंबेडकर के असली विचारों से डर लगता है। संघ परिवार डॉ. अंबेडकर की चरित्र हत्या (Dr. Ambedkar's character assassination) में लगातार लगा हुआ है। इस अभियान में इधर तेजी आई है लेकिन यह अभियान है पुराना। 6 फरवरी, 2003 को प्रकाशित प्रो. शम्सुल इस्लाम का यह आलेख संघ परिवार के मंसूबों को समझने के लिए आज भी प्रासंगिक है

अब बारी अंबेडकर की-डॉ. अंबेडकर की चरित्र हत्या

आरएसएस से जुड़े लोगों का यह अभियान लगातार चल रहा है कि वे मुसलमान विरोधी थे और हिंदुत्ववादी राजनीति के महान समर्थक थे। डाॅ. अंबेडकर की विरासत के साथ इससे बड़ा खिलवाड़ नहीं हो सकता।

इतिहास के पुनर्लेखन का काम जोर-शोर से चल रहा है। इतिहास के इस पुनर्लेखन को इतिहास का गला घोंटना कहना ज्यादा सही होगा क्योंकि संघ टोली द्वारा इतिहास के नाम पर जो परोसा जा रहा है उसमें सबसे ज्यादा दुर्गति जिसकी हुई है, वह इतिहास की सच्चाईयां और तथ्य ही हैं। अभी तक इस ‘रचना कर्म’ और ‘सृजनात्मकता’ के शिकार सरदार पटेल और महात्मा गांधी ही हुए थे लेकिन अब डाॅ. भीमराव अंबेडकर की बारी भी आ गई है। महात्मा गांधी जिनकी हत्या हिंदुत्ववादी राजनीति द्वारा फैलाए गए जहर के परिणाम स्वरूप हुई थी और सरदार पटेल जिनके स्वतंत्र भारत के पहले गृहमंत्री रहते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर प्रतिबंध लगाया गया

था उनको गोद लेने से संतुष्ट न रहकर संघ टोली अब डाॅ. अंबेडकर के हिंदुत्ववादी होने का ऐलान कर चुकी है। उत्तर प्रदेश के भाजपा अध्यक्ष विनय कटियार तो उत्तर प्रदेश में एक अभियान लेकर निकले हुए हैं जिसमें लोगों को बताया जा रहा है कि भारत के बारे में डाॅ. अंबेडकर और आरएसएस संस्थापक डाॅ. हेडगेवार के एक जैसे विचार थे। वह खुलेआम घोषणा कर रहे हैं कि डाॅ. अंबेडकर हिंदुवादी थे।

आरएसएस से जुड़े नेता व संस्थाएं डाॅ. अंबेडकर को इस ऐतिहासिक सच्चाई के बावजूद कि उन्होंने हिंदू धर्म त्याग कर बौद्ध धर्म स्वीकार कर लिया था, डाॅ. अंबेडकर को हिंदूवादी राजनीति की महान विभूति बता रहे हैं। ऐतिहासिक तथ्यों के साथ इतनी भयानक तोड़-फोड़ केवल स्वयंसेवक संघ ही कर सकता है।

डाॅ. अंबेडकर भारत में हिंदू-मुसलमान समस्या या हिंदू और मुसलमान सांप्रदायिकताओं के बीच टकराने के बारे में क्या विचार रखते थे इस बारे में दस्तावेजों का एक बड़ा भंडार उपलब्ध है।

1940 में डाॅ. अंबेडकर ने मुबई में सक्रिय एक राजनैतिक समूह ‘इंडीपेंडेंट लेबर पार्टी’ के सदस्यों के बीच इस समस्या पर एक सार्थक बहस चलाने के उद्देश्य से एक रपट प्रस्तुत की जिसे बाद में ‘पाकिस्तान’ या ‘भारत का विभाजन’ शीर्षक से एक किताब के रूप में भी छापा गया। इस पुस्तक में डाॅ. अंबेडकर ने सांप्रदायिक समस्या पर एक ईमानदार शोधकर्ता के तौर पर वह तमाम सामग्री जमा की जो हिंदू/मुसलमान सांप्रदायिकता और कट्टरता के बारे में तथ्यात्मक जानकारी उपलब्ध कराती थी। इस पुस्तक में जिन्नाह के नेतृत्व में किस तरह से मुस्लिम सांप्रदायिकता को बढ़ावा मिला उसके बारे में पूरे घटनाक्रम का विस्तृत ब्यौरा प्रस्तुत किया गया। डाॅ. अंबेडकर ने तथ्यों की जुबानी यह तथ्य पाठकों तक पहुंचाने की कोशिश की कि मुस्लिम लीग द्वारा संचालित सांप्रदायिक राजनीति केवल देश के लिए ही नहीं बल्कि आम मुसलमानों के लिए भी बहुत हानिकारक साबित होगी।

लेकिन यह भी सच है कि डाॅ. अंबेडकर ने इसी पुस्तक में ‘हिुदुत्ववादी राजनीति’ को देश में सांप्रदायिकता का जहर फैलाने के लिए बुनियादी तौर पर जिम्मेदार माना। डाॅ. अंबेडकर ने हिंदुत्ववादी राजनीति पर अपने विचार प्रकट करते हुए साफ तौर पर लिखा, ‘अगर वास्तव में हिंदू राज बन जाता है तो निस्संदेह इस देश के लिए एक भारी खतरा उत्पन्न हो जाएगा। हिंदू कुछ भी कहें, पर हिंदुत्व स्वतंत्रता, समानता और भाईचारे के लिए एक खतरा है। इस आधार पर प्रजातंत्र के लिए यह अनुपयुक्त है। हिंदू राज को हर कीमत पर रोका जाना चाहिए।’

डाॅ. अंबेडकर का यह साफ मत था कि हिंदुत्ववादी राजनीति का संचालन आम हिंदुओं के हितों को ध्यान में रखते हुए नहीं बल्कि उच्च जाति के एक छोटे से समूह के अधिपत्य को बनाए रखने के लिए किया जा रहा है। डाॅ. अंबेडकर ने लिखा - ‘इस मुद्दे पर दो पार्टियों, अर्थात् हिंदू और मुस्लिम, दोनों में हिंदू अधिक कठोर हैं। इस बारे में ऊंची जातियों के हिंदुओं की प्रतिक्रिया जानना काफी है, क्योंकि वह की हिंदू जनता का मार्गदर्शन करते हैं और हिंदू जनमत का निर्माण करते हैं। दुर्भाग्यवश, ऊंची जातियों के हिंदू लोग नेता के रूप में बहुत घटिया होते हैं। उनके चरित्र में कोई ऐसा गुण है जिससे हिंदू आमतौर पर घोर विपत्ति में पड़ जाते हैं। उनका यह गुण इस कारण बनता है कि वह सब कुछ स्वयं हासिल करना चाहते हैं और जीवन की अच्छी चीजें दूसरों से मिल-बांटना नहीं चाहते। उनके पास शिक्षा और शक्ति या अधिकार का एकाधिकार है और शक्ति और शिक्षा से ही वह राज्य पर काबिज हो पाए हैं। उनके जीवन की आकांक्षा और लक्ष्य यही हैं कि उनका यह एकाधिकर बना रहे। अपने वर्ग का प्रभुत्व बनाए रखने में ही उनका स्वार्थ है और इसीलिए वह नीची जातियों के हिंदुओं को अधिकार या शक्ति, शिक्षा और सत्ता से वंचित रखने के लिए हर संभव उपाय अपनाते हैं। ऊंची जातियों के हिंदुओं ने नीची जातियों के हिंदुओं के बारे में अपना जो दृष्टिकोण बना रखा है उसे ही वह मुस्लिमों पर लागू करना चाहतें हैं। जो कुछ उन्होंने नीची जातियों के हिंदुओं के साथ किया है उसी तरह वह मुसलमानों को श्रेणी और सत्ता से अलग रखना चाहते हैं।’

आरएसएस से जुड़े लोगों का यह अभियान लगातार चल रहा है कि वे मुसलमान विरोधी थे और हिंदुत्ववादी राजनीति के महान समर्थक थे। डाॅ. अंबेडकर की विरासत के साथ इससे बड़ा खिलवाड़ नहीं हो सकता। डॉ. अंबेडकर सावरकर और हिंदुत्ववादी राजनीति के बारे में जो समझ रखते थे, वह भी इस पुस्तक में स्पष्ट रूप से बयान की गई है। डाॅ. अंबेडकर ने लिखा -

‘यह बात सुनने में भले ही विचित्र लगे, पर एक राष्ट्र बनाम दो राष्ट्र के प्रश्न पर सावरकर और जिन्नाह के विचार परस्पर विरोधी होने के बजाए एक दूसरे से पूरी तरह मेल खाते हैं। दोनों ही इस बात को स्वीकार करते हैं कि भारत में दो राष्ट्र हैः एक मुस्लिम राष्ट्र और एक हिंदू राष्ट्र। उनमें मतभेद केवल इस बात पर है कि इन दोनों राष्ट्रों को किन शर्तों पर एक दूसरे के साथ रहना चाहिए...सावरकर इस बात पर जोर देते हैं कि यद्यपि भारत में दो राष्ट्र हैं, परंतु हिंदुस्तान को दो भागों में एक मुसलमानों के लिए और दूसरा हिंदुओं के लिए नहीं बांटा जाएगा। ये दोनों कौमें एक ही देश में रहेंगी और एक ही संविधान के अंतर्गत रहेंगी। यह संविधान ऐसा होगा जिसमें हिंदू राष्ट्र को यह वर्चस्व मिले जिसका वह अधिकारी है और मुस्लिम राष्ट्र को हिंदू राष्ट्र के अधिनस्थ सहयोग की भावना से रहना होगा।’

डाॅ. अंबेडकर के अनुसार सावरकर का यह दृष्टिकोण तर्कसंगत नहीं माना जा सकता था। उन्होंने लिखा-

‘यदि वे (सावरकर) हिंदू राष्ट्र के लिए एक अलग कौमी वतन का दावा करते हैं, तो मुस्लिम राष्ट्र के कौमी वतन के दावे का विरोध कैसे कर सकते हैं?’

डाॅ. अंबेडकर हिंदुत्ववादी राजनीति के खतरों से अपनी इस पुस्तक में बार-बार आगाह करते हैं। उन्होंने एक जगह लिखा-

‘ब्रिटेन आक्रमक बहुसंख्यक हिंदू को सत्ता सौंपने और उसे अपना उत्तराधिकारी बनाकर अल्पसंख्यकों से अपनी इच्छानुसार निपटने को सहमति नहीं दे सकता। इससे साम्राज्यवाद का अंत नहीं होगा। इससे तो एक और साम्राज्यवाद का उदय हो जाएगा।’

संघ टोली का यह दावा कि डाॅ. अंबेडकर हिंदुत्ववादी राजनीति और हिंदू राष्ट्र के समर्थक थे एक शर्मनाक सफेद झूठ है। डाॅ. अंबेडकर हिंदू राष्ट्र और मुसलमान राष्ट्र के विचारों को दफना कर एक ऐसा देश चाहते थे जिसमें, ‘हिंदू तथा मुसलमान मिलजुल कर राजनीतिक पार्टियों का निमार्ण कर लें, जिनका आर्थिक जीर्णोद्धार तथा स्वीकृत सामाजिक कार्यक्रम हो तथा जिसके फलस्वरूप हिंदू राज अथवा मुस्लिम राज का खतरा टल सके। भारत में हिंदू-मुसलमानों की संयुक्त पार्टी की रचना कठिन नहीं है। हिंदू समाज में ऐसी बहुत सी उपजातियां हैं जिनकी आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक आवश्यकताएं वही हैं जो बहुसंख्यक मुस्लिम जातियों की हैं। अतः वे उन उच्च जातियों के हिंदुओं की अपेक्षा, जिन्होंने शताब्दियों से आम मानव अधिकारों से उन्हें वंचित कर दिया है, अपने व अपने समाज के हितों की उपलब्धियों के लिए मुसलमानों से मिलने के लिए शीघ्र तैयार हो जाएंगें’।

डाॅ. अंबेडकर के इन विचारों से यह सच्चाई बहुत स्पष्ट होकर उभर आती है कि वह एक ऐसा धर्मनिरपेक्ष भारत चाहते थे जिसमें गरीब हिंदू और मुसलमान मिलकर राज करें और एक न्यायसंगत समाज बना सकें। डाॅ. अंबेडकर की इस धर्मनिरपेक्ष विरासत के साथ खिलवाड़ और बलात्कार का सबसे शर्मनाक पहलू यह है कि उन्हें मसीहा मानने वाले और अंबेडकर के विचारों का झंडा बुलंद किए संगठनों ने इस सबके खिलाफ अपना प्रतिरोध प्रभावशाली ढंग से दर्ज नहीं कराया है। इसका मुख्य कारण यह है कि बाबा साहब अंबेडकर का दम भरने वाले संगठन उनके मूल विचारों से अनभिज्ञ हैं। संघ टोली की तो यह मजबूरी है कि वह गांधीजी, सरदार पटेल और अंबेडकर जैसी विभूतियों की गोद ले ताकि स्वतंत्रता आंदोलन से इसकी गद्दारी पर पर्दा डाल सके, लेकिन डाॅ. अंबेडकर के विचारों में विश्वास रखने वालो लोगों का उनकी विरासत से अनजान बने रहने के पीछे क्या मजबूरी है यह समझ में नहीं आता है।

शम्सुल इस्लाम

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