पूरी दुनिया में अभी भी कोरोना वायरस का प्रकोप जारी है और भारत में भी इसका ग्राफ तेज़ी से बढ़ रहा है। महामारी की आड़ में पूरी दुनिया में सरकारों में तानाशाही प्रवृत्ति का प्रकोप देखा जा सकता है, लेकिन भारत में इसका प्रकोप भी कोरोना की तरह ही ज्यादा है। भारत में सरकार ने कोरोना काल में विकास परियोजनाओं को पर्यावरण संबंधी मंज़ूरी देने के नियमों में जो बदलाव (Changes in the rules for granting environmental clearance to development projects in the Corona period) प्रस्तावित किये हैं उन्हें लेकर तमाम पर्यावरण कार्यकर्ता और पर्यावरण विशेषज्ञ आवाज़ उठा रहे हैं। इस बीच अरुणाचल की दिबांग घाटी में प्रस्तावित एक बड़े बांध को लेकर खुद सरकार की वन सलाहकार समिति ने सवाल पूछे हैं। लेकिन इस के बीच ख़बर है कि भारत के कार्बन उत्सर्जन को लेकर जिसमें रिकॉर्ड गिरावट दर्ज की गई है।
CO2 इमीशन घटा: गिरती अर्थव्यवस्था, साफ ऊर्जा का उत्पादन और कोरोना वायरस का असर, भारत का CO2 उत्सर्जन रिकॉर्ड ढलान पर है
भारत में पिछले चार दशकों में पहली बार CO2 उत्सर्जन घटा है और इसके पीछे एक बड़ी वजह है कोरोना वायरस जिसने पूरी दुनिया को आतंकित किया हुआ है। जलवायु परिवर्तन (Climate change) और ग्लोबल वार्मिंग (Global warming) से जुड़ी गतिविधियों पर नज़र रखने वाली वेबसाइट कार्बन ब्रीफ में छपे एक विश्लेषण के मुताबिक CO2 इमीशन ग्राफ में यह चार दशक की सबसे बड़ी गिरावट है।
India's economy was already running in the crisis
विश्लेषण कहता है कि भारत की अर्थव्यवस्था पहले ही मन्दी में चल रही थी और साफ ऊर्जा का प्रयोग बढ़ रहा था लेकिन जब मार्च में तालाबन्दी की गई (LockDown) तो CO2 उत्सर्जन 15% घट गया। अप्रैल में गिरावट का अनुमान (पूरे आंकड़े
CO2 के ग्राफ में यह रिकॉर्ड गिरावट 1982-83 के बाद दर्ज की गई है।
इस विश्लेषण को करने वाले दो शोधकर्ता लॉरी मिल्लीविर्ता और सुनील दहिया सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर से जुड़े हैं जिन्होंने साल 2019-20 के कार्बन उत्सर्जन का अध्ययन किया। यही वह दौर था जब भारत की अर्थव्यवस्था ढुलमुल रही तो साफ ऊर्जा क्षमता और उत्पादन बढ़ा जिससे कार्बन इमीशन में गिरावट दर्ज हो रही थी।
वित्तवर्ष 2019-20 में कुल करीब 1% की गिरावट हुई जो कि 30 मिलियन टन (3 करोड़ टन) कार्बन के बराबर है। इसी वित्त वर्ष में कोल इंडिया की कोयले की बिक्री 4.3% कम हुई लेकिन कोयले का आयात 3.2% बढ़ा यानी कोयले के इस्तेमाल में कुल 2% गिरावट हुई।
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विश्लेषण के मुताबिक, “यह गिरावट पिछले दो दशक के इतिहास में किसी भी साल में हुई अब तक की सबसे बड़ी गिरावट के रूप में दर्ज की गयी है। यह ट्रेंड मार्च महीने में उस वक्त और गहरा गया, जब कोयले की बिक्री में 10% की गिरावट दर्ज की गयी। उधर, मार्च में कोयले के आयात में 27.5% की वृद्धि देखी गयी। इसका अर्थ यह हुआ कि बिजली उत्पादन में कमी के चलते उपभोक्ताओं तक पहुंचने वाले कुल कोयले की खपत में 15% की गिरावट देखी गयी।”
बिक्री में कमी के बावजूद बढ़ गया कोयला का उत्पादन | Coal production increased despite decrease in sales
विश्लेषण के मुताबिक, “बिक्री में अभूतपूर्व कमी के बावजूद मार्च में कोयला उत्पादन में 6.5% की बढ़ोत्तरी हुई। इतना ही नहीं, कोयले की बिक्री से अधिक इसके उत्खनन में वृद्धि दर्ज की गयी। इससे स्पष्ट संकेत मिलता है कि इस कमी की मुख्य वजह मांग में भारी गिरावट है।”
कोयले और तेल जैसे ईंधनों से जुड़े संकट को रेखांकित करते हुये विश्लेषण कहता है कि यह नवीनीकरण ऊर्जा (साफ ऊर्जा) की दिशा में आगे बढ़ने का सुनहरा मौका है। इसलिये इसमें निवेश बढ़ाया जाना चाहिये। विश्लेषण हवा की बेहतर क्वॉलिटी के मद्देनज़र एयर क्वॉलिटी के मानकों में और सुधार लाने की बात भी कहता है।
(स्रोत – कार्बन कॉपी का न्यूजलैटर)