एशिया के सबसे बड़े हाइड्रो पावर डैम रिहंद बांध और पांच नदियों के बावजूद सोनभद्र न केवल प्यासा है, बल्कि केमिकल युक्त पानी पीने से समय से पहले बूढ़ा और रोगी हो रहा है। इस नक्सल प्रभावित जिले में सुरक्षा बल के जवान छह माह तक लगातार ड्यूटी नहीं कर पा रहे। पांच सौ फुट तक अंडर ग्राउंड वाटर लेबल मिल नहीं रहा है। लेकिन न तो स्थानीय सामाजिक संगठन और न ही जनप्रतिनिधि व प्रशासनिक मशीनरी इस जीवन-मरण के मुद्दे पर सरकार का ध्यान नहीं खींच पा रहे।
राबर्ट्सगंज में पेयजल की समस्या अब विकराल हो चली है। रिहंद बांध का पानी केमिकल से प्रदूषित है। यह एशिया का सबसे बड़ा हाइड्रो पावर डैम है, इसका निर्माण करते समय ही यह नीति बनी थी कि इसके पानी का प्रयोग केवल बिजली बनाने में होगा, लेकिन पानी की कमी और उसकी जीवन के लिए जरूरत की वजह से लोग इसका प्रयोग प्यास बुझाने में करने लगे हैं। पिछले महीने ही कमरी दाढ़ गांव में ये पानी पीकर ११ लोगों की मौत हो चुकी है।
यह इस इलाके का अकेला ऐसा जनपद है, जहां हिंडाल्को, हाईटेक कार्बन, एनसीएल व कनौरिया केमिकल आदि विशालकाय कंपनियों की परियोजनाएं चल रही है। ये कंपनियां चाहें तो अपने सामाजिक सरोकारों के तहत इस क्षेत्र का हुलिया बदल सकती हैं, लेकिन हकीकत यह है कि इनके दूषित जल ने नदियों की जीते जी मौत कर दी है।
रही बात नदियों की तो सोन नदी, कनहर नदी, बेलन नदी, बिजुल नदी व रेणु नदी नाम की रह गयी हैं। बेलन नदी सूखी पड़ी है। अंडर ग्राउंड वाटर लेबल पूरे जनपद पांच सौ फीट से नीचे चला गया है। चतुरा नगमा ब्लाक, घोरावल ब्लाक, रावर्टस गंज डार्क जोन में आ गए हैं। पांच सौ फुट तक तो पानी ढूंढे नहीं मिल रहा है। बिजुल नदी में थोड़ा पानी है, लेकिन कनर नदीं सूखने की स्थिति में है। रेणु में पानी तब जाता है, जब डैम को खोला जाए, जो कई साल से खोला ही नहीं गया है।
जनपद में २५ हजार के आसपास हैंडपंप हैं, जो सूखे पड़े हैं। प्रशासनिक मशीनरी हर साल शासन से बजट लेकर बोरिंग-री-बोरिंग कराती है, लेकिन कागजों पर। नगमा बांध का पानी चंदौली में निकल जाता है। अब जिले में पानी दान करने की आवाज उठने लगी है और एकाध समर्थ लोग सामने आए भी हैं। रावर्टसगंज में एक सेवाभावी सज्जन ने प्रतदिन पचास टैंकर पानी दान करने का वीणा उठाया है।
जहरीले पानी ने लोगों को बीमारी परोसना शुरू कर दिया है। तमाम मामले आए दिन सामने आ रहे हैं। ब्लाक नियौरपुर, बबनी एवं दुद्धी में फ्लोरोसिस की बीमारी फैल गयी हैं। यह लाइलाज रोग है। पांच साल पहले सरकार ने अभियान चलाकर पानी की जांच करायी थी तो तभी हैंडपंपों में फ्लोराइड की मात्रा ज्यादा निकली थी। जानकारों की मानें तो अब यह मात्रा बढ़कर दोगुनी हो चुकी है। जहां फ्लोरोसिस का रोग है, वहां के स्थानों पर मिनी फिल्टर प्लांट लगाए जा रहे हैं, लेकिन ये भी सक्सेस नहीं हैं। रखरखाव के अभाव में इनका सामान कबाड़ी चुरा ले जाते हैं। नक्सली प्रभावित क्षेत्रों में पीएसी के जवानों को खराब पानी के कारण रोग हो रहे हैं। शासन एक गोपनीय फैसले के तहत छह महीने से ज्यादा किसी बटालियन को यहां तैनात नहीं रखती है। पीएसी जवान कुछ दिन बाद ही हैजा, कोलेरा व लिवर संबंधी रोगों में जकड़ जाते हैं। हालत यह है कि लोग पलायन कर रहे हैं ।
जंगली जानवरों का हाल तो सबसे बुरा है. वे हर रोज बे मौत मर रहे हैं। कैमूर के जंगलों में पानी की कमी की वजह से जहां पानी है, जानवर चले जाते हैं तो लोग घात लगा कर उनका शिकार कर लेते हैं। ऐसा लगता है कि पानी सूखने के साथ-साथ ला एंड आर्डर व वन्य जीव संरक्षण कानून भी भौंतरा हो गया है। पानी की कमी ने जंगलराज कायम किया हुआ है। जंगलों में ही नहीं, शहर में ही बंदर पानी की कमी से मर रहे हैं। इसके बावजूद सरकारी योजनाएं अपनी गित से चल रही हैं। बोरिंग के नाम पर सैकड़ों करोड़ रुपया पानी की तह बहाया जा चुका है, लेकिन बेहाल है सोनभद्र ।
समस्या खेती-वाड़ी तक पहुंच चुकी है घोरावल इलाका धान की खेती के लिए प्रसिद्ध है, पर यह अब नाममात्र को हो रही है।
शालिनी द्विवेदी
कानपुर