रणधीर सिंह सुमन
प्रधानमंत्री ने कहा,
’’मेरे बचपन में लोग कहते थे कि मोदी जी जरा चाय कड़क बनाना। मुझे तो बचपन से आदत है। मैंने निर्णय कड़क लिया। गरीब को कड़क चाय भाती है लेकिन अमीर का मुंह बिगड़ जाता है।’’
गाजीपुर की सभा को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री की यह भाषा (Prime Minister's language) थी।
वह भूल गए कि अभी 2014 के लोकसभा चुनाव (2014 Lok Sabha Elections) में वह 15 हज़ार करोड़ रुपये कॉर्पोरेट सेक्टर से काले धन को प्राप्त कर सत्तारूढ़ हुए थे।
प्रधानमंत्री बड़ी ख़ूबसूरती से अपनी कमजोरियों को छिपाने के लिए देशभक्ति और आतंकवाद से हर मुद्दे को जोड़ने का काम करते हैं।
85 % बड़े नोटों को वापस ले लेने के बाद राष्ट्रीयकृत बैंकों में जनता इन रुपयों को अपने खातों में जमा कर रही है। यह रुपया सेविंग अकाउंट में जितना जमा होगा, उसके ऊपर बैंकों को जमाकर्ताओं को ब्याज देना पड़ेगा, जो एक भारी भरकम राशि होगी।
बैंक की व्यवस्था यह होती है कि जनता उसमें पैसा जमा करे और कम ब्याज प्राप्त करे। दूसरी तरफ बैंक बढ़ी दरों पर लोगों को कर्जा दें और वह कर्जा मय ब्याज के वापस हो। तभी बैंक स्वस्थ रहेंगे।
मोदी साहब के इस कार्यक्रम से बैंक रुपये बदलने के साथ-साथ अपने वहां जमा कराने का जो कार्यक्रम चल रहा है, उससे बैंक की पूरी की पूरी व्यवस्था नष्ट हो जाएगी और वह दिवालियेपन की और बढ़ेंगे।
वसूली के लिए द इंर्फोसमेंट ऑफ सिक्यूरिटी इंटेरेस्ट
इस मामले में दायर जनहित याचिका की सुनवाई कर रही इस पीठ में मुख्य न्यायधीश के अलावा न्यायमूर्ति यूयू ललित और आर भानुमति भी शामिल हैं।
पीठ ने जानना चाहा है कि बैंक और वित्तीय संस्थानों ने किस प्रकार से उचित दिशा-निर्देशों का पालन किए बिना इतनी बड़ी राशि कर्ज में दी और क्या इस राशि को वसूलने के लिए उपयुक्त प्रणाली बनी हुई है?
वहीँ, मोदी सरकार ने कंपनियों को दिया गया करीब 40,000 करोड़ रुपये का ऋण 2015 में बट्टे खाते में डाल कर अपनी स्वामी भक्ति का परिचय दिया है।
देश को दिवालिया करने के बाद जो मोदी साहब से सवाल पूछेगा उसे देशद्रोही घोषित कर देंगे, क्योंकि उनकी जिम्मेदारी संविधान के प्रति नहीं है. उनका विश्वास लोकतंत्र में नहीं है, वह हिटलर की समस्त नक़ल करते हैं।
आज श्री बी एम प्रसाद ने श्री पंकज चतुर्वेदी की एक कविता भेजी है, जिसमें देशभक्ति देश को मोदी के अनुसार परिभाषित किया गया है। नयी परिभाषाएं देखिये यही सही है।
कॉर्पोरेट घरानों का
अरबों रुपये क़र्ज़
माफ़ करने से
जो बैंक औंधे मुँह गिरे
उन्हें नग़दी के
भारी संकट से
उबारने के लिए
तुमने दो सामान्य नोट
अचानक चलन से बाहर किये
और समूचे अवाम को
मुसीबत में डाल दिया
यों छोटे कारोबारियों, बिचौलियों
और जालसाज़ों से
जो हासिल होगा
काले धन का
कुछ हिस्सा
वह उस घाटे की
भरपाई के लिए
जो कॉर्पोरेट घरानों पर
तुम्हारी मेहरबानी का
नतीजा है
और जब कोई पूछता है :
यह अराजकता, तकलीफ़
और अपमान
हम किसके लिए सहते हैं
तो तुम कहते हो :
देश के लिए
जबकि सच यह है
कि पूँजीपतियों का सुख
और जनता का दुख
जिस कारख़ाने में
तुम बनाते हो
उसका नाम तुमने
देशभक्ति रखा है !