सरकार को ऐसी घटनाओं के लिए दिमागी रूप से तैयार हो जाना चाहिए’
बुंदेलखंड के बाँदा जिले के नरैनी तहसील के मुकेरा गाँव में किसानों ने राशन कोटेदार की दुकान से सरकारी राशन लूट लिया.
देशभक्त, देशद्रोह की सियासत से बेखबर भूख शांत करने के लिए किसान अनाज लूटने की हद तक जा रहे हैं
बाँदा के नरैनी तहसील के मुकेरा गाँव में सन्नाटा पसरा हुआ है. ये वही गाँव है जहां 18 फरवरी को ग्रामीणों व मजदूरों में तब्दील होकर भी बेरोजगार और भुखमरी की कगार पर पहुंचे किसानों ने सरकारी राशन की दुकान पर धावा बोल 75 से अधिक बोरियां गेहूं की लूट ली. लगभग 4 हज़ार किलो गेहूं लूटा गया. अनाज लूटकांड के बाद पुलिस और मीडिया की आवाजाही से गाँव में अघोषित कर्फ्यू सा है. लोग डर के कारण आसानी से न तो घर से निकल रहे हैं और ना ही कुछ बोलने को तैयार हैं.
गाँव के जिन गरीबों ने कभी किसी को लूट के इरादे से देखा भी नहीं, उनके द्वारा सरेआम सरकारी अनाज लूटे जाने के बाद खौफ की स्थिति को समझा जा सकता है.
नरैनी तहसील के गाँव की आबादी करीब 4 हज़ार है. ब्राह्मण, पटेल, लोधी, यादव, अनुसूचित जाति के लोग यहाँ रहते हैं. इनमें से अधिकतर गरीब हैं, लेकिन कुल 122 परिवारों को ही बीपीएल की कतार में खड़ा किया गया है.
छुर्री देवी गाँव की कोटेदार हैं. 70 साल के छुर्री देवी के पास पिछले कई सालों से राशन कोटा है. यहाँ से राशन नहीं मिलने पर 18 फरवरी को गाँव के लोगों ने नरैनी-खजुराहो राष्ट्रीय राजमार्ग पर जाम लगा दिया. एसडीएम पुष्पराज यहाँ पहुंचे. उन्होंने अनाज वितरित कराये जाने का आश्वासन दिया, लेकिन शाम होने तक अनाज वितरित नहीं किया गया. उसी दिन शाम 6-7 के बीच गाँव के करीब 100 लोग एकत्रित होते हैं और
उत्तर प्रदेश में अखिलेश सरकार खाद्य सुरक्षा कानून लागू करने जा रही है. सरकार प्रदेश के 15 करोड़ से अधिक लोगों को 2 रुपये किलो गेहूं व 3 रुपये किलो चावल मुहैया कराएगी. सूखे के चलते बुंदेलखंड में 1 जनवरी से खाद्य सुरक्षा कानून लागू भी किया जा चुका है, लेकिन दबी जुबान से नाम न छापने की शर्त पर कुछ लोगों ने राशन वितरण में जिस धांधली को बयान किया, वह राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा की कामयाबी पर सवालिया निशान लगाने को काफी है.
गाँव में पिछले तीन महीने से राशन ही नहीं बांटा गया. गाँव के लोग बताते हैं कि कई बार शिकायत की गयी कि राशन की कालाबाजारी की जा रही है. घटतौली की जा रही थी. सिर्फ बाँदा ही नहीं बल्कि, झाँसी सहित बुंदेलखंड के लगभग हर हिस्से से राशन वितरण में धांधली जैसी ख़बरें आती रहती हैं.
कोटेदार ने गेहूं लूटे जाने की घटना कही, लेकिन सरकारी नाकामी छिपाने के लिए जिला प्रशासन ने लूट की घटना को ही मानने से इनकार कर दिया.
घटना के प्रत्यक्षदर्शी बताते हैं कि अधिकारियों ने उनसे कहा कि अगर किसी ने भी गेहूं लूटे जाने की बात कही तो उनके खिलाफ डकैती का मुकदमा लिखा जाएगा. घटना के बाद कोटेदार का कोटा निरस्त कर दिया गया. उसके खिलाफ एफआईआर भी दर्ज की गयी.
नरैनी एसडीएम पुष्पराज सिंह फ़ोन पर बताते हैं कि
‘अनाज की एक बोरी 50 किलो की होती है. मौके से 76 नहीं बल्कि 86 बोरियां गायब मिलीं. यह कोई ऐसी हलकी चीज़ नहीं जो लोग उठा कर भाग जाएँ.
गाँव वालों को प्रशासन द्वारा चुप कराये जाने के सवाल पर वह कहते हैं-
‘यह कॉमन सेन्स लगाने वाली बात है. इतनी बोरियां गाँव के लोग उठा कर कैसे भाग सकते हैं.
एसडीएम कहते हैं कि उन्हें लूट की किसी ने तहरीर नहीं दी. राशन कोटेदार की काफी समय से शिकायत मिल रही थीं. गायब हुआ गेहूं कहाँ गया, इसकी वह जांच कर रहे हैं.’
हालांकि कॉमन सेंस की बात करने वाले एसडीएम का घटना के बाद यहाँ से तबादला कर दिया गया.
भले ही इस घटना का पटाक्षेप करने का प्रयास किया जा रहा हो, लेकिन घटना अहम् सवाल खड़े करने के साथ ही भयावाह स्थिति की ओर इशारा कर रही है. कोई बड़ी बात नहीं बुंदेलखंड के दूसरे हिस्से में ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति होगी. भूख और भ्रष्टाचार इन घटनाओं दावत दे रहा है. सरकारों और व्यवस्था को ऐसी घटनाओं के लिए दिमागी रूप से तैयार हो जाना चाहिए.
बाँदा में विद्या धाम समिति चलाने वाले राजा भैया कहते हैं-
बांदा सहित बुंदेलखंड के अधिकतर हिस्से में नदियाँ, तालाब, पोखर, कुएं, सूख गये हैं. खेत पूरी तरह से बंजर हैं. किसान दाने-दाने को मोहताज हैं. मनरेगा के तहत काम नहीं है. काम है भी तो समय से भुगतान नहीं होता. आर्थिक तंगी के बीच सस्ती दरों पर मिलने वाला अनाज जिंदा रहने की सुगमता प्रदान करता है. अगर यह अनाज भी उन्हें नहीं मिलेगा तो फिर अंतिम विकल्प अनाज की लूट ही है.’
बुंदेलखंड में अब तक 19 सूखे पड़ चुके हैं. बुंदेलखंड ने कई सूखे देखे हैं, लेकिन अब हालात इतने खराब हैं कि किसान अनाज की लुटेरी भीड़ में तब्दील होने पर अमादा है. अनाज लूटने का यह पहला मामला है. यह ठीक उस वक़्त है जब जेएनयू, दिल्ली में कथित देशद्रोह के मामले की गूँज पूरे देश में सुनाई दे रही है. जगह-जगह कुछ लोगों की भीड़ खुद को देशभक्त बताकर व्यक्ति विशेष को देशद्रोही करार देकर हमले कर रही है. देशभक्त, देशद्रोह की सियासत से बेखबर भूख शांत करने के लिए किसान अनाज लूटने की हद तक जा रहे हैं.
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान करीब 72 साल पहले बंगाल में पड़े अकाल को भारत ही नहीं बल्कि विश्व की बड़ी आपदाओं में था. तब बंगाल में भूख से तड़पकर लाखों लोगों ने दम तोड़ दिया था. जमाखोरी, अनाज को बंगाल से निर्यात किये जाने के साथ ही अनाज का उत्पादन घटना भी अकाल की प्रमुख वजह था. 1981 में देश में अकाल की स्थिति थी. तब भी बुंदेलखंड में हालात सबसे अधिक खराब थे, लेकिन इस बार स्थिति अधिक गंभीर है.
बुंदेलखंड भूख से बंगाल जैसी मौतों से अभी दूर है, लेकिन सूखे के चलते यहाँ भी अनाज उत्पादन में जबरदस्त कमी आयी है. बाँदा में 152516 हेक्टेयर में गेहूं उत्पादन का लक्ष्य था, लेकिन सिर्फ 104820 हेक्टेयर में ही फसल बोई गयी. बोई गयी अधिकतर फसल सूखे के चलते बर्बाद हो गयी. चना भी 36 फ़ीसद ही बोया गया. बाँदा में भूख से मौत की ख़बरें भी आ चुकी हैं. हालांकि इसकी सरकारी पुष्टि नहीं हुई.
भारतीय किसान यूनियन के बुंदेलखंड प्रभारी शिवनारायण सिंह परिहार कहते हैं कि राशन वितरण प्रणाली में धांधली जग जाहिर है. ऐसी स्थिति में भी भ्रष्टाचार निराश किसानों को लूटपाट करने को प्रेरित ही करेगा. यह आगे भी होने वाला है.