समाजवादियों, वामपंथियों और गांधीवादियों की एकजुटता पर जोर
अंबरीश कुमार
पनवेल (मुंबई )। दस और ग्यारह अगस्त को देश भर के समाजवादियों के दो दिन के जमावड़े में जो मंथन हुआ उसमें समाजवादियों- वामपंथियों और गांधीवादियों के बीच नए सिरे से एकजुटता पर जोर दिया गया। इसके लिए एक प्रतिनिधि समूह के गठन का फैसला हुआ जिसके संयोजन की जिम्मेदारी डॉ. सुनीलम को सौंपी गई। इस समूह में हर राज्य से आए एक प्रतिनिधि को शामिल किया गया है। यह समूह आर्थिक-सामाजिक- राजनीतिक परिवर्तन के लिए युवाओं, मेहनतकशो, किसानों, महिलाओं की शक्ति और मध्यम वर्ग तक समाज के विविध संवेदनशील, विचारशील तबकों का सशक्तिकरण के साथ सहभाग करेगा। इसके साथ ही एक साल में विविध शिविरों का आयोजन जो युवाओं को समाजवादी विचारधारा और कार्यक्रम से जोड़ेगा। यह समूह पुख्ता तैयारी के साथ देश भर में समाजवादी विकल्प यात्रा शुरू करेगा। भूमि, पानी, श्रमिको के अधिकार जैसे मुद्दों पर और एफडीआई, विस्थापन, गैरबराबरी, सार्वजनिक संपत्ति के निजीकरण के खिलाफ जनआंदोलन को ताकत देगा।
मुंबई से करीब सत्तर किलोमीटर दूर मुंबई गोवा मार्ग पर स्थित युसूफ मेहर अली सेंटर में हुए समाजवादी समागम में सत्रह राज्यों से तीन सौ से ज्यादा समाजवादी कार्यकर्त्ता आए थे। बुजुर्ग समाजवादी जीजी पारीख के नब्बे साल पूरे होने के मौके पर समाजवादियों ने देश भर के समाजवादी धारा से जुड़े कार्यकर्ताओं को आमंत्रित किया था। कार्यक्रम में जीजी परख के अलावा पन्ना लाल सुराणा, भाई वैद्य, मेधा पाटकर, प्रोफ़ेसर आनंद कुमार, सांसद मुनव्वर सलीम, डा सुनीलम, प्रेम सिंह, लिंगराज, अफलातून, अरुण श्रीवास्तव, विजयप्रताप समेत कई प्रमुख समाजवादी शामिल हुए।
समागम में पास एक प्रस्ताव में कहा गया कि नरेद्र मोदी की यानी भाजपा के नेतृत्व में बनी एनडीए सरकार की बुनियाद हिन्दुत्ववादी है। इसके द्वारा सांप्रदायिकता को बढ़ावा तथा अल्पसंख्यक समाजों में असुरक्षा भारत की विविधता मे एकता को चुनौती है। देश में सर्वधर्म समभाव
युसूफ मेहेर अली सेंटर, तारा पनवेल, में 10-11 अगस्त 2014 को निम्न प्रस्ताव पारित किए गए-
1. भारत देश के संविधान में अधोरेखित मूल्य, मार्गदर्शक सिद्धांत तथा बुनियादी अधिकारों की अवमानना देश की आम जनता दशकों से भुगतती आ रही है। आजादी के पिछले 66 सालों में बहुत कुछ हासिल करने के बावजूद गैर बराबरी, अन्याय, जातिवाद, सांप्रदायिकता तथा जनतंत्रविरोधी शासन बना रहा। संविधान में लिखित मूल्यों की चौखट में देर से सही समाजवाद भी जोड़ा गया जरूर लेकिन देश की आर्थिक नीति, शासकों की कार्यप्रणाली तथा विकास का नियोजन समाजवादी नहीं होने से, देश के विविध तबके, किसान, मजदूर, दलित, आदिवासी, घुमंतु जनजातिया, मछुआरे, युवा-विद्यार्थी, कारीगर, महिलाएं आदि संघर्ष का रास्ता अपनाते रहे हैं। इन संघर्षों ने जो हासिल किया, उसमें मजदूरों के पक्ष में, किसानों के, आम गरीबों के पक्ष में नीतियाँ और कानून, बुनियादी जरूरतों की पूर्ति की ओर कई योजनाएं और सशक्त, संगठित शक्ति के सामाजिक तबकों के लिए जनतांत्रिक ढांचे में कुछ गुजाईश बनाने में सफलता मिली है। फिर भी राजनीतिक प्रक्रियाओं में और आर्थिक नीतियों में इस उपलब्धि को बरबाद करने वाले आम जनता की खवाहिशें और सपनों को ही नहीं बल्कि जीने के अधिकार को भी कुचलने वाले सिद्धांत और प्रक्रियाएं हावी होने लगी हैं। 1. समाज के बदले कार्पोरेट ताकतों को बढ़ाना, 2. धर्म या जाति के नाम पर विभाजित करना, तथा 3. आर्थिक नीतियों सें वंचना, शोषण और प्राकृतिक संसाधनों की लूट को बढ़ाने का काम जिस राजनीति के द्वारा हुआ, उसे चुनौती देने वाले जनआंदोलन और कई सारे राजनीतिक दल विकल्प के रूप में समाजवादी विचारधारा को मानते हुए, सक्रिय रहे और एक दूसरे से कम अधिक समन्वय बनाकर चलते रहे।
2. आज वैश्वीकरण, उदारीकरण, निजीकरण के जरिए पूंजीवाद और पूंजीवादी ताकतों को ही लूट की छूट देने वाली नीतियाँ सबसे अधिक छायी हुई हैं। नियोजन के हर पाँच सालों में लाखों करोड़ों की टेक्स तथा कस्टम ड्यूटी में छूट पाने वाली करोड़पति कंपनियाँ और उनके अंबानी, अडानी जैसे मालिक पूंजीपति एक तरफ और पिछले 15 सालों में आत्महत्या करने वाले 3 लाख किसान दूसरी ओर - देश का यह चित्र सामने चुनौती के रूप में खड़ा है। देश ही नहीं, विदेश की बड़ी पूंजी पानी, बिजली, इन्फ्रास्ट्रक्चर, शिक्षा, स्वास्थ्य और सुरक्षा जैसे हर क्षेत्र में सार्वजनिक संपदा तथा सामाजिक-आर्थिक दायरों को अपने कब्जे में लेती गयी है और अब केद्र में नई सरकार आने पर और अधिक तेजी से, अधिकाधिक मुनाफा और सहुलियतें देकर उन्हे आमंत्रित करना, देश की संप्रभुता, स्वावलंबन, जनतंत्र और आम लोगों की आजीविका पर ही हमला है।
3. श्री नरेद्र मोदी की याने भाजपा के नेतृत्व में बनी एनडीए सरकार की बुनियाद हिन्दुत्ववादी है। इसके द्वारा सांप्रदायिकता को बढ़ावा तथा अल्पसंख्यक समाजों में असुरक्षा भारत की विविधता में एकता को चुनौती है। देश में सर्वधर्म समभाव के उसूलों को मानने वाले करोड़ों नागरिक चिंतित हैं। अयोध्या की घटना के बाद और मुजफरनगर या खण्डवा तक हुए दंगे, इस बात का संकेत हैं कि मोदी सरकार के राज में छोटे-बडे साम्प्रदायिक दंगे फिर से बढ़ेंगे। यह संभव है कि आतंकवाद देश में तथा अंतराष्ट्रीय स्तर पर भी अपना काला, बर्बर चेहरा दिखाएगा। हमारी पीढ़ियों की सांस्कृतिक धरोहर और विरासत जो कि धर्मनिरपेक्ष राजनीति के द्वारा कुछ हमलों के बावजूद बनी रही, उसे बरबाद करने की कोशिशों से हम संतप्त भी हैं।
4. मंहगाई, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार जैसी समस्याओं को भुनाते हुए चली आयी राजनीति पैसा-बाजार, सोशल नेटवर्किग का खेल सी बनी है। जबकि आम लोगों की समस्याएं हल किए बिना उन पर विकास के नाम पर जल, जंगल, जमीन, खनिज संपदा लूटकर थोपा जा रहा है। प्राकृतिक विनाश और विस्थापन, स्त्रीत्व के वस्तुकरण के साथ बढते महिलाओं पर अत्याचार और बदलते रिश्ते दलितों, आदिवासी, घुमन्तु परिवारों पर हमले और उनके निधि का गैर उपयोग या अनुपयोग, श्रमिको का शोषण और संगठित-असंगठित तबकों में बढ़ती विषमता आदि बढ़ रही है। जाति और मजहब का भरसक आधार आज भी नए रूप लेकर चुनावी राजनीति के तहत अधिक मजबूत होता रहा है। चुनावी प्रक्रिया के द्वारा जनतंत्र पुख्ता होने के बदले करोड़ों रूपयों का बाजार देश विदेश के पूंजीपतियों के हाथ जाता हुआ दिखाई दिया है। हजारों करोड़ रूपया खर्च करके प्रधानमंत्री बनना, वह भी केवल 31 प्रतिशत वोट पाकर, यही बताता है कि देश की प्रातिनिधिक जनतंत्र और चुनावी प्रक्रिया दोनो में बुनियादी बदलाव जरूरी है, वह भी तत्काल। आज की पूंजी आधारित चुनाव प्रणाली से चुनकर आयी सरकारें मुट्टीभर पूंजीपतियों के ही पक्ष में निर्णय, चाहे एफडीआई का हो, भू-अर्जन कानून फिर ब्रिटिष कालीन बनाने का हो या डीएमआईसी जैसी कॉरीडॉर-इन्फ्रास्ट्रक्चर परियोजनाएँ, नदी-जोड़ परियोजना, श्रम कानूनों के बदलाव जैसा, ले रही है तो हम चुप नहीं बैठ सकते। शिक्षा का व्यापारीकरण, बढ़ती बेरोजगारी के प्रति गुस्सा जिन युवाओं के मन में है, उनकी शक्ति बढ़ाने के लिए रोजगार बढ़ाना और शिक्षा जीवन सम्मुख बनाने के कदम उठाने होंगे।
5. इस परिप्रेक्ष्य में समाजवादियों की भूमिका तय करने के लिए एकत्रित आए विविध जनसंगठन, जनआंदोलन तथा राजनीतिक दलों में रहे साथी गांधी-विनोबा-जयप्रकाश, आंबेडकर-पेरियर-मार्क्स, महात्मा ज्योतिबा और सावित्रीबाई फुले, कमला देवी चटोपाध्याय, मौलाना आजाद, युसूफ मेहेर अली, लोहिया के तत्वज्ञान से सामन्वयिक विचार धारा को अपनाकर समाजवाद की मंजिल की ओर सशक्त रूप से बढ़ाना चाहते हैं। आज तक चल रहे अपने कार्यों को, संगठन शक्ति को, स्वंतंत्र रहते हुए भी, जोड़ना चाहते हैं। न्यूनतम नहीं अधिकतम समान विचार और कृति-कार्यक्रम को आधार बनाकर यह हासिल करना चाहते हैं।
6. जनआंदोलनों को सशक्त करना, एक दूसरे को सक्रिय साथ-सहयोग प्रदान करना तथा राजनीतिक-आर्थिक प्रक्रियाओं में हस्तक्षेप करना, दोनो मार्ग अपनाकर ही यह साध्य हो सकता है। यह भावना उभरी है, 10-11 अगस्त 2014 के रोज, यूसुफ मेहेर अली सेंटर, तारा पनवेल जिला रायगढ़ में हुए समाजवादी समागम में सहभागी साथियों की ओर से कांग्रेस-भाजपा की करीबन एक ही दिशा में चलती आयी अर्थनीति-राजनीति से देश को बचाना, प्रकृति, सांझा संस्कृति, जनतंत्र और संप्रभुता को बचाना है तो एकत्रित आकर आवाज उठाना, आने वाले चुनावों के परिप्रेक्षय में भी जनता के बीच जाकर जागरण करना आवश्यक है। इस पर एक राय हो चुकी है। आजादी आंदोलन की अनोखी विरासत और शहादत को आगे ले जाते हुए एक क्रांतिकारी कदम उठाना है।
7. इस दिशा में समाजवादी समागम में शामिल समाजवादी कार्यक्रर्ताओं ने इस प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के लिए एक प्रतिनिधिक समूह को गठन करने का निर्णय लिया। जिसके संयोजन की जिम्मेदारी डॉ. सुनीलम् तथा समाजवादी समागम में आये संगठनों, पार्टियों तथा सभी राज्यों के प्रतिनिधियों को सौपी गई। यह समूह आर्थिक-सामाजिक- राजनीतिक परिवर्तन के लिए युवाओं, मेहनतकशों, किसानों, महिलाओं की शक्ति और मध्यम वर्ग तक समाज के विविध संवेदनशील, विचारशील तबकों का सशक्तिकरण के साथ सहभाग करेगा।
8 एक साल में विविध शिविरों का आयोजन जो युवाओं को समाजवादी विचारधारा और कार्यक्रम से जोड़ेगा।
9 पुख्ता तैयारी के साथ देशभर में समाजवादी विकल्प प्रस्तुत करती यात्रा करना।
10 भूमि, पानी, श्रमिकों के अधिकार जैसे मुद्दों पर और एफडीआई, विस्थापन, गैरबराबरी, सार्वजनिक संपत्ति के निजीकरण के खिलाफ जनआंदोलन चलाना।
11 चुनाव प्रणाली में बुनियादी बदलाव पर संवाद और राष्ट्रीय स्तर पर अभियान चलाना।
12 सांप्रदायिक, जातिवादी शक्तियाँ और उनके कारनामों को चुनौती देना।
13 सही विकास का उद्देश्य हासिल करने के लिए नई तकनीक के साथ विकल्पों पर रचनात्मक कार्य को समाजवादी विचार की संस्थाओं के द्वारा आगे बढ़ाना।
14 2015 में पूरे देश के पैमाने पर समाजवादी विकल्प यात्रा का आयोजन करके देश भर के समाजवादी समूहों, संगठनों और आंदोलनों में सहयोग को बढ़ाया जाए।