फिर कैद कर लो औरतों को जैसे मनुस्मृति में प्रावधान है!
पलाश विश्वास
छत्तीसगढ़ में हमारे लापता पुरातन मित्र आलोक पुतुल लगता हैं कि अभी जीवित हैं और उन्हें अचानक हमारी याद भी आ गयी है। यह खुशखबरी हमारे युवा तुर्क अमलेंदु के लिए खास है क्योंकि एक-एक करके जनसरोकार से जुड़े तमाम बंदे हस्तक्षेप से जुड़ते जा रहे हैं। महिलाएं भी कम नहीं हैं। नाम नहीं गिना रहा हूं आप पढ़ते रहें हस्तक्षेप।
आज शाम मेल बाक्स खोला तो बीबीसी में चमककर गायब हुए आलोक का मेल दीख गया। हमारे लिए खुशी की बात है कि ये आलोक पुतुल इस दुनिया में अकेले शख्स हैं जिन्हें खुशफहमी रही है कि मैं भी कवि हूं और जब तक वे अक्षर पर्व पर थे, हर अंक में मेरी लंबी चौड़ी कविताएं छापते रहे हैं।
अब मेरी कोई कविताएं कोई नहीं छापता और न कविताएं लिखने का मुझे कोई शौक है। बहरहाल समय को संबोधित करते हुए कुछेक पंक्तियां कविता जैसी हो जाती हैं और उन्हें कविता मानकर लोग मजा ले लेते हैं, मुद्दों पर कतई गौर नहीं करते।
यह कमी मुझमें हो गयी है कि दिल चाक चाक पेश करुं आपकी खिदमत में और आप शायरी समझ के खूब मजा ले लेते है, गौर करते नहीं हैं। मटिया देते हैं या पसंद न हुई तो गरिया देते हैं।
आलोक ने बीच में समाचार पोर्टल रविवार शुरु किया था, जो अब मोहल्ला हो गया है। अविनाश और आलोक हमारे मजबूत हाथ थे, जो अब हमारे हाथ नहीं है।
अब उन्हीं आलोक ने बिना दुआ सलाम सीधे यह खबर भेजी है, तो गौर करना लाजिमी है।
आप भी देख लीजिये। पहले लिंक और हमारे उच्च विचार और आखिर में वह खबर जस का तस। कृपया गौर करें।
खासकर महिलाएं जो हिंदू राष्ट्र बनाने के लिए बेताब हैं और तीज त्योहार पर्व पूजा वगैरह
वगैरह के साथ हिंदुत्व के रंग में नख शिख तक जो भगवा हैं और उनमें भी अनेक दुर्गाएं हैं तो कुछ साध्वियां भी हैं। गौर करें वे महिलाएं आदरणीय जो सवर्ण हैं, लेकिन शूद्र हैं। यह मनुस्मृति का प्रावधान है कि हर स्त्री शूद्र है नरकद्वार।
वे तमाम महिलाएं और वे आजाद महिलाएं भी जो मुक्त बाजार में खुलेआम स्त्री देह की नीलामी को आजादी समझती हैं और उनका स्त्री विमर्श पितृसत्ता के नजरिये से देखने को अभ्यस्त हैं, बुनियादी मसले भी और सियासत मजहब और हुकूमत का जो जहरीला त्रिशूल दिलोदिमाग को बिंधे हैं, उससे लहूलुहान जो बुलबुल की तरह गायें न गायें, चहकती फिरती हैं, वे भी गौर करें।
पहले खबर
औरतें नौकरी करने लगीं, इसलिये देश में बेरोजगारी फैली. छत्तीसगढ़ में 10वीं के बच्चों को पढ़ाया जा रहा है यह पाठ
http://cgkhabar.com/chhattisgarh-women-cause-of-unemployment-20150923
यूं कहें तो हम भी मानीय मानव संसाधन मंत्री के फैन हुआ रहे हैं और उनके दक्ष अभिनय से उनकी शैक्षणिक योग्यता और उनकी डिग्रियों का कोई नाता है, ऐसा हम नहीं माने हैं।
अपने जीवन की सबसे अहम किरदार वे शिक्षामंत्री का निभा रही हैं और स्क्रिप्ट नागपुर में लिखा गया है जहां जल्लादों का जमावड़ा हो रहा है। न जाने कितने जल्लाद हैं और उनकी हिटलिस्ट में न जाने किस किसका नाम हुआ करै हैं।
आलोक भइया यूं तो छत्तीसगढ़ में दशकों से सक्रिय हैं और कोई सूरत नहीं हैं कि वे हरिशंकर व्यास के व्यंग्य और हबीब तनवीर के नये थियेटर और नाचा गम्मत के वाकिफ न हों। मसला वही नाचा गम्मत है।
फिर वही कटकटेला अधियारा का तेज बत्तीवाला किस्सा है।
भइये, अंधियारा का जब ससुरा यह मुक्तबाजारी कारोबार है और शासन भी मनुस्मृति का है, तो हैरतकी बात आखिर क्या है।
मोहन भागवत ने आरक्षण पर नया विमर्श छेड़ दिया है। जाति को खत्म नहीं करना चाहते और आरक्षण खत्म करना चाहते हैं। कारपोरेट मीडिया बल्ले-बल्ले है।
मोहन भागवत के नये विमर्श के हक में एडिट उडिट मस्त मोटा झालेला कि आरक्षण खत्म तो क्रांति हुई जाये रे।
जाति बंदोबस्त बराबर चाहिए कि वर्गीय ध्रुवीकरण हुआ तो राजा का बाजा बज जाई।
पाटीदार अलग क्रांति कर रहे हैं हिंदुस्तान की सरजमीं से अमेरिकवा में भी।
बैंकवा से थोक भाव में पचास पचास लाख के चेक जरिये सारी नकदी निकारके बैंक फेल करवा रहिस और आरक्षण भी मांगे है। आरक्षण खत्म करने का खेल मोटा मस्त बराबर।
कौन ससुरा माई का लाल दलित उलित, पिछड़ा उछड़ा, मुसलमान की औलाद, बेदखल आदिवासी की औकात है कि तमामो कुनबों को साथ लेइके नइकी फौज बनाइके बैंकवा पर एइसन दावा बोले है, समझा भी करो भइया।
मोहन भागवत चाहते हैं कि आरक्षण खत्म कर दिया जाये।
आनंद तेलतुंबड़े न जाने कब से आंकड़ों के साथ बकते जा रहे हैं कि आरक्षण खत्म है।
बाबासाहेब ने नौकरियों के लिए स्थाई आरक्षण का बंदोबस्त किया है और राजनीतिक आरक्षण का नवीकरण हर दस साल अननंतर होवेके चाहि।
अब ससुरा राजनीतिक आरक्षण के अलावा कौन आरक्षण बचा है 1991 के बाद। मेहनतकशों के हक हकूक खत्म।
सातवें वेतन आयोग में उत्पादकता से जुड़ा है वेतनमान तो लोग हिसाब जोड़े त्योहारी खरीददारी में मस्त है।
सर पर लटकती तलवार किसी को दीख उख नहीं रही है कि सातवां वेतन आयोग की सिपारिशों के बाद नौकरी की हद फिर तैंतीस साल है महज।
शिक्षा क्षेत्र में जो 65 साल तक नौकरी के मजे ले रहे हैं, वे बूझ लें। फिर छंटनी ऐसी होगी कि ग्रोथ रेट दनादन बढ़े और जीडीपी वेतन के मद में खर्च ही न हो, एइसन संपूर्ण निजीकरण, संपूर्ण विनिवेश, अबाध पूंजी, संपूर्ण विनिवेश का अश्वमेध अभियान है।
आलोक भइया, प्यारे भइया, तनिको समझो कि देश कुरुक्षेत्र है। कर्मफल भुगतना ही है सबको, गीता का उपदेश अंतिम सच है। स्त्री फिर द्रोपदी है, या गांधारी महतारी है या कुंती है या सत्यवती। मनुस्मृति अनुशासन में बंधी सी।
सीता मइया भी अग्निपरीक्षा से निखरकर निकली तो वनवास को चली गयी। सनातन रीति यह चली आयी है।
पितृसत्ता के वर्चस्व के लिए सती सावित्री बनकर रहना है तो मुंह उठाइके क्यों घर से बाहर निकरी है।
उसी का सच किताब में लिखा है।
हिंदू राष्ट्र में यही होना है क्योंकि चक्रवर्ती राजा का पुण्यप्रताप है कि देखें कि उनके अमेरिका प्रवास से पहले कितने ही हधियारों के सौदे हो गये। उन हथियारों का इस्तेमाल भी छत्तीसगढ़ में होवेके चाहि।
मधेशी और जनजाति नेपाल में नये संविधान एक तहत अपना हिस्सा बराबर मांग रहे हैं। वरना बाकी नेपाल की तरह वे भी हिंदू राष्ट्र फिर से बनने को इंकार कर चुके हैं।
हिंदुत्व का अजब-गजब नेटवर्क नेपाल में भई रहल कि भूकंप के दौरान गो बैक इंडिया का नारा बुलंद हो गइलन।
फेर वही गो बैक इंडिया का नारा बुलंद हुआ है क्योंकि चक्रवर्ती राजा की इच्छा है कि नेपाल फिर हिंदू राष्ट्र बनकर हिंदू राष्ट्र भारत का उपनिवेश बनकर जीवै हजारों साल।
अब एक सार्वभौम देश नेपाल ने नवा संविधान में राजशाही और हिंदू राष्ट्र दोनों को ठुकरा दिया है तो आर्थिक नाकेबंदी भी कर दी है और नई दिल्ली से फतवा भी जारी हो गया है कि नेपाल अपना संविधान बदल लें। कमसकम सात संशोधन जरूर करके जैसा बाजा लोकतंत्र का हिंदू राष्ट्र भारत में बजा है, वैसा ही बाजा नेपाल में बजा दें। वरना ससुरो भूखों मरो।
किसी स्वाधीन सार्वभौम राष्ट्र की हालत यह कूकूरगत है तो हम तो ससुरे डिजिटल मुल्क के नागरिक है कि एको बटन चांप दिहिस तो टें बोल जावै हैं।
ज्यादा लंबी जुबान हो तोबजरंगी किसिम किसिम के हैं, काट लीन्है जुबान लंबी लंबी।
तमिलों का नरसंहार आधार से हुआ तो वही नंबर फिलव्कत हमारा वजूद है।
फिर यह रोबोटिक तंत्र मंत्र यंत्र है। ड्रोन का पहरा है। नागरिकता है नहीं। बेदखली विकासगाता हरिअनंत हैं।
कोई महिला ईंची उड़ान भरने लगें तो किस्सा उसका खुल्ला केल फर्रूखाबादी बना दिहिस। सच झूठ कोई पैमाना नहीं। मीडिया ट्रायल में जान निकार देंगे।
जो कुछ जियादा मर्द बाड़न, बेमतलहब चुदुर बुदुक करत रहै, इस कटकटेला अंधियारा मां कौन जल्लाद कहां से छह इंच छोटा कर दें, मालूम नइखे। ई सब शेयर वेयर करत बाड़न तो विपदा भारी है। औरत तो दासी है और किसी वर्ण जाति में है नहीं वैदिकी यज्ञ होम में उनका कोई अधिकार नहीं और मनुस्मृति के मुताबिक उनका कोई अधिकार भी नहीं है।
सारे श्रम कानून बदल गये, बड़का बड़का क्रांतिकारी खामोश बाड़न आउर तो औरत के हक में बोलत ह, कोनो साध्वी की नजर लाग गयीतो जीते मरब हो तू। हिंदुत्व के खिलाफ बोल नांही, जीवैके चाहि वरना पनसारे, दाभोलकर, कलबुर्गी, हुसैन, वागले वगैरह वगैरह मिसाल ढेरो हैं।
इतिहास बदल रहा है।
संविधान बदल रहा है।
2020 तक हिंदू राष्ट्र तय है।
बुलेट गति तरक्की है।
हर हाथ काट दिया जायेगा।
हर पांव काट दिया जायेगा।
दिलोदिमाग खेंचके बाहर निकार देंगे वे बराबर।
सरकारी नौकरियां हैं नहीं।
अकेले महाराष्ट्र में सिर्फ मराठी और गुजराती स्कूलों के एक लाख शिक्षकों का काम तमाम। डाटा बैंक तैयार हैं कि कितने स्टुडेंट हैं और कितनेटीचर कुर्सी तोड़त बाड़न। मास्टरी किसिम किसिम रोजगार का जलवा है, उ तो खतम।
रेलवे मा अठारह लाख कर्मचारी घटत घॉत तेरह लाख है। रिजर्वेशन, कोटा और जांत पांत भुंजके खावैके चाहि कि
अब रेलवे में चार लाख से जियादा मुलाजिम हरगिज ना चाहि।
निजी बैंकों मा सौ फीसदी एफडीआईहै और अब सरकारी सारे बैंक निजी बनने को है। सारे बैंकों के माई बाप निजी क्षेत्र के हैं। रिजर्व बैंक के सत्ताइसो विभाग निजी क्षेत्र के हवाले हैं।
तो समझो मर्दो के लिए नौकरियां नइखे।
मर्द गोड़ तुड़ाके घर में भिठलन बाड़न आउर तू चाहे कि मेहरारु चमके दमके टीपटाप रहे।
इसी के वास्ते मर्दो की सुविधा वास्ते यह नये फतवे की तैयारी है और मगजधुलाई बेहद जरुरी बा कि साबित भी हुई गवा कि
बेरोजगारी के लिये औरतें जिम्मेवार।
अब चहके जरा थमके।
जरा समझ लो कि व्हाट्सअप है किसलिए।
ई थ्रीजी फोर जी वगैरह वगैरह है किस लिए।
एनक्रिप्सन का पहरा खत्म नहीं हुआ बे मूरख, उ ई कामर्स के वास्ते खुल्ला खेल फर्रूखाबादी है और सूचना और ज्ञान और विचारों पर पहरा चाकचौबंद है।
झियादा पादें तो सबस्क्रिप्शन ही खारिज हो जावै है।
बगुला जमात के ड्राफ्ट मा गड़बड़ी हुई रहिस के ई कामर्स और मुक्त बाजार के लिए सिलिकन वैली है।
ई पेमेंट, ई बाजार और ई डील मुक्ताबाजार है।
ठोंकके बाजार न बता दिहिस कि बाजार का बाजा बजाइब तो खैर नाही सो एनक्रिप्शन रोल बैक का ड्रामा हुई गइलन।
पहरा भी कम नहीं है। दासी भी कम नहीं हैं। मांस का दरिया भी कम नहीं है। मुक्त बाजार भी कम नहीं है। हिंदू राष्ट्र भी कम नहीं है। राम राम जपो और दाल रोटी खाओ। कत्लेआम भी कम नहीं है और न आगजनी कम है। राम नाम सत्य है।
पलाश विश्वास