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डेंगू, चिकनगुनिया, वायरल का होम्योपैथिक उपचार

Homeopathic treatment of dengue, chikungunya, viral

बुखार की होम्योपैथिक दवाइयां हिंदी में

नोटः जनहित में जारी।

लेखक : डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'

इन दिनों देश भर में डेंगू, चिकनगुनिया और वायरल फीवर ने कहर बरपा रखा है। देश के समर्पित डॉक्टर इन बीमारियों से पूरी निष्ठा के साथ लड़ रहे हैं, जिसके परिणामस्वरूप हम हमारे अपनों को इन बीमारियों के कहर से बचा पा रहे हैं। यद्यपि बीमारी के दौरान और बीमारी के उपचार के बाद जो हड्डीतोड़ दर्द उठने-बैठने, चलने-फिरने और नैतिक क्रियाकर्म तक करने में बाधक बन रहा है, वह केवल दर्द-निवारक दवाओं के भरोसे छोड़ा जा रहा है। जो कतई भी उचित नहीं है।

ऐसे रोगियों की दशा गठिया के रोगियों की जैसी हो जाती है, क्योंकि गठिया में भी असहनीय दर्द होता है, लेकिन गठिया से सामान्यत: कोई मरता नहीं और इस दर्द से भी कोई मरता नहीं है। इसी कारण डॉक्टर और परिजन भी ऐसे रोगियों के दर्द के प्रति अगम्भीर रहते हैं। यह स्थिति ऐसे रोगियों के साथ क्रूरतम अन्याय से कम नहीं।

इस स्थिति से लड़ने में होम्योपैथी की अनेक दवाईयाँ काफी सीमा तक सफल हैं। बशर्ते हम किसी योग्य चिकित्सक की देखरेख में सही दवा का चयन कर सही से सेवन कर सकें।

Chikungunya Treatment in Hindi: Dengue and Chikungunya

कुछ प्रमुख और अत्यन्त उपयोगी होम्योपैथिक दवाईयों का उल्लेख मैं यहाँ कर रहा हूँ :—

सर्वप्रमुख दवाई : यूपेटोरियम परफोलिएटम (Eupatorium perfoliatum in Hindi)

सूचक लक्षण : छींकें, जुकाम, तेज सिर दर्द, बुखार के साथ सारे बदन में कहीं भी दर्द या सभी मांसपेशियों में दर्द, सभी जोड़ों और हड्डी-हड्डी में असहनीय तेज दर्द। रोगी आराम से पड़ा रहने पर भी बेचैन, दु:खी और उदास रहता है। तेज हड्डीतोड़ दर्द होने पर भी पसीना बहुत कम या बिलकुल नहीं। बुखार में शीतावस्था आने से बहुत पहले अधिक प्यास

और हड्डियों में दर्द शुरू होना।

विचित्र लक्षण : सिर दर्द और शरीर के जोड़ों का दर्द पर्याय क्रम में अदलता-बदलता रहता है। अर्थात् जैसे-जैसे सिरदर्द बढ़ता जाता है, वैसे-वैसे जोड़ों का दर्द घटता जाता है। जोड़ों का दर्द बढ़ता है और सिरदर्द कम होता जाता है। आदि।

दवाई की शक्ति : 30

मात्रा : 2—2 बूंद सुबह—शाम खाली पेट।

अवधि : 3 से 5 दिन या ठीक होने तक।

नोट : जिस बुखार में हड्डियों में तेज दर्द का प्रमुख लक्षण नहीं हो तो यूपेटोरियम परफोलियेटम कोई काम नहीं करेगी।

दूसरी प्रमुख दवाई : ब्रायोनिया (bryonia alba in hindi)

सूचक लक्षण : हड्डियों में दर्द, लेकिन इस दवा का हड्डियों में दर्द प्रमुख लक्षण नहीं है। रोगी बिना बेचैनी के आराम से पड़ा रहकर आराम पसन्द। दर्द में हरकत से वृद्धि और विश्राम से कमी। यहां तक कि हिलने-डुलने से भी तकलीफ में बढोतरी। क्रोधी और चिड़चिड़ा स्वभाव। खुश्की के साथ सूखे होंठ। तेज प्यास। देर-देर में, ज्यादा-ज्यादा, भर-भर गिलाश ठंडे पानी की प्यास/देर-देर में, ज्यादा-ज्यादा प्यास हो तो दवाई-एकोनाइट है। बन्द कमरे में रोगी की तकलीफें बढती हैं और खुली हवा उसे अच्छी लगती है।

विचित्र लक्षण : 'रोगी का दिल तो आराम से लेटने/पड़े रहने को चाहता है, लेकिन दर्द लेटने नहीं देता' इस स्थिति में भी हिलने-डुलने से तकलीफ वृद्धि इस दवा का प्रमुख लक्षण है।

दूसरा विचित्र लक्षण : 'बदन के जिस अंग में जिस ओर दर्द हो, उस तरफ लेटे रहने से दर्द में आराम।' आदि।

दवाई की शक्ति : 30

मात्रा : 2—2 बूंद सुबह—शाम खाली पेट।

अवधि : 3 से 5 दिन या ठीक होने तक।

तीसरी प्रमुख दवाई : रस टॉक्स (होम्योपैथी में रुस Tox के उपयोग - Rhus Tox Homeopathic Medicine In Hindi)

सूचक लक्षण : मांसपेशियों, पुठ्ठों, कमर में असहनीय दर्द। रोगी की हड्डियों में भी दर्द होता है, लेकिन यह दर्द मांस तंतुओं और जोड़ों का होता है। रोगी को गर्मी, सूखी हवा, गर्म सेंक और हरकत से दर्द और तकलीफों में आराम मिलता है। जबकि आराम करने, ठंडे पानी, नम हवा, ठंड, ठंडी हवा, बरसाती मौसम, पसीना दबने से रोग/तकलीफों में वृद्धि होती है।

रोगी को शुरू में चलने या हरकत करने से दर्द/तकलीफ बढ़ना अनुभव होता है, लेकिन लगातार चलते रहने से बदन में गर्मी आ जाती है, जिससे दर्द/तकलीफ में आराम अनुभव होता है।

रोगी में बेचैनी देखने का मिलती है, लेकिन बेचैनी के साथ उत्तेजना की प्रबलता हो तो सही दवाई एकोनाइट और बेचैनी के साथ कमजोरी का लक्षण हो तो आर्सेनिक एल्बम सही दवा है।

जहाँ तक रस टॉक्स के रोगी की बेचैनी का सवाल है, इसमें न तो उत्तेजना होती है और न ही कमजोरी होती है, बल्कि इसकी बेचैनी के साथ में मांसपेशियों में पीड़ा और दर्द का होना विशेष सूचक लक्षण है। आदि।

दवाई की शक्ति : 30

मात्रा : 2—2 बूंद सुबह—शाम खाली पेट।

अवधि : 3 से 5 दिन या ठीक होने तक।

उक्त दवाईयों के अलावा लक्षणों के अनुसार होम्योपैथी की निम्न दवाईयां भी रोगी को दी जा सकती हैं:—

जेल्सीमियम—

प्यास की कमी या प्यास का अभाव। प्यास रहित ज्वर। मेरुदंड में ऊपर-नीचे शीत का उतरना-चढ़ना। सुस्ती, निद्रलुता-रोगी नींद सी में पड़े रहना। ज्वरावस्था के दौरान रोगी में कमजोरी, थकान, प्यास का अभाव, शीतावस्था में और बिना शीत के भी कंपकंपी और बार-बार पेशाब आना। अचानक अप्रिय समाचार की सूचना से भयग्रस्त हो जाना। सभी अंगों में दुर्बलता, मांसपेशियों में शिथिलता। आदि।

नक्स वोमिका—

रोगी के मानसिक लक्षण प्रमुख, जैसे—उद्यमी, झगड़ालू, चिड़चिड़ा, कपटी, प्रतिहिंसाशील, जिस काम को हाथ में लेता है, उसमें जी-जान से जुट जाना और तुरत-फुरत काम को पूरा कर डालना। हर काम में दूसरों से आगे। हर काम में चुस्त, चौकन्ना, सावधान, प्रखर बुद्धि, कार्यपटु, उत्साही, जोशीला, अपनी बात दूसरों से मनमाने वाला। साथ ही बड़ा ही नाजुक मिजाज। मिर्च-मसाले और दूध-घी का प्रेमी। धीरे-धीरे सहजता से किसी काम को करना आदत में नहीं।

मानसिक कार्यों में लगे रहना, लेकिन चलने-फिरने से कतराना। ऊंची आवाज, तेज रोशनी, हवा का तेज झोंका को बर्दाश्त नहीं कर सकता। भोजन में मीन-मेख निकालना। सिर लपेटने से आराम। ठंड से तकलीफ बढना। भोजन के 2-3 घंटे बाद पेट की तकलीफें बढना।

कब्ज रहना, पेट साफ नहीं होना। भोजन के बाद नींद की विवशता। बुखार का हर बार समय से पहले आना। महिलाओं में महावारी समय से पहले आती है। आदि। यह दवाई रात्री सोते समय ही दी जानी चाहिये।

बेलाडोना—

भयंकर उत्ताप, भयंकर रक्तिमा/लाली और भयंकर जलन ये तीन प्रमुख सूचक लक्षण हैं। जो सूजन, आंख दु:खने, बवासीर, गठिया, जोड़ों के दर्द में पाये जाते हैं। रक्त संचय से भयंकर सिर दर्द। दर्द एकदम आता है और एकदम जाता है। प्रकाश, आवाज, शोर, गंध, स्पर्श/छुअन सहन नहीं होना। मूत्राशय भरा होने पर भी पेशाब आसानी से नहीं निकलता। ढके हुए स्थान पर पसीना आना। रोगी को नींबू की चाहत होती है और नींबू के सेवन से तकलीफ में राहत भी मिलती है। आदि।

इपिकाक—रोगी को कोई भी तकलीफ हो अगर वमन/कय/उल्टी से पहले और वमन करने के बाद भी वमन करने की इच्छा बनी रहे तो इपिकाक सर्वोत्तम दवाई है। खुली हवा में तकलीफों में कमी आना और गर्मी या तर हवा में तकलीफें बढना। आदि।

आर्सेनिक एल्बम—

किसी भी तकलीफ के दौरान रोगी को-बेचैनी, घबराहट, मृत्युभय और अत्यन्त कमजोरी अनुभव होना इस औषधि के सर्वप्रमुख लक्षण हैं। रोगी को अत्यधिक प्यास लगती है, लेकिन फिर भी रोगी अधिक पानी नहीं पीता, बल्कि बार-बार थोड़ा-थोड़ा पानी पीता है। ज्वरावस्था में रोगी प्यासा होता है, लेकिन पानी पीना नहीं चाहता है, क्योंकि पानी पीने से उल्टी/कय/वमन आ जाती है। फिर भी उसकी प्यास इतनी जबरदस्त होती है कि वह न चाहते हुए भी थोड़ा-थोड़ा पानी पीता जाता है। रोगी के आन्तरिक अंगों से निकलने/बहने वाला स्त्राव जलन पैदा करने वाला होता है। रोगी साफ-सफाई पसन्द करता है। रोगी एक जगह टिक नहीं सकता।

विचित्र लक्षण : रोगी का बदन दूसरों के लिये ठंडा, लेकिन खुद रोगी ताप/जलन का अनुभव करता है। इसके साथ-साथ रोगी को किसी भी अंग/रोग में जलन होने पर भी गर्मी/सेंक/गर्म चाय आदि से आराम मिलता है।

चायना या सिनकोना—

होम्योपैथी के आविष्कार का इतिहास इसी दवाई से जुड़ा हुआ है। ज्वर में शीत या पूर्ण उत्ताप की स्थिति में रोगी को प्यास लगे को इस दवाई को कभी नहीं देना चाहिये। बल्कि इसके रोगी को शीत शुरू होते ही प्यास जाती रहती है। हां पसीना आने पर रोगी को खूब प्यास लगती है। सम्पूर्ण पेट में हवा का गोला सा भरा रहना और डकार आना, लेकिन आराम नहीं आना, इस दवाई का प्रमुख लक्षण है। शरीर से जीवनरक्षक द्रव्यों के बह जाने के कारण आयी दुर्बलता को दूर करने वाली यह अमूल्य दवाई है। आदि।

सावधानी/चेतावनी : उक्त या अन्य किसी भी दवाई का सेवन करने से पूर्व किसी चिकित्सक से परामर्श कर लेना उचित होगा। बेहतर होगा स्वयम् डॉक्टर न बनें, डॉक्टर के पास जाएं।