हम जिस भी पेशे में हैं, क्या हमें अपनी जिम्मेदारी और गरिमा का बिल्कुल लिहाज नहीं रहा है? यह समझ में आता है कि एक कारपोरेटपरस्त सरकार किसानों को आंदोलन के पहले दिन से ही बदनाम करने की मुहिम छेड़ दे। क्योंकि वह देश की जनता, खास कर मेहनतकश किसानों-मजदूरों-कारीगरों-बेरोजगारों-अर्धबेरोजगरों को नागरिक नहीं, सरकार की कृपा पर जीने वाली प्रजा मान कर चलती है। लेकिन नागरिक समाज के पेशेवर महानुभाव संगठनात्मक रूप से किसानों को बदनाम करें, यह नागरिक समाज के रूप में हमारी गिरावट को बताता है।
यह निहायत अफसोस की बात है कि सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष आदीश चन्द्र अग्रवाल (Supreme Court Bar Association President Adish Chandra Aggarwal) ने सर्वोच्च न्यायधीश को पत्र लिख कर मांग की है कि वे स्वत: संज्ञान लेकर “पापी” (एरींग) किसानों, जो जबरदस्ती दिल्ली में घुस कर दिल्ली के नागरिकों के रोजमर्रा जीवन को अस्त-व्यस्त करना चाहते हैं, के खिलाफ कार्रवाई करे।
यह तो अभी पता चलना है कि मुख्य न्यायाधीश और उनकी सर्वोच्च अदालत बार अध्यक्ष के इस पत्र और उसमें की गई मांग पर क्या कहेंगे? अथवा बार एसोसिएशन के अन्य पदाधिकारी एवं सदस्य वकील क्या रुख अपनाएंगे? अलबत्ता, इसका जरूर अनुमान होता है कि सरकार ने पहले दिन से ही नागरिक समाज के विभिन्न पेशेवर संगठनों को किसानों को बदनाम करने के लिए लामबंद करने की रणनीति बनाई है। हो सकता है सुप्रीम
चुनाव के पहले ही लाल किले और उसके बाद संसद के भाषण में प्रधानमंत्री अपने तीसरे कार्यकाल की घोषणा कर चुके हैं। साथ ही अपने तीसरे कार्यकाल में कुछ “बड़े” काम करने का निश्चय भी पहले ही बता चुके हैं। तीसरे कार्यकाल में किए जाने वाले कामों में वापस लिए गए 3 कृषि कानूनों को और ज्यादा कारपोरेटपरस्त बना कर लागू करने का “बड़ा” काम भी शामिल हो सकता है। सरकार ने कानून वापस लेते समय यह कह दिया था कि मौका आने पर उन्हें लागू कर दिया जाएगा।
कर्पूरी ठाकुर, चौधरी चरण सिंह और एमएस स्वामीनाथन को दिए गए भारत-रत्न उसी बड़े काम को अंजाम देने की दिशा में सरकार की कवायद है। कर्पूरी ठाकुर और चौधरी चरण सिंह के “वारिस” किसानों-मजदूरों को सरकार के पाले में खींचेंगे। जो नहीं आएंगे, उन्हें सुरक्षा बलों और खुद किसानों के हाथों प्रताड़ित करवाएंगे! 2020-21 का किसान आंदोलन इसका उदाहरण है। उस आंदोलन में 750 किसानों की मौत हुई थी। उत्तर प्रदेश के एक निर्वाचित भाजपा विधायक ने खुले आम ‘राष्ट्र-विरोधी’ किसान आंदोलनकारियों को गोली मारने का आह्वान किया था। और गाजीपुर बॉर्डर पर भाजपा समर्थकों के साथ मिल कर किसान नेता राकेश टिकैत को सबक सिखाने की योजना बनाई थी। चारों तरफ से घिरे राकेश टिकैत की आंखों से बरबस आंसू निकल आए थे।
आशा की जानी चाहिए कि उत्तम से अधम पेशा बना दी गई कृषि में मरने-खपने वाले किसान इस बार कारपोरेट के बेलगाम घोड़े की गर्दन में हाथ डाल कर उसे मजबूती से काबू में करेंगे।