Hastakshep.com-हस्तक्षेप-राहुल गाँधी के विरोधियों

पिछले दिनों कांग्रेस के दो राष्ट्रीय प्रवक्ताओं गौरव वल्लभ और रोहन गुप्ता ने कांग्रेस छोड़कर भाजपा का दामन थाम लिया. गौरव जहाँ झारखंड और राजस्थान से विधान सभा के असफल चुनाव लड़ चुके थे, वहीं रोहन गुप्ता को कांग्रेस ने अहमदाबाद पूर्वी से लोकसभा टिकट दिया था जिसे उन्होंने पहले व्यक्तिगत कारण बताकर लौटाया और फिर भाजपा में चले गए. दोनों कांग्रेस पर राम और हिंदू धर्म विरोधी होने का आरोप लगा रहे हैं. 

चुनावी मौसम में पलटी मारना आम बात है और ये दोनों कोई ज़मीनी नेता भी नहीं नहीं हैं जिनके जाने से भाजपा को कोई फ़ायदा और कांग्रेस को कोई नुकसान हो.  फिर भी इन दोनों के बहाने कांग्रेस की आंतरिक कार्यशैली ज़रूर उजागर हुई है. 

पहले बात करते हैं गौरव वल्लभ की.

जमशेदपुर के एक कॉलेज में मैनेजमेंट के इस शिक्षक को 2019 में कांग्रेस ने जमशेदपुर से विधान सभा चुनाव लड़ाया था जहाँ वो तीसरे नम्बर पर रहे. फिर, 2023 में उन्हें राजस्थान विधान सभा चुनाव में उदयपुर से लड़ाया. यहाँ वो 32 हज़ार वोट से हारे. यानी सिर्फ़ टीवी डिबेट में पार्टी की बात रखने और सोशल मीडिया पर सक्रिय होने के कारण कांग्रेस ने उन्हें राहुल गाँधी के टक्कर का नेता मान लिया जो दो राज्यों से चुनाव लड़ सकता हो. सनद रहे, वो मैनेजमेंट के शिक्षक थे और सब कुछ मैनेज करके ही बोलते थे. कभी भी उन्हें यूनिफॉर्म सिविल कोड, सीएए - एनआरसी या वैचारिक मुद्दों पर कुछ भी बोलते नहीं देखा गया था.

अब बात गुजरात के रोहन गुप्ता की.

रोहन गुप्ता के पिता राजकुमार गुप्ता जनता मोर्चा पार्टी से विधायक थे, जिन्होंने बाद में कांग्रेस ज्वाइन कर ली थी. वो अहमद पटेल के क़रीबी थे. 2012 के विधान सभा चुनाव में रोहन गुप्ता सोशल मीडिया का काम देखते थे. उन्हें बड़ा सोशल

मीडिया इंफ्लुएंसर बता कर दिल्ली शिफ्ट कर दिया गया, जहाँ वो दिव्या स्पंदना यानी फिल्म एक्ट्रेस रम्या के मातहत थे. रम्या सोशल मीडिया की अखिल भारतीय हेड थीं.

कांग्रेस के दिवालियेपन का अंदाज़ा आप इससे लगा सकते हैं कि उसे इस काम के लिए अपने किसी संगठन का बन्दा या प्रो कांग्रेस वैचारिकी का कोई पत्रकार नहीं मिला. फ़िर 3 साल बाद रोहन की जगह सुप्रिया श्रीनेत ने ले ली. उसके कुछ समय बाद ही रोहन के व्यावसायिक सम्बन्ध अमित शाह के क़रीबी अजय पटेल से होने की खबरें आने लगीं. तब रोहन की पत्नी और भाई के अजय पटेल की कंपनी में इंवेस्ट करने के सबूत सामने आए थे. 

कोई और पार्टी होती तो ऐसे आरोपी को बाहर का रास्ता दिखा देती, लेकिन कांग्रेस ने उन्हें अहमदाबाद पूर्वी से लोकसभा टिकट दे दिया. 

अब सवाल है कि ऐसे लोगों को कांग्रेस अहम रोल में क्यों रखती है और उन्हें प्रमोट करने वाले लोग ऐसा क्यों करते हैं

ध्यान रखिये कि ऐसे लोगों में दो बातें खास हैं- ये विचारविहीन लोग हैं और इनकी कुल जमा पूंजी सोशल मीडिया के फॉलोवर हैं और ऐसे लोग भाजपा में जाने के बाद राहुल गाँधी को निशाना बनाते हैं. यानी उन्हें कांग्रेस के अंदर इसी दिन के लिए पाला-पोसा जाता है. यह पूरा मोडस ओपेरैंडी राहुल गाँधी को अगंभीर साबित करने के एजेंडे का हिस्सा है, जिसे राहुल गाँधी के इर्द गिर्द के लोग ही चलाते हैं. कांग्रेस का मीडिया सेक्शन खासकर सोशल मीडिया विभाग इसका केंद्र है क्योंकि वहाँ तकनीकी दक्षता की आड़ में संघी और विचारहीन लोगों को आसानी से प्लांट किया जा सकता है. 

राहुल गाँधी को टार्गेट करवाने का खेल कैसे वरिष्ठ नेता करते हैं इसका एक और उदाहरण देखिये. लोकसभा चुनाव के प्रत्याशियों की स्क्रीनिंग के लिए उत्तर प्रदेश की पीईसी (प्रदेश एलेक्शन कमेटी)  की बैठक में सपा और भाजपा दोनों के ही करीबी एक वरिष्ठ नेता ने कानपुर से सिर्फ़ अजय कपूर का ही नाम भेजने का दबाव बनाया. जबकि सियासी गलियारों में यह चर्चा आम थी कि कई बार के कांग्रेसी विधायक अजय कपूर का भाजपा में जाना तय है. यानी पूरी व्यवस्था इस बात की की जा रही थी कि अजय कपूर कांग्रेस का टिकट मिलने के बाद राहुल गाँधी को हिंदू विरोधी बताते हुए भाजपा में जाते. लेकिन प्रदेश अध्यक्ष अजय राय शायद इस खेल को भांप गए थे और उन्होंने आलोक मिश्रा का नाम जुड़वा दिया. दूसरे ही दिन अजय कपूर भाजपा में चले गए. 

2014 और 2019 के बाद यह तीसरा लोकसभा चुनाव है जिसमें सीधे राहुल गाँधी की प्रतिष्ठा दाव पर लगी है. अगर उन्हें यह बाज़ी जीतनी है तो अपने अंदरूनी विरोधियों का सफाया पहले करना होगा.

Who gives protection to Rahul Gandhi's opponents in Congress?

(एक संदेश)

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