नई दिल्ली,13 फरवरी। आगामी 10 मार्च को हिंदुत्व और मनुवाद के खिलाफ नागपुर से महिलाएं हुंकार भरेंगी। इसके लिए “चलो नागपुर !” नारा भी दिया गया है।
सामाजिक कार्यकर्ता मंजुला प्रदीप ने यह जानकारी देते हुए अपनी फेसबुक टाइमलाइन पर एकसंक्षिप्त नोटसाझाकियाहै,जो निम्नवत् है।
आज हम भारत में एक ऐसे मुकाम पर खड़े हैं, जहां गैर बराबरी लगातार बढ़ती जा रही है तो समुदायों के बीच नफरत की दीवारें खड़ी करने की कोशिश की जा रही है। साम्प्रदायिकता, पितृसत्ता और जातिवाद के विरुद्ध उठी आवाजों को न केवल दबाया जा रहा है, बल्कि उन्हें कुचला जा रहा है। यह तानाशाही तब और तकलीफें बढ़ा देती जब कोई भी समुदाय अपनी पहचान की जागरूकता के साथ अपने हक का दावा पेश करते हैं और खुद को अकेला, कमजोर और टूटा हुआ महसूस करने लगते हैं। बेशक धर्म जाति, समुदाय, योनिकता, लिंग, विकलांगता, उम्र या रोजगार के सरोकारों को अभिव्यक्त करते रहे हो, बावजूद संविधान ने उन्हें उनके हक की गारंटी और सुरक्षा दी है।
हमारा देश एक लोकतान्त्रिक धर्मनिरपेक्ष देश है। हमारा संविधान किसी को भी ये अधिकार नहीं देता कि किसी व्यक्ति विशेष या समुदाय को उसकी पहचान या धर्म के आधार पर उसके साथ भेदभाव का व्यवहार करे या उनका अपमान, हिंसा, दमन, जुल्म और अत्याचार करे। दलित आदिवासी, मुस्लिम, ट्रांस जेंडर समुदायों पर बढ़ते अत्याचारों की कड़ी में दिशा, डेल्टा मेघवाल, सोनी सोरी, तारा, मेवात और मुजफरनगर में मुस्लिम महिलाओ पर यौन अत्याचारों की लम्बी लिस्ट मौजूद है। बुलढाना में 12 आदिवासी नाबालिग छात्राओं का यौन शोषण, कुरुक्षेत्र की छात्र का दूसरी बार बलात्कार जैसे कृत्य हमारे समक्ष मुंह चिढ़ा रहे हैं।
इन घटनाओ से क्षुब्ध हो कर महिला आन्दोलन की विभिन्न कार्यकर्ताओं और नेत्रियों ने मिल कर इस ओर संघर्ष के नए सफर की शुरुआत करने का मन बनाया है। इस
10 मार्च 2017 एक ऐतिहासिक दिन होगा जिस दिन हम सब मिलकर भारत की पहली प्रशिक्षित शिक्षिका कवयित्री, लेखिका महिला अधिकारों की चैम्पियन युगनायिका क्रन्ति ज्योति सावित्रीबाई फुले, जो खुद पिछड़ी जाति में जन्मी थी, के स्मृति दिवस पर नागपुर में बड़ी संख्या में एकत्र हो कर धार्मिक पाखण्डवाद और निरंकुशता के विरुद्ध अपनी अभिव्क्तियों को सांस्कृतिक रंग देंगे।
ज्ञातव्य है कि सावित्रीबाई फुले ने उन्नीसवी शताब्दी में ब्राहमणवादी जातिवादी पितृसत्ता के खिलाफ बिगुल बजाया था। शूद्रों व महिलाओं को शिक्षा देकर मनुस्मृति और खोखले धर्मशास्त्रों की पोल खोली थी। महिलाओ के विरुद्ध थोपी गयी अमानवीय परम्पराओं का बहिष्कार किया।