नई दिल्ली, 20 नवंबर 2019. इलेक्टोरल बॉन्ड योजना (Electoral bond scheme) को लेकर कांग्रेस ने सरकार पर फिर से निशाना साधते हुए आरोप लगाया है कि यह सरकारी 'धनशोधन' से कम नहीं है।
कांग्रेस ने आरोप लगाया कि 2018 से 6,128 करोड़ रुपये के इलेक्टोरल बॉन्ड जारी किए गए, जिसमें से बड़ा हिस्सा भाजपा को गया है।
कांग्रेस ने कई राज्यों में विधानसभा चुनावों से पहले नियमों में परिवर्तन को लेकर प्रधानमंत्री पर निशाना साधा है। इसे लेकर आरोप है कि इससे भाजपा को फायदा पहुंचा है।
राज्यसभा में विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद ने कहा, "गोपनीयता' व 'साजिश' ने अब खुद प्रधानमंत्री को कटघरे में खड़ा किया है, क्योंकि इलेक्टोरल बॉन्ड योजना की पूरी धोखाधड़ी तीन सिद्धांतों पर आधारित है -'दाता' को फंड के खुलासे की जरूरत नहीं है, राजनीतिक दल को दाता के नाम का खुलासा करने की जरूरत नहीं है और 'दाता' द्वारा राजनीतिक दल को दान दी जाने वाली राशि की कोई सीमा नहीं है।"
“भाजपा इस सरकार को देश के चंद बिजनेस घरानों से मिलकर चला रही है। राजनैतिक दलों के बोलने पर उन पर राजनीति का ठप्पा लगा दिया जाता है। परंतु, RTI द्वारा ये साबित हो गया कि हमारी आपत्तियां सही साबित हो गई : गुलाम नबी आजाद
भाजपा सरकार में इलेक्टोरल बॉण्ड के बारे में RTI के जरिए सामने आया है कि PMO का इसमें दखल था। यह पहली बार हुआ है, जब PMO ने ही कहा हो कि नियम तोड़ दो। ऐसा हमने कभी नहीं देखा।
इस नई योजना में न तो चंदा देने की कोई सीमा निर्धारित
इस योजना के बारे में खुद RBI ने कहा है कि ये मनी लॉन्ड्रिंग को बढ़ावा देगी। साथ ही, मुद्रा को भी कमजोर करने का काम होगा। न पैसे देने वाले का नाम बताया जा रहा है कि, वो- स्मगलर है; फ्रॉड है या कोई आतंकवादी है। ये पूरी तरह गैरकानूनी है।
चुनाव आयोग ने कहा है कि इस योजना से चंदा देने की पारदर्शिता खत्म हो जाएगी। इससे शैल कंपनियों के जरिए राजनैतिक दलों को काले धन का प्रवाह बढ़ जाएगा। RTI में बार-बार उल्लेख है कि ये PMO की निगरानी में हुआ है।”
पार्टी ने आरोप लगाया है कि दस्तावेजों के अनुसार, सरकार ने इस मुद्दे पर भारतीय रिजर्व बैंक और चुनाव आयोग को दरकिनार कर दिया। सरकार कर्नाटक विधानसभा चुनाव के लिए धन प्राप्त करना चाहती थी, जिसके लिए इलेक्टोरल बॉन्ड योजना शुरू की गई थी, लेकिन आर्थिक मामलों के सचिव एस. सी. गर्ग द्वारा इसे अस्वीकार कर दिया गया था।
"प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तब इलेक्टोरल बॉन्ड योजना का उल्लंघन करने का निर्देश दिया और इसे मई 2018 के कर्नाटक चुनाव से पहले मंजूरी दे दी। वित्त मंत्रालय ने तदनुसार पीएमओ के 11 अप्रैल, 2018 के निर्देश को रिकॉर्ड किया और फाइल को फिर से प्रस्तुत किया। सचिव (आर्थिक मामलों) ने अब उलटफेर किया और प्रधानमंत्री के निर्देशों के मद्देनजर अपने रुख में बदलाव कर दिया। इलेक्टोरल बॉन्ड योजना के उल्लंघन पर उन्होंने कहा कि कर्नाटक विधानसभा चुनाव से पहले 'जरूरत' के मद्देनजर बॉन्ड जारी किए जाते हैं। 'जरूरत' प्रधानमंत्री व भाजपा की थी।"
आनंनद शर्मा ने कहा,
“इस नई योजना से भारतीय राजनीति में भ्रष्टाचार का सरकारीकरण सामने आता है। भाजपा सरकार ने चुनाव आयोग और RBI की आपत्तियों को नजरअंदाज किया।
इसमें न चुनाव आयोग को पता होगा और न ही सर्वोच्च न्यायालय को। इसकी जानकारी सिर्फ सरकार को रहेगी। ये बॉण्ड SBI के माध्यम से जारी किए गए, ये एक अलग मुद्रा का काम करेंगे।
इससे कोई भी व्यक्ति या संस्थान किसी अन्य दल को चंदा नहीं देगा। क्योंकि, सारी जानकारी सरकार के पास रहेगी। इससे राजनैतिक भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलेगा। इसका सारा पैसा भाजपा को जा रहा है, जिसकी किसी को जानकारी नहीं है।
मई 2018 में कर्नाटक में चुनाव थे। इलेक्टोरल बांड के मामले में सीधा PMO से हस्तक्षेप किया गया। कहा गया कि इसके लिए अलग से "विंडो क्रिएट" किया जाए। जो अधिकारी इस पर आपत्ति जता रहे थे, उनका रुख PMO के हस्तक्षेप के बाद बदल गया।
इसमें पहली खिड़की में ₹222 करोड़ में से लगभग 95% भाजपा को गया था। अब तक टोटल इलेक्टोरल बॉण्ड की फंडिंग में से 95%-97% भाजपा को गया है।
सुप्रीम कोर्ट ने सारी जानकारी चुनाव आयोग को देने का आदेश दिया था, मगर भाजपा ने अभी तक इसकी जानकारी चुनाव आयोग को नहीं दी है।
हमारी मांग है कि इस सत्र में सरकार इससे जुड़ी सारी जानकारी संसद के दोनों सदनों में दे। किस दल को कितना पैसा इलेक्टोरल बांड के जरिए मिला, इसकी सारी जानकारियां सार्वजनिक की जाए।
ये भारत के प्रजातंत्र और हमारी चुनावी प्रक्रिया को कलंकित करने वाली योजना है। ये बियरर बांड नहीं "बेईमानी बांड" है। इस विषय में माननीय प्रधानमंत्री जी की सीधे जवाबदेही बनती है। इसलिए हमारी मांग है कि इस सत्र में जवाबदेही सुनिश्चित की जाए।
इलेक्टोरल बांड का मतलब है- बेईमानी बांड। ये भाजपा द्वारा बड़े कॉर्पोरेट से मिलकर "पैसा वसूली स्कीम" है।”
"इस लिहाज से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भूमिका और जिम्मेदारी ज्यादा बड़ी बनती है। अगर भारत का प्रधानमंत्री व्यावसायिक घरानों से अपारदर्शी तरीके से इलेक्टोरल फंडिंग प्राप्त करेगा तो संविधान व कानून को कौन कायम रखेगा?
श्री सुरजेवाला ने कहा कि,
“इनका वादा तो था- कालेधन को वापस लाने की, मगर हो उल्टा रहा है। संसद से छल किया गया और इसकी एकमात्र जिम्मेदारी बनती है- प्रधानमंत्री की।
वित्त मंत्रालय ने कहा कि हर विधानसभा चुनाव से पहले इलेक्टोरल बांड नहीं खोल सकते। मगर इस आदेश के 6 दिन के भीतर ही प्रधानमंत्री ने हिदायत दी कि कानून को रद्दी की टोकरी में फेंकिए और कर्नाटक चुनाव से पहले इलेक्टोरल बांड को खोलिए।
कर्नाटक चुनाव के बाद एक बार फिर राजस्थान, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश चुनाव के समय एक बार फिर कानून का उल्लंघन किया गया। इसलिए सारी जिम्मेदारी प्रधानमंत्री की बनती है और वो इस मामले में सामने आकर जवाब दें।”
भाजपा इस सरकार को देश के चंद बिजनेस घरानों से मिलकर चला रही है। राजनैतिक दलों के बोलने पर उन पर राजनीति का ठप्पा लगा दिया जाता है। परंतु, RTI द्वारा ये साबित हो गया कि हमारी आपत्तियां सही साबित हो गई : @ghulamnazad #BhrashtJanataParty pic.twitter.com/nZSB2NYAiR
— Congress (@INCIndia) November 20, 2019