दुनिया में आज के दौर के शासक निरंकुश हैं, दक्षिणपंथी हैं, कट्टरवादी हैं, छद्म-राष्ट्रवादी हैं, जनता से दूर हैं, और सबसे बड़े बेवकूफ भी हैं – इसका उदाहरण अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प से अच्छा मिलाना कठिन है. दुनिया का इतिहास अगर आगे लिखा जाएगा तो उसमें आज के दौर के शासकों की बेवकूफियों (Idiots of rulers) पर जरूर एक अध्याय होगा. भारत के प्रधानमंत्री तो केवल प्राचीन ग्रंथों में विज्ञान खोजते हैं और बादलों में रडार को विफल करते हैं, डोनाल्ड ट्रम्प तो रोज कोविड 19 की दवा खोज लाते हैं. पहले मलेरिया की दवा हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन, फिर एंटी-वायरल दवा रेम्देसेविर, फिर पराबैगनी किरणें और अब तो डिसइन्फेक्टैंट पीने की सलाह भी देने लगे हैं. अब तो अमेरिका के बड़े स्वास्थ्य विशेषज्ञ (US Big Health Specialist) भी कहने लगे हैं की ट्रम्प अपने प्रेस ब्रीफिंग (Donald Trump's press briefing) द्वारा जनता के स्वास्थ्य से सक्रिय खिलवाड़ करने लगे हैं.
कोविड 19 के 237 मरीजों के साथ किया गए प्रयोगों में 158 रोगियों को यह दवा दी गई और शेष 79 का उपचार बिना इस दवा के किया गया. जिन्हें रेम्देसेविर दी गयी थी उसमें 14 प्रतिशत व्यक्तियों की मृत्यु हो गई, जबकि जिन्हें यह दवा नहीं दी गई थी उसमें मृत्य दर 13 प्रतिशत ही रही. रेम्देसेविर लेने वाले मरीजों में इस दवा के कुछ गंभीर दुष्परिणाम भी देखे गए.
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कुछ समय पहले तक अमेरिका में राष्ट्रपति ट्रम्प के अनुसार मलेरिया की दवाएं (Malaria
ट्रम्प की धमकी के बाद भारत सरकार ने आनन्-फानन में हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन की टैबलेट बड़ी संख्या में अमेरिका भेज दीं. इसके बाद ब्राज़ील समेत लगभग 55 देशों में भारत सरकार मलेरिया की यह दवा भेज चुकी है.
ब्राज़ील के राष्ट्रपति जेर बोल्सोनारो के अनुसार कोविड 19 सामान्य फ्लू से अधिक कुछ नहीं है और मीडिया इसे बढ़ा-चढ़ा कर बता रहा है. कोविड 19 से निपटने के लिए सख्त पाबदियों के हिमायती पूर्व स्वास्थ्य मंत्री लुइज़ हेनरिक मंदता को उन्होंने 16 अप्रैल को अपने मंत्रिमंडल से बाहर का रास्ता दिखा दिया. इस सम्बन्ध में वहां की समाजवादी विचारधारा वाली लिबर्टी पार्टी के एक सदस्य ने कहा था कि ब्राज़ील दुनिया का अकेला देश होगा, जहां कोविड 19 को नियंत्रित करने के कारण स्वास्थ्य मंत्री को हटना पड़ा.
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भारत ने हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन का तोहफा ट्रम्प के साथ ही जेर बोल्सोनारो को भी दिया था, जिस पर जेर बोल्सोनारो (Jer Bolsonaro) ने मोदी जी को हनुमान बताया था. राष्ट्रपति और स्वास्थ्य मंत्री में इस हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन पर भी तीव्र मतभेद थे. राष्ट्रपति इस दवा को रामवाण बता रहे थे, जबकि स्वास्थ्य मंत्री ने कहा था कि मैं विज्ञान के साथ हूँ और जिस दवा का कोविड 19 के मरीजों पर कोई व्यापक परीक्षण नहीं किया गया हो उसे मैं बढ़ावा नहीं दे सकता था.
अमेरिका में राष्ट्रपति ट्रम्प ने हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन के विरोध के कारण बायोमेडिकल एडवांस्ड रिसर्च एंड डेवलपमेंट अथॉरिटी के प्रमुख, रिक ब्राइट, को भी पद से हटा दिया है. रिक ब्राइट का आरोप है कि ट्रम्प हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन को कोविड 19 के इलाज के लिए रामवाण मानते हैं और उन्हें भी इसके प्रचार के लिए कहा था.
रिक ब्राइट के अनुसार ट्रम्प चाहते थे कि न्यू यॉर्क और न्यू जर्सी के सभी अस्पतालों में हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन भरपूर मात्रा में पहुंचाया जाए, और डोक्टरों पर दबाव डाला जाए कि वे इसी से इलाज करें. पर, रिक ब्राइट ने इसके लिए मना कर दिया था और कहा था कि वे विज्ञान के साथ हैं और जानते हैं कि कोविड 19 के मरीजों के साथ इसका व्यापक परीक्षण कहीं नहीं हुआ है. रिक ब्राइट के अनुसार हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन को भारी मात्रा में पाकिस्तान और भारत से मंगाया गया, पर इसकी जांच अमेरिकी फ़ूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (American Food and Drug Administration) ने नहीं की थी, जो अमेरिकी क़ानून के हिसाब से जरूरी थी. बाद में फ़ूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन ने भी हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन के उपयोग के विरुद्ध चेतावनी जारी कर दी थी.
सबसे पहले फ्रांस के डॉक्टरों ने हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन का परीक्षण कोविड 19 के मरीजों पर (Trial of hydroxychloroquine on Covid 19 patients) किया था. इसमें वैज्ञानिकों के अनुसार इससे फायदा नजर आया था, पर बाद में जब प्रयोग का विस्तृत विश्लेषण किया गया तब पता चला कि इस प्रयोग में बहुत सारी गलतियां की गयीं थीं, और इसे प्रयोग और निष्कर्ष को दुनियाभर के वैज्ञानिकों ने सिरे से खारिज कर दिया. पर, डोनाल्ड ट्रम्प को कोविड 19 से लड़ने का एक यही तरीका समझ आया. स्वास्थ्य विशेषज्ञों के लगातार विरोध के बाद भी ट्रम्प इसे रामवाण बताते रहे.
अमेरिका में एनबीसी न्यूज़ के अनुसार न्यू यॉर्क में हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन देने के बाद एक महिला की मृत्यु हो गई. अमेरिका में कोविड 19 से ग्रस्त 368 बुजुर्गों पर किये गए एक अध्ययन से स्पष्ट होता है कि हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन लेने वाले मरीजों में मृत्यु दर अधिक रहती है. ब्राज़ील में 81 मरीजों पर किये गए अध्ययन के भी यही नतीजे मिले. चीन में 150 मरीजों पर किये गए अध्ययन का नतीजा था, हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन देने के बाद मरीजों की हालत में सुधार के कोई साक्ष्य नहीं हैं.
न्यू यॉर्क स्थित मेयो क्लिनिक के कार्डियोलोजिस्ट माइकल एकरमैंन के अनुसार क्लोरोक्विन और हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन के प्रभाव से कुछ समय तक दिल की धड़कन असामान्य हो जाती है, इसे मेडिकल की शब्दावली में अर्रीथीमा (अतालता - arrhythmias meaning in hindi) कहा जाता है. कोविड 19 से जूझते मरीज की सामान्य अवस्था में भी दिल की धड़कन असामान्य रहती है, ऐसे में हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन के असर से उसकी धड़कन भी रुक सकती है. अब तक किसी भी बड़े पैमाने के प्रयोग में कोविड 19 के मरीजों को किसी भी फायदे की खबर नहीं आयी है, अलबत्ता इससे नुकसान तो बहुत देखे गए.
हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन से जुडी दूसरी चिंता भी स्वास्थ्य विशेषज्ञों को है. हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन को अक्सर एंटीबायोटिक अज़िथ्रोमाइसिन (Antibiotic Azithromycin) के साथ दिया जा रहा है और इसके बेवजह उपयोग से एंटीबायोटिक प्रतिरोधक बैक्टीरिया उत्पन्न होंगे. इससे दूसरी गंभीर समस्याएं पैदा होंगीं. इन सबके बीच सबसे बड़ा प्रश्न तो यही है, भारत कहीं दरियादिली में दुनिया में मौत का सामान तो नहीं भेज रहा है?
महेंद्र पाण्डेय
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।