हम सभी जानते हैं कि पौधों पर फूल लगते हैं और फूल ही फल बन जाते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि फूल फल में कैसे परिवर्तित हो जाते है? आइए, जानते हैं। फूल, पौधे का प्रजनन अंग (Reproductive organ of plant) है जिससे पौधों में लैंगिक प्रजनन की क्रिया (Sexual reproduction in plants) होती हैं।
किसी भी फूल के चार भाग होते हैं। आपने देखा होगा कि फूल के नीचे की तरफ हरे रंग की पंखुड़ी जैसी रचना होती है जिसमें फूल खिलने से पहले बंद होता है। उसे वाह्यदलपुंज कहते है।
दूसरा भाग फूल की पंखुड़ियां या दलपुंज होता है जो हमें फूल के रंग में ही दिखता है। जिनकी संख्या एक या एक से अधिक हो सकती है। फूल के डंठल पर पंखुड़ियों के बीच में कुछ लंबे-लंबे सूत्र जैसी रचनाएं निकलती हैं, जिनके ऊपरी सिरे थोड़े गोल या फूले हुए होते हैं। इन्हें पुंकेसर कहते हैं। पुंकेसर फूल का नर भाग होता है।
पुंकेसर के ऊपरी सिरे पर स्थित फूले हुए भाग को परागकोश कहते हैं और प्रत्येक परागकोश में दो पिंड होते हैं, जिन्हें परागकण कहते हैं। फूल के अंदर ही सुराही जैसी संरचना होती है जिससे फूल की पंखुड़ियां निकली हुई होती हैं। यह फूल का मादा भाग होता है। जो अंडप/कार्पेल कहलाता है। इसके ऊपर का हिस्सा वर्तिकाग्र और इसकी नली जैसी संरचना वर्तिका कहलाती है तथा नीचे की तरफ का अंडाकार हिस्सा अंडाशय कहलाता है। अंडाशय में उपस्थित अंडे जैसी संरचना बीजांड कहलाती है।
फूल के परिपक्व होने पर इसके पुंकेसर स्थित परागकोश से निकले परागकणों को कार्पेल के वर्तिकाग्र तक पहुँचने के लिए किसी माध्यम की आवश्यकता पड़ती है जिससे कि परागण की प्रक्रिया शुरू हो सके। जैसे कि हवा, कीड़े-मकोड़ों, तितलियों या फिर चमगादड़ों
रसभरी, गुच्छेदार फल का उदाहरण है और बहुखण्डित फल, फूलों के एक समूह (एक पुष्पक्रम) से गठित होता है। हर फूल एक फल का निर्माण करता है लेकिन यह सब एक एकल पिंड के रूप में परिपक्व होते हैं। इनके उदाहरण हैं, अनन्नास, खाद्य अंजीर, शहतूत।
देशबन्धु पर प्रकाशित - पूनम त्रिखा के लेख का संपादित अंश