नई दिल्ली , 28 अक्टूबर 2019. राजनीति में कहा जाता है कि कोई भी कभी भी स्थायी दोस्त या दुश्मन नहीं होता। ये जुमला राजनीतिक प्रतिद्वंदियों पर लागू होता है, मतदाताओं पर नहीं। जनमत एक विशेष उद्देश्य के प्रति आम जनता की संगठित भावना की अभिव्यक्ति होती है, ज़िसका सम्मान करना ही राज धर्म है।
हरियाणा में 2019 में 14 वीं विधान सभा के लिए हुये चुनाव में जिस प्रकार परिणाम आये, उसमें सत्तारूढ़ भाजपा को पूर्ण रूप से स्वीकारा नहीं गया। भाजपा जहां 75 पार के अपने लक्ष्य से पिछड़ कर पिछली बार 47 से कम 40 सीटें ही जीत पायी, वहीं मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस को भी भरपूर समर्थन नहीं मिला और 31 सीटों पर ही अटक गयी। विकल्प के तौर पर नयी पार्टी ले कर उभरे दुष्यंत चौटाला, जो देवी लाल राजनीतिक परिवार की चौथी पीढ़ी हैं, और राजनीतिक सत्ता की गृह कलह के कारण इनेलो छोड़ अपनी पार्टी बना कर चुनाव में उतरे थे, ने मोदी-शाह-मनोहर लाल को सत्ता से उखाड़ फेंकने की चुनौती दी थी, को जनता ने किसी हद तक समर्थन दिया, और 90 में से 10 सीटों पर जीत दिलवायी।
सारे चुनाव के दौरान दुष्यंत चौटाला की माता नैना चौटाला, जो स्वयं भी बाढ़डा से चुनाव लड़ीं और जीत गयीं, ने भी सत्ताधारी भाजपा की कुनीतियों को आधार बना कर भाजपा को हरियाणा की धरती से खदेड़ने का हरियाणा की जनता से आह्वान किया।
नैना चौटाला ने साफ तौर पर किसी भी कीमत पर भाजपा से कोई भी समझौता चुनाव परिणाम के बाद करने को भी जजपा की सैद्धान्तिक विचारधारा के खिलाफ स्पष्ट रुप से कहा था।
चुनाव परिणाम के
दुष्यंत चौटाला के निर्णय ने सभी विपक्षी पार्टियों के साथ-साथ अपनी पार्टी जजपा के समर्थकों तक को चौंका दिया। जमीनी स्तर से जजपा समर्थकों का इस निर्णय के प्रति तीखी व कठोर प्रतिक्रियाओं का तांता लग गया।
नयी सरकार के लिये शपथ ग्रहण में दुष्यंत चौटाला द्वारा उप मुख्यमंत्री पद लेना और पिता अजय चौटाला, जो कि भ्रष्टाचार के मामले मे सजायाफता तिहाड़ जेल में हैं, को कुछ दिनों की जेल से छूट होना को एक राजनीतिक समझौते से अलग राजनीतिक सौदे के रूप में तबदील करना माना जा रहा है। अपने मतदात्ताओं से एक विश्वासघात के रूप में समझा जाने लगा है। हरियाणा में नयी सरकार तो बन गयी लेकिन जनता को धोखा ही मिला।