लिवर ट्यूमर निकालने की सर्जरी (Liver tumor removal surgery) से जहां सुधार की सबसे ज्यादा संभावना रहती है, वहीं प्राइमरी लिवर कैंसर (Primary Liver Cancer) के दो-तिहाई से अधिक मरीजों के लिए सर्जरी का विकल्प नहीं रहता है, क्योंकि इसे पांचवां सबसे आम कैंसर माना जाता है और दुनिया भर में कैंसर से होने वाली मौत का तीसरा सबसे बड़ा कारण है।
लिवर कैंसर के लगभग 70 प्रतिशत मरीज कई कारणों से सर्जरी पद्धति नहीं अपना सकते हैं, मसलन, उनका ट्यूमर इतना बड़ा हो सकता है कि उसे निकाला न जा सके या वह बड़ी रक्त नलिकाओं या अन्य अंगों के साथ भी जुड़े हो सकते हैं। कई बार तो मरीजों के लिवर में कई इतने छोटे-छोटे ट्यूमर होते हैं कि उनकी सर्जरी जोखिमपूर्ण या अव्यावहारिक हो जाती है।
कई बार तो मरीजों पर कैंसर का इलाज भी बहुत असर नहीं करता है। लेकिन कैंसर के इलाज में हाल की कुछ तरक्की मददगार रही है, खासकर लिवर ट्यूमर के मामले में मिनिमली इनवेसिव और
लिवर ट्यूमर निकालने की सर्जरी से जहां सुधार की सबसे ज्यादा संभावना रहती है, वहीं प्राइमरी लिवर कैंसर के दो-तिहाई से अधिक मरीजों के लिए सर्जरी का विकल्प नहीं रहता है, क्योंकि इसे पांचवां सबसे आम कैंसर माना जाता है और दुनिया भर में कैंसर से होने वाली मौत का तीसरा सबसे बड़ा कारण है।
लिवर सर्जरी वैसे भी एक जटिल प्रक्रिया होती है क्योंकि कई सारी रक्त नलिकाएं हृदय से ही होकर गुजरती हैं या कई अंगों तक यहीं से रक्त नलिकाएं निकलती हैं। इसके अलावा लिवर बड़ी आसानी से क्षतिग्रस्त हो सकते हैं और इंजर्ड होने पर इससे बहुत ज्यादा रक्त निकल जाता है।
लिवर ट्यूमर जब कम और छोटे-छोटे हों, नजदीकी रक्त नलिकाओं तक नहीं फैले हों और सिरोसिस या अन्य लिवर समस्याएं न हों तो मरीज का लिवर ट्रांसप्लांट किया जा सकता है। लेकिन इसके बाद भी कई सारे मरीज लिवर ट्रांसप्लांट सर्जरी कराने की स्थिति में नहीं होते हैं। ऐसी परिस्थितियों में इंटरवेंशनल रेडियोलॉजिस्ट एम्बोलाइजेशन या थर्मल एबलेशन आदि जैसी मिनिमली इनवेसिव सर्जरी कर सकते हैं और इस सर्जरी के लिए भी मरीज की केस हिस्ट्री मायने रखती है।
परंपरागत एम्बोलाइजेशन सर्जरी में इलाज करने वाले रेडियोलॉजिस्ट पतली ट्यूब के जरिये बड़ी रक्त नलिका में कीमोथेरेपी दवा इंजेक्ट करते हैं जहां से लिवर तक रक्त पहुंचता है। इस दवा में वह तत्व भी मिलाया जाता है जो न सिर्फ ट्यूमर तक रक्त प्रवाह रोकने के लिए आर्टरी को ब्लॉक कर देता है बल्कि कीमो थेरेपी दवा को शरीर के अन्य हिस्सों में फैलने से भी रोकता है। इस प्रकार इसके जरिये सिर्फ ट्यूमर के पास ही दवा और इलाज केंद्रित रहता है।
इस तरह के इलाज में अमूमन ट्यूमर को विकसित करने वाले जरूरी ऑक्सीजन और पोषक तत्वों से वंचित कर दिया जाता है और इस प्रकार स्वस्थ टिश्यू को सुरक्षित किया जाता है।
यह ब्लॉकेज स्थायी या अस्थायी होती है, जो रक्त नलिका को ब्लॉक करने के लिए इस्तेमाल की गई दवा की प्रकृति पर निर्भर करती है।
इस दौरान भी लिवर को पेट और आंत से रक्त लाने वाली नस से रक्त आपूर्ति होती रहती है जिससे स्वस्थ टिश्यू जिंदा रह पाता है। रोग पुनरावृत्ति की स्थिति में एम्बोलाइजेशन के जरिये दोबारा इलाज किया जा सकता है।
जरूरत पड़ने पर रेडियोलॉजिस्ट ट्यूमर में रेडियोएक्टिव कण भेजने के लिए इस प्रक्रिया को अपना सकते हैं जो ट्यूमर इतने बड़े होते हैं कि इनका इलाज रेडियोएम्बोलाइजेशन सर्जरी से ही संभव हो सकता है।
यह उपचार पद्धति प्राइमरी और मेटास्टैटिक लाइव ट्यूमर दोनों के इलाज में इस्तेमाल होती है। मुख्य रूप से यह पैलिएटिव उपचार पद्धति है जिसका मतलब है कि यह मरीजों के रोग लक्षणों से राहत दिलाती है न कि क्यूरेटिव यानी पूरी तरह रोग मुक्त नहीं करती है। कैंसर की मानक पचार पद्धतियों से तुलना की जाए तो यह बहुत कम साइड इफेक्ट्स ही कम कर पाती है।
आम तौर पर यह प्रक्रिया एक्स-रे की मदद से अपनाई जाती है जो सर्जन/ रेडियोलॉजिस्ट को सीधे तौर पर ट्यूमर के लिए ही निर्दिष्ट करती है। अन्य तकनीकों में हीट या कोल्ड के जरिये ट्यूमर को नष्ट करना। यह तकनीक अक्सर तीन या कुछेक ट्यूमर वाले मरीजों पर अपनाई जाती है।
रेडियोफ्रिक्सी एब्लेशन सहित थर्मल एब्लेशन के कई प्रकार होते हैं जिसमें ट्यूमर को बहुत ज्यादा गर्म करने के लिए रेडियो तरंगों का इस्तेमाल किया जाता है, जबकि क्रायोएब्लेशन पद्धति में ट्यूमर को फ्रीज कर दिया जाता है।
थर्मल एब्लेशन की अन्य पद्धतियों में ट्यूमर कोशिकाओं के खात्मे के लिए लेजर, माइक्रोवेव्स और फोकस्ड अल्ट्रासाउंड तरंगों का इस्तेमाल किया जाता है। हीट या कोल्ड पद्धति का चयन आपके ट्यूमर के आकार, स्थान और स्वरूप पर निर्भर करता है।
लिवर ट्यूमर के इलाज की अन्य नॉन सर्जिकल पद्धति है मिनिमली इनवेसिव लेप्रोस्कोपिक या रोबोटिक सर्जरी। इस पद्धति में एक पतली, हल्की ट्यूब के मुहाने पर एक कैमरा लगाकर इसे पेट पर छोटा सा चीरा लगाने के जरिये ट्यूब को अंदर प्रवेश कराया जाता है, कुछेक मामलों में यह ट्यूब लिवर में भी प्रवेश कराई जाती है।
चिकित्सा प्रोफेशनल्स इन मिनिमली इनवेसिव पद्धतियों की प्रभावशीलता का मूल्यांकन कर रहे हैं और परंपरागत ओपन सर्जरी से उभरने वाली समस्याएं कम करने के लिए इनकी क्षमता परख रहे हैं। मसलन, मिनिमली इनवेसिव सर्जरी कराने से परंपरागत सर्जरी की तुलना में रिकवरी समय बहुत कम हो जाता है।
डा. प्रदीप मुले
( वरिष्ठ कंसल्टेट इंटरवेशनल रेडियोलोजिस्ट, फोर्टिस हास्पिटल, नई दिल्ली)
Easy Treatment of Liver Cancer
( नोट - यह समाचार किसी भी हालत में चिकित्सकीय परामर्श नहीं है। यह समाचारों में उपलब्ध सामग्री के अध्ययन के आधार पर जागरूकता के उद्देश्य से तैयार की गई अव्यावसायिक रिपोर्ट मात्र है। आप इस समाचार के आधार पर कोई निर्णय कतई नहीं ले सकते। स्वयं डॉक्टर न बनें किसी योग्य चिकित्सक से सलाह लें।)