सवालों का दायरा बढ़ता रहा, और जनता के बीच वर्ग भेद भी
मोदी सरकार के चार साल पूरे हो चुके हैं। इस दौरान देश में बहुत कुछ बदला, लोगों की सोच, नजरिया, राजनीति के तौर-तरीके यहां तक कि भाजपा का नारा भी। अच्छे दिन आने वाले हैं, भाजपा के चुनाव प्रचार का प्रस्थान बिंदु था, जो बाद में कई नारों से होता हुआ, सबका साथ, सबका विकास तक पहुंचा। पहले साल से ही भक्तिहीन जनता ने पूछना शुरू कर दिया था कि नरेन्द्र मोदी सबको साथ लेकर कहां चल पा रहे हैं? सबका विकास कहां हो रहा है? सवालों का दायरा बढ़ता रहा, और जनता के बीच वर्ग भेद भी। यह जाति, धर्म, वर्ण के भेद से ऊपर मोदी समर्थक और मोदी विरोधी लोगों का वर्ग भेद था। इससे पहले देश में शायद ही कभी आमजन के बीच राजनीति के कारण विभाजन की इतनी गहरी रेखा बनी हो। अब तो जो मोदीजी का साथ देते हैं, वह देशभक्त हैं, जो विरोध की आवाज उठाते हैं वे देशद्रोही हैं।
style="display:block; text-align:center;"
data-ad-layout="in-article"
data-ad-format="fluid"
data-ad-client="ca-pub-9090898270319268"
data-ad-slot="5649734626">
जनता ही साथ नहीं रही भाजपा के राज में
सबके साथ की बात करने वाली भाजपा के राज में जनता ही साथ नहीं रही। बहरहाल, 4 साल बाद भाजपा ने नया नारा दिया है, साफ नीयत, सही विकास। यह समझना कठिन नहीं है कि मोदीजी को नए नारे की जरूरत क्यों पड़ी। इस साल के अंत में विधानसभा चुनाव हैं और फिर आम चुनावों की तैयारी शुरु हो जाएगी। 2014 में ही मोदीजी ने 2025 में ये होगा, वो होगा, जैसी बातें करना शुरु कर दी थीं। यानी अंगद के
इसलिए अब उसे यह अहसास कराया जा रहा है कि सरकार की नीयत साफ है और विकास भी सही हो रहा है। बदलता जीवन, संवरता कल, तरक्की की रफ्तार, पिछड़े वर्गों की सरकार, किसानों की संपन्नता हमारी प्राथमिकता, तेज गति से बढ़ती अर्थव्यवस्था, भ्रष्टाचार पर लगाम, पारदर्शी हर काम, अच्छा स्वास्थ्य अब सबका अधिकार, विकास की नई गति, नए आयाम, नारी शक्ति देश की तरक्की और दुनिया देख रही है एक न्यू इंडिया, ये कुछ नए जुमले हैं जो सरकार की सही नीयत बतलाने के लिए गढ़े गए हैं। इन जुमलों को लेकर अब भाजपा के पदाधिकारी देश भर में सरकार का प्रचार करेंगे। सवाल ये है कि अगर विकास सही में होता, तो नए सिरे से जुमलों को गढ़ने की जरूरत क्यों होती?
वादे, जो जुमले बन गए
याद करें 2014, जब भाजपा नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री बनाने के लिए प्रचार कर रही थी, तब उन्हें किसी अवतार की तरह पेश किया गया था, कि उनके आते ही अच्छे दिन आ जाएंगे। बहुत से वादे किए थे, जैसे विदेशों में जमा काला धन वापस लाएंगे, सबके खाते में 15-15 लाख जमा होंगे। हर साल दो करोड़ नौकरियों मिलेगी। पेट्रोल के दाम कम करेंगे। महंगाई कम होगी और विकास दर बढ़कर 10 फीसदी तक हो जाएगी। किसानों और खेती की दशा सुधारी जाएगी। भारत को विश्व गुरू बनाया जाएगा। बुलेट ट्रेन चलाई जाएगी। और न जाने क्या-क्या, वादों की फेरहिस्त लंबी-चौड़ी है, जिन्हें एक जगह समेटना कठिन है। इन वादों की हकीकत यह है कि दो करोड़ नौकरियों का सपना पकौड़े तल कर आजीविका कमाने तक पहुंच गया। 2014 में बेरोजगारी की दर 3.41 प्रतिशत थी, जो 2018 में 6.23 प्रतिशत हो चुकी है। पेट्रोल डीजल के दामों में आग लगी हुई है। जबकि 2014 से अब तक हर साल एक्साइज ड्यूटी से सरकार को 4.5 करोड़ रुपए की कमाई हुई है। महिला उत्पीड़न मोदी राज में भी थमा नहीं है, बल्कि उन्नाव, कठुआ, सूरत जैसी घटनाओं के कारण भयावह हुई है। किसानों की आय को दोगुना करने के वादे का सच यह है कि 2010-14 के बीच कृषि विकासदर सालाना 5.2 प्रतिशत थी, जो 2014-18 में घटकर 2.4 प्रतिशत रह गई। भाजपा सरकार के कार्यकाल में किसानों की आत्महत्या की घटनाओं में 45 फीसदी का इजाफा हुआ है।
अपनी जगह बरकरार है भ्रष्टाचार
भ्रष्टाचार खत्म करने में नोटबंदी को भले ही मोदी सरकार ने अपना मास्टरस्ट्रोक बताया, लेकिन हकीकत यह है कि भ्रष्टाचार अपनी जगह बरकरार है। नोटबंदी के कारण जनवरी से लेकर अप्रैल 2017 तक अकेले 15 लाख लोगों की नौकरियां चली गईं। नए नोट छापने में सरकार पर 21 हजार करोड़ का भार पड़ा, जबकि आरबीआई को 16 हजार करोड़ वापस मिले। जीडीपी पर असर पड़ा और वह घटकर 7.93 प्रतिशत से घटकर 6.5 प्रतिशत पर आ गई। बैंकों में धोखाधड़ी के 12787 मामले सामने आए, जिनसे जनता को 17789 करोड़ का नुकसान उठाना पड़ा।
style="display:block; text-align:center;"
data-ad-layout="in-article"
data-ad-format="fluid"
data-ad-client="ca-pub-9090898270319268"
data-ad-slot="5649734626">
मर जवान-मर किसान, का तंज मोदीजी ने यूपीए सरकार पर कसा था, लेकिन हकीकत यह है कि यूपीए सरकार में 2010 से 2013 के बीच 10 जवान जम्मू-कश्मीर सीमा पर शहीद हुए तो 2014 से सितंबर 2017 तक यानी भाजपा शासन में 42 जवान शहीद हुए। शिक्षा की बदहाली भी सबको दिख रही है। फरवरी 2017 में प्रकाश जावड़ेकर ने दावा किया कि सरकार जीडीपी का 4.5 प्रतिशत शिक्षा में खर्च कर रही है। लेकिन आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट बताती है कि 2016-17 में केवल 2.9 प्रतिशत ही खर्च हुए हैं। खर्च करना तो दूर हकीकत यह है कि पिछले चार साल में मोदी सरकार नई शिक्षा नीति नहीं तैयार कर पाई है। पिछले चार सालों में 2 लाख सरकारी स्कूल बंद हो गए हैं। उच्च शिक्षा में रियायत देने के मामले में सरकार फेल रही और देश के अलग-अलग विश्वविद्यालयों में छात्र सरकार के खिलाफ सड़क पर उतरते दिखे। थोड़ा लिखा है, ज्यादा समझना, की तर्ज पर ही मोदी सरकार के चार सालों की हकीकत को समझना होगा। बाकी सरकार अपना काम कर ही रही है।
देशबन्धु का संपादकीय