इंदौर, 01 जुलाई, 2019. हमें लगा था कि यह केवल भारत में आरएसएस और भाजपा के व्यापक दुष्प्रचार (Major BJP propaganda of RSS and BJP in India) का ही नतीजा है कि इधर ऐसे लोगों की तादाद बढ़ गयी है जो गाँधी और नेहरू के प्रति तिरस्कार भाव (Hate sentiments towards Gandhi and Nehru) रखते हों। सोशल मीडिया के दुरुपयोग (Misuse of social media) ने हर हाथ मे एक असीमित झूठी सूचनाओं का विशाल पुस्तकालय दे दिया है। और ये स्थिति केवल बच्चों में ही नहीं, बुज़ुर्गों में भी हो रही है। समझ साफ आता है कि इन पहचानों पर कालिख पोतने का फायदा किसे मिलेगा लेकिन क्या इस डर से सभी गाँधी की सभी गलतियों को नज़रअंदाज़ करके सिर्फ तारीफ करने में लग जाना चाहिए या एक आलोचनात्मक विवेक के साथ गाँधी को समझना चाहिए?
यही सबब बना इंदौर की स्टडी सर्किल की 8वीं बैठक का।
गाँधी औj कस्तूरबा, दोनी के ही जन्म का यह 150वाँ वर्ष है और इसलिए गाँधी के बारे में लोगों ने पढ़ा और एक परिसंवाद हुआ। उम्मीद से ज़्यादा संख्या और उत्साह से लोग शरीक हुए और उनमें भी काफ़ी युवा थे।
परिसंवाद की शुरुआत फिलाडेल्फिया से आये भौतिकी वैज्ञानिक अर्चिशमं राजू ने की जो वहाँ अश्वेतों के आंदोलन के साथ जुड़े हुए हैं।
अर्चिष्मान ने बताया कि विश्व के बड़े लोकतंत्र माने जाने वाले अमेरिका में 20 लाख लोग जेल में हैं उनमें भी 10 लाख अश्वेत हैं जबकि अमेरिका की आबादी मात्र 13 करोड़
उन्होंने कहा कि नेल्सन मंडेला स्वयं गाँधी के प्रशंसक थे, सभी जानते हैं। आज उसी अफ्रीका में अश्वेत लोगों के एक गुट ने गाँधी पर नस्लीय सोच का होने का इल्जाम लगाया है और उसे एक आन्दोलन कि शक्ल दी है। गांधी की वैश्विक स्तर पर नए तरीके से आलोचना की जा रही है। 2018 में नस्लवादी बताकर घाना में गांधी की प्रतिमा को गिरा दिया गया। कई अफ्रीकी देशों में गांधी के विरूद्ध इस तरह का अभियान चलाया जा रहा है कि गाँधी से लोग नफरत करने लगें। जबकि उन्होंने कई देशों के स्वतंत्रता आंदोलनों को प्रभावित किया। गांधी को समझने के लिए उनके आलोचकों को पढ़ा जाना चाहिए।
प्रगतिशील लेखक संघ के राष्ट्रीय सचिव विनीत तिवारी ने कहा कि गांधी को किसी महामानव के स्थान पर व्यक्ति के रूप में देखना चाहिए। गांधी और भगत सिंह हों या लेनिन या मार्क्स या बुद्ध, सभी अपने समय और परिस्थितियों की उपज थे। गांधी १९१५ में अफ्रीका से लौटे थे। १९१७ में रूसी क्रांति ने प्रमाणित किया कि ताकतवर सत्ताओ को भी पलटा का सकता है। देश के भीतर भी लड़ने वालीं में उत्साह फैला और गाँधी जी ने उस उत्साह को अपना नेतृत्व दिया। चम्पारण सत्याग्रह हो या खेड़ा के किसानों का आंदोलन, ये आन्दोलन गाँधी जी ने न शुरू किए थे न ही वे इसके नेतृत्व में थे। लेकिन गाँधी जी पूरे देश मे बड़े नेता के रूप में स्वीकृत किये जा चुके थे इसलिए इन आंदोलनों के संपर्क में आते ही ये गाँधी जी के नाम से जाने जाने लगे।
उन्होंने कहा कि गांधी दूरदरशी थे, तुर्की के खिलाफत आंदोलन का उपयोग उन्होंने भारत में हिंदू - मुसलमान एकता के लिए किया। दलितों के सवाल पर उनकी दृष्टि बेशक सवाल उठाने वाली है विरोधाभास था, लेकिन वे अपने आपको सुधारते भी रहे आखिरी वक्त तक। उन्होंने ईश्वर के स्थान पर सत्य को बिठाया, जुल्म के खिलाफ हिंसक आक्रोश को अहिंसा में बदला जिससे हर आम इंसान अपने आपको आज़ादी की लड़ाई का भागीदार महसूस कर सके।
श्री तिवारी ने कहा कि स्वतंत्रता संग्राम के दौरान हिन्दू मुस्लिम एकता, दलित और गैर दलितों की एकजुटता और महिलाओं की बड़े पैमाने पर भागीदारी हमारे आज के भारत के आधारभूत मूल्य होने चाहिए थे, जिन्हें आज पूरी तरह खत्म करने की साज़िशें की जा रही हैं। वे मूल्य आज सिर्फ प्रासंगिक ही नही बेकली भारत के अस्तित्व के लिए भी ज़रूरी हैं। गाँधी ने एक अंग्रेज बनने की चाहत से लेकर समाज के आखिरी इंसान की चिंता करने वाले व्यक्ति के तौर पर विकास किया। उनका हर कदम सही नहीं भी कहा जा सकता हो तो भी वे इतिहास में सबसे प्रभावशाली व्यक्तित्व बने और उनके लोगों के समझने और जुड़ने के तरीके को सीखना बहुत ज़रूरी है।
महात्मा गांधी का हिंदुस्तान और नरेंद्र मोदी का हिंदुस्तान एक नहीं हो सकता।
विनीत तिवारी ने कहा कि गांधी को याद करके देश मे साम्प्रदायिकता से लड़ा जा सकता है और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर फिलिस्तीन के पक्ष मे तीसरी दुनिया के देशों को एकजुट किया जा सकता है।
अर्थशास्त्री जया मेहता ने गांधी के नेतृत्व में चले स्वतंत्रता संग्राम को मानव इतिहास की महान घटनाओं में से एक बताते हुए कहा कि उपनिवेशवाद के विरुद्ध वह बड़ा आंदोलन था। वर्तमान में साम्राज्यवाद विरोधी आंदोलन की जरूरत है और गाँधी ने साम्राज्यवाद तथा उपनिवेशवाद की ताक़तों को हराने में नेतृत्वकारी भूमिका निभाई। इसलिए उनके व्यक्तित्व को समझने का यह मूलबिन्दु होना चाहिए कि उन्होंने साम्राज्यवाद के खिलाफ कैसे यह लड़ाई लड़ी।
Poona Pact : Mahatma Gandhi's fight against untouchability …. What is Poona Pact,
प्रगतिशील लेखक संघ के हरनाम सिंह ने गांधी अंबेडकर पूना पैक्ट के बारे में बताया कि ब्रिटिश शासन में सिखों, मुसलमानों और ईसाइयों को निर्वाचन में आरक्षण था। भीमराव अंबेडकर अछूतों के लिए भी आरक्षण चाहते थे। अंबेडकर की मांग पर ही 1927 में साइमन कमीशन भारत आया था जिसका कांग्रेस ने विरोध किया वहीं बहुजन समाज ने स्वागत। 1932 में गोलमेज सम्मेलन में मैकडोनाल्ड अवार्ड प्रस्तावित किया गया जिसके तहत दलितों को दो वोट देने का अधिकार दिया गया। गांधी ने अवार्ड के विरोध में यरवदा जेल में भूख हड़ताल की, अंबेडकर को धमकाया गया और मजबूर किया गया कि वह अवार्ड के प्रस्ताव को छोड़ दें। भारी दबाव के बीच 24 सितंबर 1932 को यरवदा जेल में गांधी अंबेडकर के बीच समझौता हुआ। अगर यह समझौता न हुआ होता तो भारतीय समाज और शासन व्यवस्था की स्थिति क्या होती नहीं कहा जा सकता।
गांधी की चर्चा होती है, पर कस्तूरबा की नहीं, क्यों Gandhi is discussed, but not Kasturba, why
महिला फेडरेशन की राज्य सचिव सारिका श्रीवास्तव ने कहा कि देश में गांधी की चर्चा होती है, उनकी पत्नी कस्तूरबा की नहीं, जबकि स्वतंत्रता आंदोलन में उनका भी बड़ा योगदान था। यही स्थिति आजादी की लड़ाई में शामिल अन्य महिलाओं की भी है। उनके योगदान का पुन: मूल्यांकन होना चाहिए। कस्तूरबा महात्मा गांधी से आयु में छ माह बड़ी थी। उनका अपना व्यक्तित्व था वह आंदोलन में जीवन भर गांधी के साथ खड़ी रही।
आयोजन में अरविंद पोरवाल ने गांधी के चंपारण और खेड़ा के किसान आंदोलन का उल्लेख करते हुए इन घटनाओं को गांधी के सार्वजनिक जीवन का प्रारम्भ बताया। केसरी सिंह चिडार ने गांधी जयंती पर स्कूलों में तकली पर सूत कातने को याद किया और कहा कि गांधी के राजनीतिक जीवन पर ही अधिक चर्चा होती है, उन्हें समझने के लिए संपूर्ण जीवन को समझना होगा। गांधी को कभी भुलाया नहीं जा सकता, उनके विचारों को बचाए रखने की जरूरत है। चुन्नीलाल वाधवानी ने गांधी की कमजोरियों का उल्लेख किया।
रामाश्रय पांडे ने कहा कि गांधी के आंदोलन अहिंसक होने के कारण खतरा कम देख कर लोग शामिल होते थे। वे आमजन की भाषा में संवाद करते थे इसलिए भी प्रभावित करते थे।
प्रोफेसर जाकिर ने लंदन के गोलमेज सम्मेलन के दौरान विख्यात अभिनेता चार्ली चैप्लिन से गांधी की मुलाकात का जिक्र किया उन्होंने बताया कि चैप्लिन की दो फिल्में गांधी से प्रभावित थी।
Gandhi was the hero of communalism protest
आदिल ने कहा कि यह नहीं भूला जाना चाहिए कि अहिंसा के पुजारी ने पहले विश्वयुद्ध में अंग्रेज़ो की सेना में भरती होने के प्रयासों में उनकी मदद की। गांधी सांप्रदायिकता विरोध के नायक थे।
विवेक अत्रे के अनुसार गांधी ने सत्य के कई प्रयोग किए, वे निजी और सार्वजनिक जीवन में समाज विज्ञानी थे। उस समय के शासक भी संवेदनशील होते थे, वे विरोध को सुनते थे। 23 वर्ष की आयु में भगत सिंह और गांधी की भूमिका को समझना होगा। 23 वर्ष की आयु में डिग्री लेकर गांधी क्या करना है सोच ही रहे थे, लेकिन भगत सिंह सोच चुके थे।
अंजुम के अनुसार उस काल में आमजन को एकजुट करना आसान नहीं था। लेकिन गांधीजी के आह्वान का असर पूरे देश मे और विदेशों तक होता था।गांधी को तत्कालीन परिवेश में ही समझा जा सकता है।
अनुराग ने बताया कि अमरीका में गांधी को बड़े पैमाने पर पढ़ा जाता है।
सुखलाल ने कहा कि गांधी और अंबेडकर के बीच वैचारिक मतभेद थे। गांधी को अंबेडकर के नजरिए से समझना होगा। लेकिन आज उन्हें दुश्मनों की तरह प्रस्तुत किया जाता है,यह ग़लत है।
इंदौर प्रलेस अध्यक्ष एस. के. दुबे ने बताया कि आजादी की लड़ाई में मात्र 15 प्रतिशत लोगों ने ही भाग लिया था लेकिन यह संख्या भी बहुत बड़ी थी जो गाँधी जी के प्रभाव की वजह से सड़कों पर उतरी थी। परिचर्चा में ए आई एस एफ के कुमार प्रणव, नेहा, ऋचा, राज, सौरभ, विजया, महिमा ने भी अपने विचार रखे संचालन करते हुए प्रमोद बागड़ी ने आयोजन की रूपरेखा बताई उन्होंने कहा कि मतभेदों के बावजूद गांधी ने ही अंबेडकर को संविधान सभा का अध्यक्ष बनाया। अफ्रीका में गांधी के आंदोलनों को भी समझने की जरूरत है।
लेखक सुरेश उपाध्याय ने कहा कि आलोचनात्मक विवेक के साथ गांधी पर चर्चा होना चाहिए, वर्तमान में महात्मा गांधी का प्रतीकात्मक उपयोग हो रहा है। सत्ता में बैठे लोगों के लिए गांधी एक मजबूरी है वह गोडसे को भी पूजते हैं। गांधी के विचारों को मार न पाने के कारण उनके पोस्टर पर गोलियां मारी जा रही है।आधुनिक संदर्भों में गांधी की विवेचना होना चाहिए। गांधी की पुस्तक हिंद स्वराज्य को वर्तमान संदर्भ में पढ़ने की जरूरत है। गांधी के ग्राम स्वराज्य की अवधारणा अपनाई जानी चाहिए।आने वाला समय रोबोट का है ऐसे में रोजगार की स्थिति क्या होगी समझा जा सकता है। उन्होंने कहा कि गांधी में महावीर की अहिंसा ओर बुद्ध की करुणा थी। आज इन विचारों की जरूरत है।
सांप्रदायिकता की वेदी पर पहली कुर्बानी गांधी ने दी थी। हिंसा के विरूद्ध गांधी के विचार ही सशक्त प्रतिरोध है।
हरनाम सिंह