Hastakshep.com-Opinion-गाँधी जी का विचार-gaandhii-jii-kaa-vicaar-गांधी-gaandhii-प्रज्ञा ठाकुर-prjnyaa-tthaakur-राष्ट्रभक्त-raassttrbhkt

कृतज्ञ राष्ट्र इस वर्ष अपने परम प्रिय राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी की 150 वीं जयंती मना रहा है। इस अवसर पर गांधीवादी विचारधारा तथा गाँधी दर्शन को लेकर पुनः चर्चा छिड़ गयी है।

हिंसा, आक्रामकता, सांप्रदायिकता, ग़रीबी तथा जातिवाद के घोर विरोधी गाँधी को देश ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में इसलिए भी अधिक शिद्दत से याद किया जाता रहा है क्योंकि विश्व के कई हिस्सों में इस समय हिंसा, आक्रामकता, सांप्रदायिकता, जातिवाद, वर्गवाद, पूंजीवाद तथा नफ़रत का बोल बाला हो रहा है। दुर्भाग्य पूर्ण बात तो यह है कि ख़ुद गाँधी का देश भारत भी इन्हीं हालात का शिकार है। मानवता को दरकिनार कर बहुसंख्यवाद की राजनीति पर ज़ोर दिया जा रहा है। बहुरंगीय संस्कृति व भाषा के इस महान देश को एकरंगीय संस्कृति व भाषा का देश बनाने के प्रयास हो रहे हैं।

ज़ाहिर है गाँधी दर्शन के विरुद्ध बनते इस वातावरण में उन्हीं शक्तियों तथा विचारधारा के लोगों की ही सक्रियता है जो गाँधी जी के जीवनकाल से ही गाँधी के सहनशीलता व 'सर्वधर्म समभाव' के विचारों से सहमत नहीं हैं। निश्चित रूप से यही वजह है कि आज देश में न केवल गाँधी विरोधी शक्तियां सक्रिय हो रही हैं बल्कि गाँधी के हत्यारे नाथू राम गोडसे का महिमामंडन भी मुखरित होकर किया जाने लगा है। उसकी मूर्तियां स्थापित करने के प्रयास किये जा रहे हैं।

इतना ही नहीं जो लोग गोडसे का महिमामंडन करते हैं और उसे राष्ट्रभक्त बताते हैं वह लोग चुनाव जीत कर संसद में भी पहुँच चुके हैं।

ये सांसद कोई साधारण सांसद भी नहीं हैं बल्कि इनमें प्रज्ञा ठाकुर जैसी सांसद तो कई आतंकवादी वारदातों में आरोपी भी रही है। कई भगवाधारी मंत्री व सांसद

हैं जो गोडसे का महिमामंडन करने से नहीं चूकते।

निश्चित रूप से गाँधी विरोध व गोडसे से हमदर्दी का मत रखने वालों का गाँधी जी से मुख्यतः दो बातों को लेकर ही विरोध है। हिंदूवादी संगठनों का आरोप है कि वे मुसलमानों के हितों का अधिक ध्यान रखते थे तथा यह भी कि देश के बंटवारे में उनका रुख़ नर्म था।

एक आरोप यह भी है कि विभाजन के पश्चात् भारत पाक के मध्य हुए संसाधनों के बंटवारे के समय भी गाँधी जी ने कथित रूप से पाकिस्तान के हित में कई फ़ैसले लिए। इस तरह के आरोप ही अपने आप में यह साबित करते हैं कि गांधी जी कितने विशाल ह्रदय के स्वामी थे जबकि ऐसे इल्ज़ाम लगाने वाले लोगों के विचार कितने संकीर्ण व स्वार्थ पर आधारित हैं।

बेशक गांधी जी की इस सोच ने खांटी हिंदूवादी सोच रखने से नफ़रत वालों को गाँधी से नफ़रत करने की सीख दी, परन्तु उनके ऐसे ही फ़ैसलों ने ही उन्हें गांधी से महात्मा गाँधी बना दिया। हमारे देश के इस अनमोल सपूत को जिसे हमारे ही देश के 'साम्प्रदायिक विचारवान' लोग मुस्लिमों का तुष्टिकरण करने वाला नेता बताते हैं वे भी खुलकर गाँधी की आलोचना करने का साहस नहीं कर पाते। आलोचना करना दूर की बात है उल्टे इस विचारधारा के लोग गांधी की तारीफ़ करते या उनके विचारों का अनुसरण करने की दुहाई देते हुए भी दिखाई देना चाहते हैं ताकि दुनिया की नज़रों में वे भी गाँधी जैसे विचारवान नज़र आएं।

वैचारिक दृष्टि से राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ व इसके सहयोगी संगठनों को गाँधी की विचारधारा का विरोधी ही माना जाता है। आज जो भी गोडसेवादी स्वर मुखरित होते सुनाई दे रहे हैं, वे सभी सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी से ही जुड़े हुए हैं। परन्तु इसके विपरीत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गाँधी जी को विश्व के समक्ष भारत का अनमोल रत्न बताने की ही कोशिश करते हैं।

Prime Minister Modi's article in the New York Times on Gandhiji's 150th birth anniversary.

पिछले दिनों प्रधानमंत्री मोदी का एक लेख अमेरिका के प्रसिद्ध अख़बार न्यूयार्क टाइम्स में प्रकाशित हुआ। गाँधी जी की 150 वीं जयंती के मौक़े पर प्रकाशित इस लेख का शीर्षक था 'भारत और दुनिया को गाँधी की ज़रूरत क्यों है'।

अपने लेख की शुरुआत में मोदी ने अमरीकी नेता मार्टिन लूथर किंग के 1959 के दौरे को याद करते हुए उनके इस कथन का ज़िक्र किया है जिसमें लूथर किंग ने कहा था - 'दूसरे देशों में मैं एक पर्यटक के तौर पर जा सकता हूँ परन्तु भारत आना किसी तीर्थ यात्रा की तरह है'।

इस लेख में ग़रीबी कम करने, स्वच्छता अभियान चलाने व सौर ऊर्जा जैसी योजनाओं का भी ज़िक्र है।

निश्चित रूप से गाँधी के दृष्टिकोण व उनके विचारों को किसी एक लेख या ग्रन्थ में समाहित नहीं किया जा सकता। गाँधी जी ने हमेशा सह-अस्तित्व की बात की। उन्होंने गांधी हिन्दू-मुस्लिम एकता की बात की। उनका कहना था कि 'हमको मानवता में विश्वास नहीं खोना चाहिए'।

गाँधी जी का कहना था कि 'मानवता एक महासागर के समान है, यदि सागर की कुछ बूंदें गंदी हैं, तो पूरे महासागर को गंदा नहीं कहा जा सकता'। परन्तु आज जान बूझकर पूरी योजना बनाकर कुछ हिंसक लोगों की गतिविधियों को धर्म विशेष के साथ जोड़ने की जीतोड़ कोशिश वैश्विक स्तर पर की जा रही है। वे कहते थे कि 'दुनिया के सभी धर्म, हर मामले में भिन्न हो सकते हैं, पर सभी एकजुट रूप से घोषणा करते हैं कि इस दुनिया में सत्य के अलावा कुछ भी नहीं रहता है'।

गाँधी जी के सभी धर्मों के बारे में ऐसे विचार थे परन्तु गांधी विरोधी इस बात से सहमत नहीं उनकी नज़रों में धर्म विशेष आतंकवादी धर्म भी है और जेहादी व फ़सादी भी।

गाँधी जी का विचार था कि 'अहिंसा की शक्ति से आप पूरी दुनिया को हिला सकते हैं'। परन्तु आज जगह जगह हिंसा से ही जीत हासिल करने की कोशिश की जा रही है। अहिंसा परमो धर्मः की जगह गोया हिंसा परमो धर्मः ने ले ली है।

गाँधी जी की धर्म के विषय में भी जो शिक्षाएं थीं वे मानवतापूर्ण तथा पृथ्वी पर सदा के लिए अमर रहने वाली शिक्षाएं थीं। आप फ़रमाते थे कि - मैं धर्मों में नहीं बल्कि सभी महान धर्मों के मूल सत्य में विश्वास करता हूं।'

उनका कहना था कि 'सभी धर्म हमें एक ही शिक्षा देते हैं, केवल उनके दृश्टिकोण अलग अलग हैं।

इसी प्रकार गाँधी जी का कथन था कि हिंदू धर्म सभी मानव जाति ही नहीं बल्कि भाईचारे पर ज़ोर देता है।

गाँधी जी यह भी कहा करते थे कि -'मैं ख़ुद को हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, यहूदी, बौद्ध और कन्फ़्यूशियस मानता हूं'।

ज़ाहिर है महात्मा गाँधी के इन विचारों में न तो कहीं साम्प्रदायिकता की गुंजाईश है न जाति या वर्ण व्यवस्था की। न ग़रीबी पैमाना है न अमीरी। न हिन्दू राष्ट्र की परिकल्पना है न बहुसंख्यवाद की राजनीति करने की गुंजाइश। वे हमेशा केवल मानवता और वास्तविक धर्म की बातें करते दिखाई देते थे। तभी तो वे यह भी कहा करते थे कि निर्धन हो या अमीर, भगवान सभी के लिए है। वो हम में से हर एक के लिए होता है।

गाँधी जी के मुताबिक़ -'सज्जनता, आत्म-बलिदान और उदारता किसी एक जाति या धर्म का अनन्य अधिकार नहीं है'।

वे हमेशा लोगों को विनम्र रहने की सीख भी देते थे और कहते थे कि 'विनम्रता के बिना सेवा, स्वार्थ और अहंकार है'। वे ग़रीबी को हिंसा का सबसे बुरा रूप मानते थे।

आज के सन्दर्भ में यदि हम क़र्ज़ से तंग हुए किसानों की आत्महत्या को देखें, बेरोज़गारी व असुरक्षा की वजह से बढ़ती ख़ुदकशी की घटनाओं को देखें, आसाम में एनआरसी के चलते लोगों में छाया भय तथा धर्म के आधार पर लोगों में फैलाई जा रही दहशत पर नज़र डालें या फिर कश्मीर में कश्मीरियों के साथ होने वाले ज़ुल्म व अन्याय को देखें, जनता के संसाधनों पर सत्ताधीशों की ऐश परस्ती देखें, महिलाओं के साथ दिनोंदिन बढ़ता जा रहा ज़ुल्म व शोषण देखें तो हम आसानी से इस निष्कर्ष पर स्वयं पहुँच जाएंगे कि यह सब गाँधी के देश में बढ़ते गोडसे के महिमामण्डन का ही परिणाम है।

परन्तु इसके बावजूद सच्चाई तो यही है कि गोडसे व उसके साम्प्रदायिकतापूर्ण हिंदूवादी विचारों ने गाँधी जी की हत्या कर उनको पूरी दुनिया के लिए इस क़द्र अमर कर दिया कि जो भी भारत की सत्ता पर बैठेगा उसके लिए दिखावे के लिए ही सही, परन्तु महात्मा गाँधी की सत्य व अहिंसा, मानवता व सर्वधर्म समभाव के सिद्धांतों की उपेक्षा व अवहेलना कर पाना कभी भी इतना आसान नहीं होगा।

तनवीर जाफ़री

Godse's glorification in Gandhi's country?