नई दिल्ली, 01 सितंबर। कल मित्र हरिवंश चतुर्वेदी के सम्मान में आयोजित एक भव्य कार्यक्रम में सम्मिलित होने का मौका मिला। यह कार्य हेबीटेट सेंटर, नई दिल्ली (Habitat Center, New Delhi) में बिमटेक ग्लोबल एलुमनी (Bimtech Global Alumni), आगरा विश्वविद्यालय एलुमनी (Agra University Alumni) आदि कई संस्थाओं ने मिलकर आयोजित किया था। इस अवसर पर उनके मथुरा-आगरा अनेक मित्र भी शामिल हुए। इसके अलावा मैनेजमेंट और निजी क्षेत्र के अकादमिक जगत के दर्जनों मूर्धन्य लोग शामिल हुए। यह प्रबंधन और निजी क्षेत्र के अकादमिक जगत के प्रमुख लोगों का बड़ा जमावड़ा था।मौन समाज सुधारक हरिवंश चतुर्वेदी
Human Rights in Academic Reforms
हरिवंश जी से मेरा निजी तौर पर चालीस साल से भी अधिक समय से मित्र संबंध है। हम सभी खुश थे कि उन्होंने अपने सामाजिक-अकादमिक कार्यों के जरिए एक नया और विस्तृत क्षेत्र निर्मित किया है, जिसे प्रबंधन और निजी अकादमिक जगत कहते हैं। इस क्षेत्र की महत्वपूर्ण अकादमिक शक्ति के रूप में उन्होंने विगत बीस सालों में जो जगह निर्मित की है वह निश्चित तौर पर बहुत बड़ी उपलब्धि है।
कल का कार्यक्रम असल में बिमटेक के डायरेक्टर के रूप में हरिवंश चतुर्वेदी के बीस साल पूरे होने पर सम्मान और खुशी के दिन के रूप मनाया गया। वहां मौजूद सभी लोग खुश थे, सब उनकी ईमानदारी, मित्रता और निर्भीकता की प्रशंसा कर रहे थे।
सबसे बड़ी बात जो सभी वक्ताओं ने रेखांकित की वह यह कि हरिवंश जी की निजी अकादमिक जगत के विस्तार में केन्द्रीय भूमिका रही है। उन्होंने विभिन्न अवसरों पर यूपीए-1 से लेकर मोदी सरकार-2 तक नए नीतिगत लाभ इस क्षेत्र को दिलाए हैं। उन लाभों का भी वक्ताओं ने जिक्र किया। साथ ही रेखांकित किया कि विभिन्न जटिल अवसरों पर निर्भीकता और सर्जनात्मकता के विलक्षण सामंजस्य का उन्होंने नया रसायन तैयार करके प्रबंधन जगत की बड़ी मदद की है।
इन सब पहलुओं पर प्रकाश डालने वालों में यूजीसी
हरिवंश जी के व्यक्तित्व की खूबी है कि वह अपने काम या अपनी उपलब्धियों का ढोल नहीं बजाते, चुपचाप काम करना और चीजों, वस्तुओं, व्यक्तियों, घटनाओं को बदलना, बदलने में उसे आनंद आता है, यह उसकी केन्द्रीय विशेषता है। उनको मौन परिवर्तनकामी –समाजसुधारक कहना समीचीन होगा।
हरिवंश जी के व्यक्ति के निर्माण में आधुनिक प्रगतिशील विचारों, प्रगतिशील उदार मित्रों की बड़ी भूमिका रही है, लेकिन सबसे बड़ी भूमिका रही है वैष्णव सम्प्रदाय के उदार सांस्कृतिक परिवेश और उदार मूल्यों की, यह चीज उनको मथुरा के वातावरण में प्राणवायु की तरह मिली है। यही वजह है वह प्राणवायु लेने बार-बार लौटकर मथुरा जाते हैं।
सामान्य मध्यवर्गीय चतुर्वेदी परिवार में जन्म लेने के बाद उन्होंने सिर्फ कैरियर को ही प्रमुखता नहीं दी, बल्कि समाज-सुधार और शिक्षा सुधार के सवालों पर युवा उम्र से ही सक्रिय हस्तक्षेप किया। छात्र-जीवन से ही वह ओजस्वी प्रभावशाली वक्ता के रूप मथुरा-आगरा के अकादमिक जगत में लोकप्रिय थे।
उल्लेखनीय है हिन्दीभाषी क्षेत्र में समाज सुधार, खासकर अकादमिक सुधारों को एक बड़ा हिस्सा है नापसंद करता है। अकादमिक सुधारों में मानवाधिकारों को कौशल के साथ कैसे शामिल किया जाए,छात्रों-शिक्षकों के हकों का कैसे विस्तार किया जाए, इन समुदायों में सामाजिक-राजनीतिक चेतना का कैसे विस्तार करें,इत्यादि चिन्ताओं को हरिवंश जी ने हमेशा प्राथमिकता दी।
हरिवंश जी के व्यक्तित्व की सबसे खूबी है उसका सहृदय मित्रभाव । सभी रंगत,विचारधारा के लोगों से संपर्क-संबंध रखना,जो भी मित्र बने उसका ख्याल रखना,जो एकबार मिल ले, उससे संपर्क बनाए रखना,न्यूनतम संवाद के जरिए उसे हमेशा जोड़े रखना,यह सब करते हुए अपने दृष्टिकोण और ईमानदारी के भाव से कोई समझौता न करना।बिमटेक के डायरेक्टर के रूप में हरिवंशजी ने दो दशक पूरे किए। मेरी जानकारी में निजी क्षेत्र में किसी अकादमिक संस्थान में संभवतः यह सबसे लंबी अवधि पर एक ही पद पर अब तक की सबसे बड़ी नौकरी है। यह शानदार रिकॉर्ड है।
हरिवंश जी ने बिमटेक के नए कैम्पस का ग्रेटर नौएडा में निर्माण कराया, साथ ही भुवनेश्वर में उसका एक और कैम्पस एवं विश्वविद्यालय भी निर्मित कराया। इसके अलावा उनके प्रयासों से भारत की जेलों में एक नई मुहिम आरंभ हुई है, जेलों में कैदियों तक किताबें पहुँचें। इसके लिए उन्होंने जेलों में लाइब्रेरी की पूरी श्रृंखला आरंभ की है। अब तक 12 से अधिक जेलों में पुस्तकालय स्थापित हो चुके हैं, जिनमें सैंकड़ों किताबें रोज कैदी पढ़ रहे हैं। इस काम की सारी दुनिया में प्रशंसा हो रही है।
जेलों की लाइब्रेरी सुचारू और नियमित चलें इसकी वो निगरानी भी रखते हैं, वहां किताबों का निरन्तर फ्लो भी है। इस काम के लिए नियमित बड़ी आर्थिक राशि संस्थान की ओर से निरंतर आवंटित करके सामाजिक कार्य की नई मिसाल कायम की है।
हम सभी मित्र यही चाहेंगे हरिवंश चतुर्वेदी इसी तरह मौन सुधारक की भूमिका निभाते रहें।
जगदीश्वर चतुर्वेदी