पुलवामा, पर आगे क्या ! क्या पुलवामा का धक्का (Pulwama jolt) सैन्य बल से कश्मीर समस्या का हल (Solution of Kashmir problem with military force) पा लेने की भारत की तंद्रा को तोड़ेगा या उस तंद्रा को ही और-और लंबा खींचेगा ?
अगर पुलवामा की दस्तक हमें अपनी ख़ुमारी से जगाती है तभी हम सपने और जागरण के बीच कहीं इस पूरी समस्या के उस छूटे हुए यथार्थ को पकड़ पायेंगे जहाँ इस मसले का समाधान पाया जा सकता है।
वह अप्रकट यथार्थ कश्मीर और पाकिस्तान के साथ ही समग्र भारत की राजनीतिक स्थिति को मिला कर निर्मित हुआ है । कश्मीर की स्थिति इस बिसात पर एक विशेष मोहरे की है।
यह भारत का ऐसा अभिन्न हिस्सा है जिसकी वर्तमान शासक शक्तियों के लिये एक बिल्कुल अलग राजनीतिक उपयोगिता भी है ।
इसे दरकिनार रख कर हम सिर्फ़ अपनी खुमारियों से अपनी तंद्रावस्था को ही और खींचेंगे, पूरे विषय पर राजनीति-राजनीति का खेल खेलेंगे, लेकिन कभी किसी समाधान तक नहीं पहुँचेंगे।
पाकिस्तान के हुक्मरान इसी खेल में अपने देश को साम्राज्यवादियों के लगभग हवाले कर चुके हैं। लगता है भारत के मौजूदा शासकों ने भी पाकिस्तान के पथ को ही अपने लिये श्रेयस्कर मान लिया है।
तब चुनाव होंगे, फिर चुनाव होंगे, फिर चुनाव होंगे - कश्मीर की उनमें जब तक ख़ास राष्ट्रीय उपयोगिता बनी रहेगी, भारत का यह अभिन्न अंग इसी प्रकार उनकी
क्या यह ख़बर/ लेख आपको पसंद आया ? कृपया कमेंट बॉक्स में कमेंट भी करें और शेयर भी करें ताकि ज्यादा लोगों तक बात पहुंचे
कृपया हमारा यूट्यूब चैनल सब्सक्राइब करें