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महाराष्ट्र : राष्ट्रपति शासन के लिए कांग्रेस सबसे अधिक जिम्मेदार!

नई दिल्ली। महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने सूबे में राष्ट्रपति शासन लगाने की जो सिफारिश की थी उसे राष्ट्रपति ने मान लिया है। राज्यपाल इस मामले में थोड़े सख्त जरूर रहे पर उन्होंने न केवल भाजपा, शिवसेना बल्कि एनसीपी को भी सरकार बनाने का मौका दिया। हां राज्यपाल ने शिवसेना और एनसीपी को अतिरिक्त समय नहीं दिया, जिसका आरोप उन पर लग रहा है। शिवसेना सुप्रीम कोर्ट पहुंच चुकी है।

Maharashtra: Congress is most responsible for President's rule!

महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के परिणाम आने से लेकर अब तक के प्रकरण पर गौर करें तो यदि सूबे में राष्ट्रपति शासन लगने के लिए सबसे अधिक जिम्मेदार कांग्रेस मानी जा रही है। कांग्रेस अब राज्यपाल को केंद्र सरकार कठपुतली बता रही है। वह बात दूसरी है कि अभी तक कांग्रेस ने समर्थन का कोई पत्र राज्यपाल को नहीं भेजा है। कांग्रेस और एनसीपी का राज्यपाल को समर्थन पत्र भेजना इसलिए अहम था, क्योंकि वह भी जानते हैं कि भाजपा राष्ट्रशासन लगाने के नाम पर बड़ा खेल खेलने की फिराक में है। हालांकि विधानसभा भंग होने की वजह से सूबे में सरकार बनाने के सभी विकल्प खुले हैं। यदि कोई भी दल पर्याप्त संख्या के साथ राज्यपाल के पास पहुंचता है तो समय देना और बात करना उनकी मजबूरी बन जाएगी। इसका मतलब यह है कि अभी भी शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस में सरकार बनाने के लिए पूरी तरह से सहमति नहीं बनी है। मतलब साफ है कि कांग्रेस और एनसीपी मिलकर शिवसेना से खेल खेल रही है। यही वजह है कि उद्धव ठाकरे की नाराजगी की वजह (The reason for Uddhav Thackeray's displeasure) से शिवसेना की ओर से सरकार बनाने के सबसे बड़े पैरोकार संजय राउत अब कहीं नहीं दिखाई पड़ रहे हैं।

कल उनकी तबीयत हुई खराब होने का कारण भी यही माना जा

जा रहा है। दरअसल कांग्रेस अल्पसंख्यक वोटबैंक की नाराजगी (Minority vote bank's displeasure) की वजह से शिवसेना की नहीं बल्कि एनसीपी की अगुआई में सरकार बनाना चाहती है।

महाराष्ट्र के राजनीतिक उथल-पुथल पर नजर डालें तो देखते हैं कि भले ही शिवसेना के मन में मुख्यमंत्री पद के लिए लालच था, पर भाजपा से बगावत उसने एनसीपी और कांग्रेस के नेताओं के इशारे पर ही की है।

शिवसेना प्रवक्ता संजय राउत लगातार एनसीपी मुखिया शरद पवार के संपर्क में थे। कांग्रेस नेता पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चह्वाण ने भी सूबे में राष्ट्रपति शासन न लगने देने की बात कही थी।

Shiv Sena had the support of both NCP and Congress.

इसका मतलब साफ है कि शिवसेना को एनसीपी और कांग्रेस दोनों का समर्थन प्राप्त था। वैसे भी उद्धव ठाकरे की बात कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से हुई थी। वहां से भी कुछ सकारात्मक जवाब मिला होगा। तभी उद्धव ठाकरे सरकार बनाने के प्रति आशांन्वित दिखाई दे रहे थे। एनसीपी ने शिवसेना के सामने केंद्र से भी एनडीए से नाता तोड़ने की बात कही तो उसने वह भी कर दिया। कांग्रेस के सरकार में शामिल होने की भी बात सामने आई थी।

जहां तक मंत्रालयों के बंटवारे की बात है तो शिवसेना को इस समय बस मुख्यमंत्री पद की जिद है। इसकी बड़ी वजह यह है कि लंबे समय तक भाजपा को समर्थन देने का बावजूद भाजपा ने शिवसेना को ढाई साल तक मुख्यमंत्री पद देने के लिए लिखकर भी नहीं दिया। शिवसेना अध्यक्ष उद्धव ठाकरे को यह बात भी खल ही थी कि भाजपा संगठन के सर्वेसर्वा अमित शाह ने हरियाणा प्रकरण में दुष्यंत चौटाला से तो बातचीत की पर महाष्ट्र मामले में उनसे नहीं।

उद्धव ठाकरे शिवसेना का मुख्यमंत्री बनवाकर भाजपा को यह दिखाना चाहते थे कि उनके बिना भी शिवसेना का मुख्यमंत्री बन सकता है, जिसका कांग्रेस ने कबाड़ा कर दिया।

कल जिस समय शिवसेना नेता आदित्य ठाकरे राज्यपाल से मिले थे। वह समय सरकार बनाने के दावे का था, लेकिन कांग्रेस ऐन समय पर अपना रंग दिखा दिया। कांग्रेस के शिवसेना को समर्थन न देने के पीछे अल्पसंख्यक वोटबैंक के बिदकने का अंदेशा बताया जा रहा है। पश्चिम बंगाल और केरल में विधानसभा चुनाव के चलते कांग्रेस के बड़े नेताओं ने यह पेंच फंसाया है।

इसमें दो राय नहीं कि आज की राजनीति में जनादेश को दरकिनार कर सत्ता ही सब कुछ रह गई है। ऐसा ही महाराष्ट्र में भी हुआ। शिवसेना के ढाई साल तक मुख्यमंत्री पद मांगने के बावजूद मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडनवीस पांच साल तक मुख्यमंत्री पद के लिए अड़े रहे। एनसीपी विभिन्न मामलों में घिरे हुए अपने नेताओं को राहत दिलाने के लिए सरकार बनाने के लिए शिवसेना को उकसाये रखी। शिवसेना की सरकार बनवाने के लिए संजय राउत लगातार शरद पवार के संपर्क में रहे । हां संजय राउत यह नहीं समझ सके कि पवार भी तो कभी कांग्रेस का हिस्सा हुआ करते थे।

हां यह बात जरूर सामने आई है कि कांग्रेस ने महाराष्ट्र मामले में कांग्रेस का चेहरा जल्द ही सामने आ गया। जो खेल सरकार बनाने के बाद खेला जाना था वह पहले ही खेल लिया गया।

यदि कांग्रेस का इतिहास देखें तो कांग्रेस अक्सर सरकार बनवाकर झटका दिया करती है। केंद्र में 1978 में चरण सिंह की सरकार बनवाकर गिरा दी थी। चरण सिंह को प्रधानमंत्री के रूप में एक बार भी संसद में जाने का मौका नहीं दिया। 1991 में चंद्रशेखर की सरकार बनवाकर राजीव गांधी की खुफियागिरी कराने का आरोप लगाकर छह महने में ही गिरा दी। 1996 देवगौड़ा और फिर इंद्रकुमार गुजराल के साथ भी यही किया गया। प्रदेशों में भी कांग्रेस का यही रवैया रहा है।

सी.एस. राजपूत