आज मजदूर दिवस है। ट्रेड यूनियन आंदोलन का अवसान हो चुका है। मुक्तबाजार में श्रम और श्रमिक दोनों गैर जरूरी हैं। तो खेती का सत्यानाश हो जाने और भारी पैमाने पर किसानों के शहरीकरण, औद्योगीकरण और विकास के नाम पर जल जंगल जमीन से बेदखल हो जाने की वजह से नैसर्गिक आजीविका सिरे से खत्म है। शिक्षा के विस्तार से करोड़ों युवाजन बेरोजगार है और कंप्यूटर, रोबोट और कृत्रिम मेधा ने रोजगार के अवसर खत्म कर दिए हैं। स्त्री शिक्षा का अभूतपूर्व विकास हुआ है। निन्यानवे प्रतिशत लड़कियां परीक्षाओं में बेहतरीन नतीजा निकाल रही हैं, लेकिन इनमें से दस प्रतिशत के भी रोजगार की कोई व्यवस्था नहीं है। असुरक्षित माहौल में असंगठित क्षेत्र में युवाजन और महिलाएं काम करने को मजबूर हैं, जहां न रोजगार की सुरक्षा है और महिलाओं की। न वेतनमान है और न पेरोल। स्थाई नौकरियां खत्म हैं। निजीकरण और विनिवेश की वजह से सरकारी क्षेत्र में भी नौकरियां घट गई हैं। सारे श्रम कानून बदल बिगाड़ दिए गए हैं। ऐसे में पकौड़ी और पान की दुकानें खोलकर रोजगार हासिल करने की सलाह देकर सरकार अपनी जिम्मेदारी पूरी कर रही है।
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दूसरी ओर, इंटरनेट पर शॉपिंग चलाने वाली कंपनियों से जुड़ने को भी रोजगार बताया जा रहा है।
उत्तराखंड के सिडकुल में सरकार की ओर से टैक्स छूट का फायदा उठाकर श्रमिकों और कर्मचारियों का पूरा शोषण करके बेइंतहा मुनाफा लूटने के बाद थोक भाव से कंपनियां बंद हो रही हैं। रोजगार का यही चित्र पूरे देश के औद्योगीकरण का है।
सरकार इस भयंकर समस्या का समाधान करने के बजाय
मई दिवस मनाने का जश्न हम उन्ही कत्लगाहों में मना रहे हैं, जहां सत्ता के कसाई हमारी नई युवा पीढ़ियों का कत्लेआम कर रही हैं।
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