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देशवासियों के बहुमत से अलग करने की घोषणा की जस्टिस मार्कण्डेय काटजू ने
भारतीय समाज में काफी हद तक सांप्रदायीकरण (कम्युनाइलेजशन) किया गया है
नई दिल्ली। अपने महत्वपूर्ण फैसलों के लिए चर्चित सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस मार्कण्डेय काटजू ने स्वयं को देशवासियों के बहुमत से अलग करने की घोषणा की है।

जस्टिस काटजू का मानना है कि भारतीय समाज में काफी हद तक सांप्रदायीकरण (कम्युनाइलेजशन) किया गया है।

उनका अनुमान है कि आज 80-90% हिंदू (मुस्लिम विरोधी) सांप्रदायिक हैं और 80-90% मुसलमान भी सांप्रदायिक हो गए हैं।

पूर्व न्यायाधीश ने कहा मुझे सूचना मिली है कि सांप्रदायिक वायरस ग्रामीण भारत के अनेक क्षेत्रों में भी फैल गया है।

याकूब मेमन प्रकरण में हिंदुओं का एक बड़ा भाग उसे फांसी चाहता ता जबकि मुसलमानों का एक बड़ा भाग फांसी नहीं चाहता था।

श्री काटजू ने कहा मैं इस राय का था कि उसके खिलाफ सबूत बहुत कमजोर था और इसलिए उसकी सजा गलत थी।

इसमें कोई संदेह नहीं कि मेरी इस राय ने हिंदुओं ( जो हमारी जनसंख्या का लगभग 80% है)के बीच में मुझे बहुत अलोकप्रिय बना दिया है। इसलिए मैं अपने ही देशवासियों के बहुमत से अलग कर रहा हूँ।

लेकिन इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। मैं लोकप्रियता हासिल करने का इच्छुक नहीं हूँ।“

अपने फेसबुक पेज पर जस्टिस काटजू ने लिखा – “जीवन में अक्सर ऐसा होताहै जब कोई व्यक्ति एक अलोकप्रिय स्टैंड लेता है तो वह अलग-थलग हो जाता है, जैसा कि मैंने अक्सर किया है। महत्वपूर्ण बात यह है कि स्टैंड सही होना चाहिए।“

उन्होंने दाँते को उद्धृत करते हुए लिखा

“ Sequi il tuo corso, e lascia dir le genti

Dante

( Follow your own bent, no matter what people say )”

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