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कालाधन के नाम पर आम लोगों के लिए मौत का परवाना, आम जनता के साथ संसदीय विश्वासघात
आम आदमी को राहत नहीं और सारा काला धन राजनीतिक दलों के खाते में खपाने का इंतजाम दौलताबाद से दिल्ली है
राजनीतिक दलों के लिए एक हजार और पांच सौ के नोट अब वैध हैं, नोटबंदी सिर्फ आम जनता के खिलाफ। कालाधन के नाम पर आम लोगों के लिए मौत का परवाना यह आम जनता के साथ संसदीय विश्वासघात है। सबने अपना अपना हिस्सा समझ लिया और आम जनता को लाटरी खुलने का इंतजार करना है।
पलाश विश्वास
कालाधन निकालने की कवायद अब राजनीतिक दलों के लिए कालाधन अपने खाते में जमा कराने का मौका है। दस्तावेज देने नहीं होंगे, तो सैकड़ों लोगों के नाम बेनामी कालाधन सफेद कराने का चाकचौबंद इंतजाम हो गया है।
गौरतलब है कि आयकर कानून की धारा 13ए 1961 के अनुसार राजनीतिक दलों की उनकी आय को लेकर टैक्‍स से छूट है।
ताजा खबरों के मुताबिक दौलताबाद से दिल्ली वापसी का रास्ता तय हो गया है और लोगों को बिना किसी दस्तावेज के अपना कालाधन राजनीतिक दलों की फंडिंग में खपाने की आजादी मिल गयी है।
मजे की बात है कि 500 और 1000 रुपये के पुराने नोटों को बैंक में जमा कराने पर राजनीतिक दलों पर कोई टैक्‍स नहीं लगेगा। राजनीतिक पार्टियों को आयकर कानून से अलग रखा गया है। जबकि पहले एक हजार और पांच सौ के नोट प्रचलन से बाहर कर दिये गये हैं।
हम पहले ही कह रहे थे कि मुक्तबाजार को लोकतंत्र दरअसल करोड़पति अरबपति खरबपति तंत्र है। संसद में नोटबंदी पर कोई बहस नहीं हुई। आरोप प्रत्यारोप ही हुए।

आम जनता को न संसद और न सुप्रीम कोर्ट से कोई राहत मिली।
आम आदमी को अपनी नकदी सफेद करने के लिए तमाम दस्तावेजी सबूत देने पड़े रहे हैं। रद्द नोट कहीं प्रचलन

में नहीं है, लेकिन वे राजनीतिक चंदे के लिए वैध है।
यह आम जनता के साथ संसदीय विश्वासघात है। सबने अपना-अपना हिस्सा समझ लिया और आम जनता को लाटरी खुलने का इंतजार करना है।
कालाधन जो अभी निकला ही नहीं है, वह राजनीतिक दलों के खाते में सफेद कर देने का इंतजाम है।
जाहिर है कि कालाधन निकालने के लिए यह नोटबंदी नहीं है, जैसा हम बार-बार लिख रहे हैं। डिजिटल इडिया कैशलैस इंडिया बनाने के लिए यह सर्वदलीय संसदीय कारपोरेट कवायद है जिसके तहत मुक्तबाजार में जीवन के हर क्षेत्र में कारपोरेट नस्ली एकाधिकार कायम हो जाये।
वित्त सचिव अशोक लवासा ने शुक्रवार (16 दिसंबर) को यह जानकारी दी। राजस्‍व सचिव हसमुख अधिया के अनुसार राजनीतिक दलों के बैंक खातों में जमा रकम पर टैक्‍स नहीं लगेगा।
उन्‍होंने पत्रकारों से कहा,

”यदि किसी राजनीतिक दल के खाते में पैसे हैं तो उन्‍हें छूट है। लेकिन यदि किसी निजी व्‍यक्ति के खाते में पैसा है तो फिर उस पर कार्रवाई होगी। यदि कोई निजी व्‍यक्ति अपने खाते में पैसा डालता है तो हमें जानकारी मिल जाएगी। ”

बूझो बुड़बक जनगण। बूझ सको तो बूझ लो। भोर भयो अंधियारा दसों ओर।
बाकी ससुरा भाग्यविधाता जो है सो है, अधिनायक नरसिस महानो ह।
भारतीय जनता का कोई माई बाप नहीं।

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