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जान माल की हिफाजत की फिक्र में महाबली बड़ाबाजार की तरह बाकी कोलकाता और बाकी बंगाल दहशत में है। मुख्यमंत्री भी।  

क्योंकि विकास की आंधी प्रोमोटर बिल्डर राज की मुनाफावसूली के सिवाय कुछ नहीं है, इस हकीकत से पहली बार बंगाल के लोगों का वास्ता बना है।
बाकी देश भी स्मार्टशहरों के ख्वाब बुनते हुए असलियत समझने से पहले इसी तरह के हादसों का इंतजार कर रहा होगा। गजब अच्छे दिन हैं। कोई शक की गुंजाइश राष्ट्रद्रोह है। मेकिंग इन जारी है।
एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
कोलकाता (हस्तक्षेप)। स्मार्ट डिजिटल देश में बजट से लेकर शेयर बाजार तक विकास से लेकर राजनीति तक, सड़क से लेकर संसद तक प्रोमोटर बिल्डर सिंडिकेट माफिया राज के तहत किस भारत माता की जै जै Bharat Mata Ki Jai कहकर कैसे अच्छे दिन आ गये हैं, तनिक कोलकाता के उन लोगों से आज ही पूछ लीजिये,  जो बन चुके या अधबने फ्लाई ओवर,  पुल,  बहुमंजिली इंफ्रास्ट्रक्चर के अंदर बाहर कहीं रहते हैं।
यह अभूत पूर्व है गुरुवार को 2.2 किमी लंबे अधबने फ्लाईओवर के मलबे से अभी सरकारी तौर पर 24 लाशें निकली हैं और जख्मी भी सिर्फ 89 बताये जा रहे हैं। मारवाड़ी अस्पताल में कराहती मनुष्यता की कराहों से बड़ाबाजार की कारोबारी दुनिया दहल गयी है तो मलबे में दफन लावारिश लाशों की सड़ांध से बड़ाबाजार तो क्या पूरे कोलकाता की हवाएं और पानियां जहरीली हैं। रातदिन सारा हादसा लाइव चलते रहने और बाकी खतरों के खुलासे से यह दहशत अभी वायरल है।
खुद मुख्यमंत्री दहशतजदा है, जिनका बयान यह है - दो दो फ्लाईओवर गिर गये हैं। ऐसे टेंडर पास हो गये कि धढ़ाधड़ ढह रहे हैं। लोग बेमौत मारे जा रहे हैं और मुझे बहुत डर लगाता है जब मैं राजारहाट की तरफ जाती हूं कि कहीं फ्लाईओवर ढह न जाये। मेदिनीपुर के दांतन में दीदी का यह उद्गार है।
जाहिर

है कि इन हादसों के लिए दीदी पिछली वाम सरकार को जिम्मेदार ठहरा रही हैं।
जबकि तथ्य बता रहे हैं कि हर निर्माणाधीन परियोजना में नई सरकार आने के बाद राजनीतिक वजह से फेरबदल हुआ है और हादसों की मुख्य वजहों में से यह भी एक वजह है। फिर जिन्हें टेंडर मिला, वे भी काम नहीं कर रहे हैं।
पुराने टेंडर की आड़ में सबकंट्राक्टर ही काम कर रहे हैं और वे कायदा कानून ताक पर रखकर काम कर रहे हैं और उन्हें किसी बात का कोई डर भी नहीं है, क्योंकि वे सीधे तौर पर सत्तादल के बाहुबली हैं। बाकी मामला रफा दफा तो होना ही है।
मसलन पहले तो निर्माण संस्था दैवी कृत्य बता रही थी और अब अफसरों की गिरफ्तारी के बाद तोड़ फोड़ और धमाके की कथा बुनी और लाइव प्रसारित है। जाहिर है कि काली सूची में होने के बावजूद, अपने ही शहर और राज्य में प्रतिबंधित होने के बावजूद ऐसी निर्माण संस्थाएं बाकी देश में तबाही मचाने के लिए आजाद हैं।
सत्ता या सियासत को इस पर तब तक कोई ऐतराज नहीं होता जब तक सफाई देने की नौबत बनाने लायक लाशें किसी हादसे से न निकलें। फिर जिन्हें मुनाफावसूली के हजार तौर तरीके मालूम होते हैं, ले देकर मामला रफा-दफा करने के हजार रास्ते भी उन्हें मालूम हैं। जब तक परदे पर खबर रहेगी, तब तक आफत होगी। फिर कोई बड़ा हादसा हुआ तो पुराना किस्सा खत्म।
इस निर्माण की देखरेख तृणमूल संचालित कोलकाता नगर निगम के प्रोजेक्ट इंजीनियर कर रहे थे, बलि का बकरा खोजने के क्रम में उनमें से दो निलंबित भी कर दिये गये है। कहा यह जा रहा कि हादसे से पहले हुई ढलाई के वक्त कोई इंजीनियर मौके पर नहीं था। जबकि हकीकत यह है कि अबाध प्रोमोटर बिल्डर माफिया राज में सरकारी या प्रशानिक निगरानी या देखरेख का कोई रिवाज नहीं है। मेकिंग इन की यह खुली खिड़की है।
इंजीनियर, अफसरान या प्रोमोटर बिल्डर भी नहीं, विकास के नाम ऐसी तमाम परियोजनाएं सीधे राजनीतिक नेताओं के मातहत होती हैं। फिर वे ही नेता अगर अपनी ही कंपनियों के मातहत ऐसी परियोजनाओं को अंजाम देते हों तो किसी के दस सर नहीं होते कि कटवाने को तैयार हो जाये।
बड़ा बाजार में यही हुआ। उन नेताओं के नाम भी सत्ता के गलियारे से ही सार्वजनिक है कि दूसरे प्रतिद्वंद्वी बिलडर प्रोमोटर राजनेता इस मौके का फायदा उठायेंगे ही। यह स्वयंसिद्ध मामला है, लेकिन किसी एफआईआर या चार्जशीट में असल गुनाहगारों के नाम कभी नहीं होते।
जैसे बड़ाबाजार के तृणमूल के पूर्व विधायक व कद्दावर नेता के भाई इस परियोजना की निर्माण सामग्री की सप्लाई कर रहे थे।
हादसे से पहले तक बड़ा बाजार में ही उनके सिंडिकेट दफ्तर में कोलकाता जीत लेने की रणनीति बनाने में मशगूल थे सत्ता दल के नेता कार्यकर्ता। हादसे के बाद वह दफ्तर बंद है और भाईसाहेब भूमिगत हैं।
वे सतह पर भी होंगे तो कम से कम बंगाल पुलिस उन्हें हिरासत में लेने की हिम्मत नहीं कर सकती।
बलि के बकरे मिल गये तो आगे ऐसा विकास जारी रहना लाजिमी है। असली गुनाहगार तक तो अंधे कानून के लंबे हाथ कभी पहुंचते ही नहीं हैं।
बकरों की तलाश है।
जिसके गले की नाप का फंदा है, जाहिर है, फांसी पर वही चढ़ेगा।
ऐसे निर्माण विनिर्माण का तकाजा जनहित भी नहीं है। सीधे ज्यादा से ज्यादा मुनाफावसूली है और काम पूरा होने की टाइमिंग वौटबैंक साधने के समीकरण से जुड़ी है।
जैसे कि बड़ा बाजार के इस फ्लाई ओवर के साथ हुआ।

मुख्यमंत्री का फतवा था कि मतदान से पहले फ्लाईओवर उद्घाटन के लिए तैयार हो जाना चाहिए।
खंभे माफिक नहीं थे।
सुरक्षा के लिए कोई एहतियात बरती नहीं गयी।
ढांचे के तमाम नट बोल्ट खुले थे और महज रेत से भारी भरकम लोहे के ढांचे पर हड़बड़ में ढलाई कर दी गयी।
अभी डर यह है कि मलबा हटाने से बाकी हिस्से फ्लाईओवर के कहीं गिर न जाये या जैसे यह हिस्सा गिरा, वैसे ही दूसरा कोई हिस्सा कहीं गिर न जाये। इससे पहले आधीरात के बाद उल्टाडांगा में भी एक नया बना फ्लाई ओवर हाल में ढहा है, लेकिन सुनसान सड़क होने के कारण तब इतनी मौते नहीं हुई।
इस हादसे से उस हादसे की याद भी हो ताजा हो गयी है।
फ्लाई ओवर पर आने जाने वालों पर शायद कोई फ्रक पड़ता न हो, लेकिन इऩ फ्लाईओवरों के आसपास कोलकाता की घनी आबादी में कहां-कहां घात लगाये मौत शिकार का इंतजार कर रही है, जान माल की हिफाजत की फिक्र में महाबली बड़ाबाजार की तरह बाकी कोलकाता और बाकी बंगाल दहशत में है।
क्योंकि विकास की आंधी प्रोमोटर बिल्डर राज की मुनाफावसूली के सिवाय़ कुछ नहीं है, इस हकीकत से पहली बार बंगाल के लोगों का वास्ता बना है।

बाकी देश भी स्मार्टशहरों के ख्वाब बुनते हुए असलियत समझने से पहले इसी तरह के हादसों का इंतजार कर रहा होगा।
गजब अच्छे दिन हैं, कोई शक की गुंजाइश राष्ट्रद्रोह है।
मेकिंग इन जारी है।
दीदी भले ही कोलकाता के इस हादसे की जिम्मेदारी से बचने के लिए ठेके देने का वक्त वाम शासन का 2009 बता रही हैं, वामदलों को इस बारे में खास कैफियत देने की जरूरत नहीं है क्योंकि गिरोहबंद तृणमूल के अपने प्रोमोटर नेता एक दूसरे को घेरने के फिराक में हैं।
इस इलाके के पूर्व विधायक संजयबख्शी को घेरने की पूरी तैयारी है तो सांसद सुदीप बंदोपाध्याय ने तो दावा ही कर दिया कि फ्लाईओवर के नक्शे में भारी खामियां थी, जिसके बारे में उनने अपनी सरकार को आगाह कर दिया था।

मां माटी मानुष की सरकार ने आधा काम हो गया तो इसका श्रेय भी लूट लिया जाये, इस गरज से मौत का सर्कस जारी रखा।
अब कयास यह है कि मौत का सर्कस और कहां कहां चल रहा है।
इसी बीच इस अधबने अधगिरे फ्लाईओवर के आस पास पांच मकान भारी खतरे की वजह से खाली कराने का आदेश हुआ है जबकि निर्माणाधीन फ्लाईओवर के नीचे से सालों रात दिन ट्रेफिक बिना एहतियात चलती रही और कभी किसी खतरे से किसी को आगाह भी नहीं किया गया।
इस दमघोंटू माहौल में कोई अचरज नहीं कि दमदम एअर पोर्ट से सीधे मौके और अस्पताल में कुल मिलाकर आधे घंटे ही बिता सके राहुल गांधी और उनसे कहा कुछ भी नहीं गया।
उन्होंने पीड़ितों से मुलाकात की और प्रेस के सामने राजनीतिक बयान देने से साफ इंकार कर दिया है।

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