डॉ.रामप्रकाश अनन्त
किसी ज़माने में मलेरिया बेहद खतरनाक बीमारी मानी जाती थी.आज नई दवाओं की खोज और सामाजिक जागरूकता की वजह से मलेरिया बेहद सामान्य बीमारी की तरह है। एक ओर मच्छर से फ़ैलने वाले मलेरिया का भय आम आदमी के मन से निकल गया है तो दूसरी ओर मच्छर से ही फैलने वाली एक अन्य बीमारी डेंगू का भय लोगों के मन में गहरे तक समा गया है। मीडिया ने इस डर को स्थापित करने में अहम् भूमिका निभाई है। बड़ी मात्रा में बीमारी के फैलने, जब-तब लोगों के उससे मरने की खबरों, मीडिया द्वारा बनाई गयी भयावह तस्वीर और जागरूकता के बेहद अभाव के कारण लोग डेंगू के नाम से ही अत्यधिक भयभीत हो जाते हैं। अकेले दिल्ली में ही इस वर्ष अब तक क़रीब 2500 केस डेंगू के मिल चुके हैं।
2006 में दिल्ली में डेंगू ने महामारी का रूप ले लिया था और साठ से अधिक लोग मरे थे। ऐसे में डेंगू का नाम सुन कर लोगों का भयभीत हो जाना अस्वाभाविक नहीं है। इस भय का कुछ शातिर अस्पताल फ़ायदा उठाते हैं और उनके भय को अधिक बढ़ाकर मोटा पैसा ऐंठ लेते हैं।
डेंगू वायरस से पैदा होने वाली बीमारी है जिसे एक जगह से दूसरी जगह फैलाने का काम मादा एडीज मच्छर करती है। इस बीमारी को सामान्य भाषा में बोन ब्रेकिंग फीवर या हड्डी तोड़ बुखार भी कहते हैं। इसके सामान्य लक्षण हैं- बुखार, तेज़ बदन दर्द, सिर दर्द मुख्यतः आँखों के पीछे, शरीर पर दाने आदि हैं।
डेंगू दो तरह का होता है- असिम्पटोमेटिक यानी लक्षणविहीन जिसमें डेंगू के वायरस का संक्रमण तो होता है परन्तु बीमारी के लक्षण नहीं उभरते। ऐसे मरीज़ का टेस्ट करने पर डेंगू पॉजिटिव आयेगा परन्तु वह बिना किसी इलाज़ के ठीक हो जायेगा और वह मरीज़ को कोई नुकसान नहीं पहुँचायेगा। दूसरा सिम्पटोमेटिक यानी बीमारी के लक्षणों वाला। यह भी
डेंगू के संक्रमण में अस्सी प्रतिशत मामले लक्षण विहीन या बहुत सामान्य लक्षण वाले होते हैं। वायरल फीवर की तरह यह स्वनियंत्रित बीमारी है और सामान्य बुखार के उपचार से पांच-सात दिन में ठीक हो जाती है। बीस प्रतिशत जो लक्षण उत्पन्न करने वाले मामले होते हैं उनमें से भी उन्नीस प्रतिशत क्लासिकल डेंगू फीवर के मरीज़ होते हैं और मात्र एक प्रतिशत डेंगू हेमरेजिक फीवर के मरीज़ होते हैं जिनके लिये बीमारी जान लेवा साबित हो सकती है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार पांच करोड़ लोगों में डेंगू का संक्रमण पाया गया उनमें से पांच लाख लोगों में डेंगू हेमरेजिक फीवर था। डेंगू मलेरिया जैसी ही एक बीमारी है। उससे जो मौतें होती हैं उनकी एकमात्र वजह होती है मरीजों को उपयुक्त चिकित्सा सुविधाओं का अभाव।
एक सामान्य बीमारी का आज जनमानस में बेहद खौफ़ है तो उसकी दो वजह हैं। पहली वजह यह कि जब किसी क्षेत्र में डेंगू महामारी के रूप में फैलता है तो खराब स्वास्थ्य सेवाओं के कारण काफी मौतें हो जाती हैं जिससे लोगों में भय का वातावरण बन जाता है। दिल्ली में 2003 में करीब साठ और 2006 में करीब अस्सी लोग डेंगू से मरे थे। कुछ साल बाद दिल्ली में डेंगू का आउट ब्रेक होता रहता है और डेंगू जैसी बीमारी से साठ या अस्सी लोगों का दिल्ली जैसे शहर में मारे जाना न सिर्फ वहाँ की लचर स्वास्थ्य सेवाओं को प्रदर्शित करता है बल्कि लोगों के अन्दर बीमारी का खौफ भी पैदा करता है। डेंगू के खौफ की दूसरी वजह है मीडिया द्वारा डेंगू को भयावह तरीके से पेश करना और जनता में बीमारी के बारे में जागरूकता का बेहद अभाव होना।
जनता के इस भय का कुछ शातिर अस्पताल दोहन करते हैं। अपने चिकित्सीय ज्ञान से भयभीत जनता के भय को और अधिक बढ़ाते हैं और उसके बाद उन्हें उनके साथ ठगी करने में काफी सहूलियत हो जाती है। मेडिकल साइंस के कुछ तकनीकी पहलू भी इसमें उनकी सहायता करते हैं। जैसे डेंगू की लेबोरेट्री जाँच में मरीज़ के खून में एंटीजन IgM व IgG तथा प्रोटीन NS-1 देखे जाते हैं। NS-1 की उपस्थिति से यह पता चलता है कि मरीज़ के अंदर डेंगू वायरस का संक्रमण है लेकिन ज़रूरी नहीं है कि उसे डेंगू फीवर हो ही। IgM व IgG में से अगर केवल IgG पॉजिटिव है तो इसका अर्थ है कि मरीज़ को पूर्व में कभी डेंगू रहा है। कभी-कभी इन तीनों में से किसी के भी पॉजिटिव होने पर चिकित्सक मरीज़ के अन्दर डेंगू का डर पैदा कर के उनसे ठगी कर लेते हैं।
डेंगू के इलाज़ का एक पैरामीटर है प्लेटलेट काउंट। रिपोर्ट में प्लेटलेट के सामने जो रेंज दी होती है वह है-1.2- 5.0 लाख। यह एक औसत रेंज है जिसका अर्थ है कि अधिकाँश लोगों में प्लेटलेट काउंट इस रेंज में होता है। इसका अर्थ यह नहीं है कि किसी की प्लेटलेट काउंट सत्तर हज़ार है तो वह असामान्य है। लेकिन कोई मरीज़ यह सोच कर आसानी से घबरा सकता है कि उसकी प्लेटलेट काउंट नॉर्मल रेंज से आधी रह गयी। मान लो किसी व्यक्ति में डेंगू नेगेटिव है और उसे दूसरी कोई परेशानी नहीं है तब उस व्यक्ति के लिये यह एक सामान्य स्थिति होगी और उसे किसी इलाज़ की ज़रुरत नहीं होगी। लेकिन डेंगू पॉजिटिव होने पर घबराने की नहीं नियमित प्लेटलेट काउंट करने की ज़रूरत है।
मेरे एक मित्र जो BAMS चिकित्सक हैं, उन्होंने फरीदाबाद के एक बड़े अस्पताल में काम किया है और वे एलॉपथी का ज्ञान रखते हैं और इसी पद्धति से इलाज़ करते हैं। कुछ दिन पहले उनका फोन आया था कि एक मरीज़ का डेंगू टेस्ट में IgG व IgM दोनों नेगेटिव हैं और NS-1 पॉजिटिव है। पहले दिन उसकी प्लेटलेट काउंट नब्बे हज़ार थी। उन्होंने एक वायरल फीवर की तरह उसका इलाज़ शुरू किया और प्रतिदिन प्लेटलेट काउंट कराते रहे। पाँचवे दिन उनका उनका फोन आया कि प्लेटलेट काउंट छब्बीस हज़ार रह गयी है। मैंने उन्हें बताया कि इलाज़ जैसे चल रहा है वैसे ही चलना है अगर प्लेटलेट काउंट और कम हुयी तो प्लेटलेट चढ़ानी पड़ेंगी और यह सुविधा तुम्हारे कस्बे में नहीं है इसलिये अटेंडेंट को समझा कर रेफर कर दो। उसी दिन मरीज़ आगरा एक अस्पताल में भर्ती हो गया। छठवें दिन उसकी प्लेटलेट काउंट बढ़ना शुरू हुयी और तीन दिन में घर आ गया।
इस लेख का उद्देश्य जनता में डेंगू के प्रति जागरूकता पैदा करना है और मैं यह बताना चाहता हूँ डेंगू का नाम सुन कर भयभीत होने की ज़रूरत नहीं है। लेकिन एक बात में कहना चाहता हूँ बेहतर चिकित्सा के लिये मरीज़ और डॉक्टर के बीच विशवास का होना बेहद ज़रूरी है। लोगों को शहर में फैले ठगी करने वाले अस्पतालों के दलालों से बचना चाहिए, अगर कोई डॉक्टर बिना वजह डेंगू के नाम पर भयभीत करने की कोशिश कर रहा है तो डॉक्टर बदलने के बारे में विचार करना चाहिए परन्तु एक बार इलाज़ शुरू कराने के बाद डॉक्टर पर विश्वास करना चाहिए और यह मानना चाहिए कि वह मरीज़ की भलाई के लिए काम कर रहा है। यह मरीज़ के हित में होगा।