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पानी का कोरबार अब मंदी में, हवा के कारोबार में मुनाफावसूली की दरकार  चुनिंदा कंपनियों को ठेका जारी कर दें तो विशुद्ध देशभक्ति होगी।
राजधानी की हवा खराब करने के लिए भी किसान जिम्मेदार हैं!!!
हिमालय से विशुद्ध आयुर्वेदिक हवा बाकी तमाम ब्रांड की तरह लाकर ही रोजमर्रे की जिदगी संभव!
फिरभी फिक्र सिर्फ राजधानी की!
सबिता बिश्वास

तकनीकी विकास से मनुष्यता और प्रकृति के बीच संतुलन खत्म हो रहा है और पर्यावरण चेतना जो सभ्यता के विकास के साथ संसाधनों के उपयोग के सिलिसले में नैसर्गिक चेतना रही है, वह मुक्तबाजार की अबाध क्रयशक्ति से सिरे से खत्म है।
नदियों, पहाड़ों और समुंदर को धर्म और आध्यात्म के लोक सांस्कृतिक मानस के मुताबिक जो पवित्र माना जाता रहा है, वह अब मुक्तबाजार में जल जंगल जमीन से मनुष्यता को बेदखल करने का युद्ध, गृहयुद्ध और मुक्तबाजार है।
विकास का मतलब है प्रकृति का सर्वनाश।
अब हालात यह है कि पेयजल सुरक्षित नहीं है।
न ही जल संसाधन कहीं सुरक्षित हैं। नदियां सारी बंध गयी हैं, जिसका पानी अब रासायनिक हो गया है।
बरसात भी अब तेजाबी होने की आशंका है।
समुद्रतट रेडियोएक्टिव हम बना चुके हैं। फिर भी हमें दिल्ली और राजधानी क्षेत्र की सेहत की ज्यादा चिंता है। मनुष्यता और प्रकृति के भविष्य के बारे में हम बेफिक्र है।
दिल्ली में हवा जहरीली हो गयी है।
दिल्ली केंद्रित औद्योगीकीकरण और अंधाधुंध शहरीकरण के तमाम केंद्रों में लोगों को सांस लेने में भी तकलीफ हो रही है।
फिर भी किसी को अब भी होश नहीं है कि विकास के नाम पर कैसा गजब हम ढा रहे है कि खुली सांस के लिए मोहताज हैं।
पानी और बिजली के लिए राजधानी क्षेत्र हिमालय के संसाधनों पर निर्भर है और गंगा की अबाध जलधारा पर जख्मी हिमालय की गोद में विशाल बांध टिहरी को दिल्ली की बिजली पानी की जरुरत के मद्देनजर

बनाया गया है, ठीक उसी तरह जैसे मुंबई में बिजली की चकाचौंध बनी रहे, इसलिए जैतापुर में पांच-पांच परमाणु भट्टी लगायी जा रही हैं, तो चेन्नई के विकास के लिए कलपक्कम और कु़ड़नकुलम के परमाणु संयंत्र हैं और दिल्ली से सटा नरोरा परमाणु बिजली घर है।
उत्तराखंड और हिमाचल में आम जनता का जो भी हो, लगता है कि इन दोनों राज्यों की लाटरी निकलने वाली है। क्योंकि बिजली पानी के बाद अब राजधानी में विशुद्ध हवा भी वहीं से पाइपलाइन से लाने की नौबत आ गयी है।
पिघलते हुए ग्लेशियरों और बंधी हुई नदियों के हिमालय के भूस्खलन, भूकंप और जंगलों की अंधाधुंध कटाई, माफिया गिरोह के हर इंच जमीन दखल करने के बाद हमारे हिस्से का कितना हिमालय बचा होगा, इस पर हमने अभी सोचा नहीं है और कश्मीर, गोरखालैंड या पूर्वोत्तर में जो हिमालय बचा है, राजनीतिक अस्थिरता और सैन्यशासन के बाद वहां हवा भी बचेगी या नहीं, इस पर भी शक है।
बहरहाल राजधानी नई दिल्ली और राजधानी क्षेत्र अब मनुष्यता के लिए कतई सुरक्षित नहीं है।
सत्ता केंद्र बन जाने के बाद बाकी देश को बेचने के सारे उपक्रम नई दिल्ली से शुरु होते हैं।
प्राकृतिक संसाधनों का मुक्तबाजार नई दिल्ली में ही लगा है और सारे राजनीतिक कारोबार, युद्ध गृहयुद्ध हथियारों की होड़ और अंध राष्ट्रवाद के युद्धोन्माद से देश और दुनिया का सत्यानाश करने वाले वातानुकूलित राजनीतिक वर्ग ने आम जनता को अक्षरशः सांस-सांस के लिए मोहताज बना दिया है और अब हिमालय से विशुद्ध आयुर्वेदिक हवा बाकी तमाम ब्रांड की तरह लाकर ही रोजमर्रे की जिदगी संभव है।
गौरतलब है कि हिमालय की सेहत का ख्याल न करने वालों,  जल जंगल जमीन से मनुष्यता को बेदखल करके विस्थापितों और झुग्गी झोपड़ियों का महानगर बनाने वालों, समुदरों को रेडियोएक्टिव बनाने वालों की दिल्ली और उनके एनसीआर में सांस लेना बेहद मुश्किल हो चुका है।
फिलहाल दीवाली के बाद हवा में प्रदूषण का स्तर सामान्य से 6 गुना तक ज्यादा दर्ज़ किया गया है।
हकीकत उससे भयंकर है क्योंकि केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने गोवर्धन पूजा के दिन देश के प्रमुख शहरों की हवा की जांच के बाद जो आंकड़े जारी किए,  वह बेहद हैरतअंगेज हैं।
उत्तर प्रदेश के चार प्रमुख शहर आगरा,  लखनऊ,  कानपुर और वाराणसी देश के टॉप 10 शहरों की सूची में दिवाली से बरकरार बने हुए हैं।
चौंकाने वाले तथ्य ये हैं कि देश में कई फैक्ट्री एरिया और महानगरों के बाद भी आगरा टॉप तीन प्रदूषित शहरों में है।
हाल ये हैं कि एनसीआर में दिवाली के चौथे दिन भी स्मॉग का असर रहा।
गुरुवार सुबह भी प्रदूषण का स्तर सुरक्षित स्तर की तुलना में कई गुना अधिक रहा।
दिल्ली के कई पल्यूशन मॉनिटरिंग स्टेशन में पीएम 2.5 और पीएम 10 जैसे प्रदूषित कणों का स्तर सामान्य से पांच गुना तक ज्यादा दर्ज हुआ।
सर्दियों की शुरुआत अभी हुई है और उससे पहले ही भारत की धुंध की चर्चा दुनिया भर में होने लगी है।
गौरतलब है कि इस स्मॉग को लेकर नासा ने कुछ तस्वीरें जारी की हैं, जिसमें ये अनुमान लगाया जा रहा है कि इन दिनों किसानों द्वारा 3.2 करोड़ टन पराली जलाने से वायु ज्यादा प्रदूषित हो रही है। जिसके आधार पर यूपी के किसानों को इस कयामती फिजां के लिए जिम्मेदार ठहराया जाया रहा है।
दिल्ली की दसों दिशाओं में खेत खलिहान देहात बचे नहीं हैं। जो बचे-खुचे हैं भी वे भी बिल्डरों और माफिया तत्वों के कब्जे में हैं।
कहते हैं कि दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री सत्येन्द्र जैन की अगुवाई में दिल्ली सरकार के एक कार्यबल ने इस स्थिति से निबटने के लिए गुरुवार को केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति के वैज्ञानिकों के साथ एक बैठक की।
उन्होंने पंजाब और हरियाणा में फसलों की बची पराली को जलाने को प्रदूषण बढ़ने के प्रमुख कारक में गिनाया।
राजधानी की हवा खराब करने के लिए भी किसान जिम्मेदार हैं!!!
जाहिर हैं कि राजधानी की सेहत खराब करने वाले ऐसे देशद्रोही किसानों के हकहकूक के लिए लड़ने वाले तमाम लोग देशद्रोही ही होंगे। हवा शुद्ध करने के लिए इन देशद्रोहियों को फांसी पर चढ़ाना अंध राष्ट्रभक्तों का अगला राममंदिर अभियान हो तो अचरज नहीं।

गौरतलब है कि भारतीय कृषि हरित क्रांति से पहले तक प्रकृति के विरुद्ध थी नहीं कभी।
रसायनिक खाद, जैविकी संशोधित बीज, भूगर्भीय जल से सिंचाई और मशीनों से मंहगी खेती हरित क्रांति की उपलब्धियां है।
किसान ही अगर नई दिल्ली और राजधानी में प्रदूषण के लिए जिम्मेदार हैं, तो जहां औद्योगीकरणहुआ नहीं है और न शहरीकरण हुआ है, हरियाली के उन द्वीपों की हवा पानी की भी जांच करवा लीजिये और वहां नई दिल्ली जैसा प्रदूषण हुआ तो बेशक उन्हें भी राजधानी क्षेत्र में खपा लीजिये।
राज्यों की राजधानियों की क्या कहें, जिला शहरों के आस पास भी खेती और देहात की जमीन शिकुड़ती जा रही है और लगातार अनाज की पैदावार घटती जा रही है और किसानों की थोक आत्महत्याओं के बाच बंधुआ खेती भी अब कानूनन जायज है।
फिर भी खेती और किसानों को दिल्ली के संकट की वजह बताने की मीडिया मुहिम हैरतअंगेज है।
बहरहाल राजधानी दिल्ली की हवा में प्रदूषण खतरनाक स्तर पर बना हुआ है।   दिवाली के घनघोर उत्सव के बाद से हालात बेहद खराब हो गए हैं।

प्रदूषण से बचने के तमाम उपकरण घर बैठे ईटेलिंग से मंगाये जा रहे हैं।
मास्क की भारी मांग बनी हुई हैं। ये दिवाली के रंग बिरंगे पटाखे हैं जिनसे धमाके होने अभी बाकी है।
पानी का कोरबार अब मंदी में है शायद, हवाओं के कारोबार में भी मुनाफावसूली की दरकार है। चुनिंदा कंपनियों को ठेका जारी कर दें तो विशुद्ध देशभक्ति होगी।
आटा घी शहद चाय चावल दाल पानी की तरह हवा भी अब विशुद्ध आयुर्वेदिक होनी चाहिए।
वातानुकूलित तबकों मे खलबली है कि राजधानी में दिन की शुरुआत ही सुबह की धुंध के साथ हो रही है। वहां स्कूलों ने निर्देश दिए हैं कि बच्चों को गैस मास्क पहनाकर स्कूल भेजा जाए और बच्चे फिजिकल एक्टिविटी में कम हिस्सा लें।
फिलहाल राजधानी में सत्ता की राजनीति चाहे जितनी गरम हो, आम लोगों के लिए दिल्ली का सफर मंहगा हो सकता है।

विशुद्ध हवा की आपूर्ति अभी शुरु हुई नहीं है।
यूपी और उत्तराखंड केसरिया हो जाये तो शायद कोई पतंजलि उपाय निकाला जाये कि यूपी के रास्ते हिमालय की शुध हवा भी उत्तराखंड से लूट ली जाये।
बहरहाल  प्रदूषणकारी तत्वों पीएम 2.5 और पीएम 10 की अधिकता और नमी के साथ दिल्ली के ऊपर धुंध की चादर बनी हुई है।  स्थानीय स्तर पर हवा नहीं चलने से भी दिक्कत बनी हुई है।
गौरतलब चेतावनी विशेषज्ञों की है कि अगर जहरीली हवा का यही स्तर कुछ दिनों तक दिल्ली और आसपास के वातावरण में रहा तो लोगों को सांस लेने की परेशानी हो सकती है।
इसके अलावा बच्चों-बुजुर्गों को भी सांस संबंधी तकलीफें हो सकती हैं।
नेशनल एयर क्वालिटी इंडेक्स के मुताबिक दिल्ली में वायु प्रदूषण की स्तर खतरनाक स्तर पर पहुंच चुका है।
दिवाली पर दिल्ली में कई स्थानों पर प्रदूषण का स्तर खतरनाक से भी ऊंचा स्तर पर रिकॉर्ड किया गया है।
पर्यावरण से जुड़े मसले पर सेंटर फॉर साईंस एंड एनवायरमेंट ने कहा कि राष्ट्रीय राजधानी में बीते 17 वर्षों में सबसे खतरनाक धुंध छाई हुई है।
दिल्ली सरकार को इस मामले में चेतावनी जारी करने की सलाह दी गई है।
दिल्ली में दीपावली के बाद से ही वातावरण में धुंध की परत छाई हुई नज़र आ रही है।
राहत की कोई गुंजाइश बाहर निकलकर भी नहीं है। नोएडा और मेरठ गाजियाबाद के हालात अभी नामालूम है लोकिन गुड़गांव और फरीदाबाद का प्रदूषण लगातार बढ़ता जा रहा है।
लगातार बढ़ रहा प्रदूषण खतरनाक स्तर पर पहुंच गया है।

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