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जनसत्ता में जूट मिल की व्यवस्था चालू है
ओम थानवी जी माफ करेंगे कि सार्वजनिक तौर पर हम निवेदन कर रहे हैं कि वे अफवाहों के मुताबिक अपनी विदाई से पहले जो नये संपादक के साथ कोलकाता आ रहे हैं, इस मौके पर हम हाजिर न हो सकेंगे।
कि उनकी विदाई के साथ जनसत्ता में जूट मिल की व्यवस्था चालू है और चाहे अकेले अखबार निकालो,चाहे कुल जमा दो डेस्की साथियों की छुट्टियों के दिनों बिना रेस्टडे काम करते जाओ, चाहे घर वापसी का कोई टाइम न हो और न हो ओवरटाइम जूट मिलों की तरह, प्रेमपत्र जारी हो गया है कि एक मिनट बाओमेट्रिक स्पर्श में देरी हुई कि नहीं, अब वेतन कटेगा या कटेगा अवकाश।
पत्रकारिता में हम जब से हैं, यानी 1980 के बाद पहली बार ऐसी पाबंदी लगी है और मैनेजमेंट के लोग फतवा दे रहे हैं और संपादक खामोश हैं। बुढ़ापे में इस फजीहत के बाद फिर क्या मतलब है कि किसी संपादक से हो मुलाकात या नहीं ही हो।
हम तब भी खामोश रहे, जब एक्सप्रेस और एफई के साथी हफ्ते में दो दिनों का अवकाश लेते रहे और कवि संपादक की चुप्पी के बहाने हमें साप्ताहिक अवकाश एक दिन का मिलता रहा।
अब भी इसी हाउस के अंग्रेजी अखबारों में किसी के आने जाने पर कोई पाबंदी नहीं है। सेवा विस्तार में हमारी कोई दिलचस्पी नहीं है। मसले के सार्वजनिक खुलासे के लिए अभी डिसमिस हो जायें, इससे भी मुझे अब कोई फर्क नहीं पड़ता।
मौसम खराब हो, रास्ते पर सड़क जाम हो या जुलूस हो रास्ते के दरम्यान या बसें न हो सड़कों पर, मजीठिया पूरी तरह मिला नहीं है और न वायदे के मुताबिक दो क्या एको प्रोमोशन मिला है, एरियर से बिना पीएफ काटे इनकाम टैक्स काटा जा रहा है और उम्मीद हमसे यह की जाती है कि हम अपनी

गाड़ी से वक्त पर दफ्तर जरुर पहुंच जाये जबकि एक अदद साईकिल भी हमारे पास नहीं है।
थानवी जी, आप हमारे लिए प्रभाष जोशी से बेहतर संपादक रहे हैं कि जनसत्ता का तेवर आपने केसरिया होने नहीं दिया है, इसका आभार।
हम नहीं चाहते कि आमने-सामने कोई तकरार हो जाये और मजा किरकिरा हो जाये मुलाकात का।
पलाश विश्वास