Hastakshep.com-Uncategorized-

नई दिल्ली। जहाँ एशिया का पहला किसान जन्मा, वहीं आज आपत्तिकाल आया है। जी हाँ, नर्मदा में आपत्तिकाल आया है। बिना पुनर्वास के तीन राज्यों के 244 गाँव और एक नगर - 30,000 हेक्टेयर अति उपजाऊ कृषि भूमि, वन, हजारों घर और लाखों पेड़ जल मग्न होने की स्थिति में हैं! 45,000 से अधिक किसान, आदिवासी, मछुआरे, कुम्हार, दुकानदार, भूमिहीन कामगारों का पुनर्वास अधूरा है। मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में पुनर्वास के लिए आज भी 30,000 एकड़ भूमि की आवश्यकता है। आंकड़ों का खेल करके हजारों पात्र विस्थापित परिवारों, 40 गांवों और एक बड़े शहर को डूब से बाहर दिखाया गया। झूठे जलस्तर के निशान के कारण लगभग 16 हजार परिवारों की ज़िन्दगी खतरे में है। पिछले ग्यारह वर्षों में 1,000 करोड़ के भ्रष्टाचार का घोटाला सामने आया है और 3,000 झूठी रजिस्ट्रियों की अदालती जांच हुई है। अदालती कार्यवाही जारी है।
इस बीच नर्मदा में आपत्तिकाल पर रणनीतिक चर्चा हेतु नर्मदा बचाओ आंदोलन ने आगामी 24 जून को दिल्ली में देश भर के सामाजिक कार्यकर्ताओं की एक बैठक बुलाई है। यह जानकारी देते हुए नर्मदा बचाओ आंदोलन की मेधा पाटकर, विमल भाई, मधुरेश, राजेंद्र रवि और शबनम ने बताया कि बैठक 24 जून, 2016 को दोपहर दो बजे से सायं छह बजे तक नई दिल्ली के लोदी रोड इन्स्टीट्यूशनल एरिया में इंडियन सोशल इंस्टीट्यूट में होगी।

नर्मदा घाटी की असलियत
Reality of Narmada Valley
नर्मदा बचाओ आंदोलन  ने कहा है, "आज नर्मदा में आपत्तिकाल काल है। डूब सामने है। फिर एक चुनौती सामने है। अदालतों में भी एक संघर्ष चल ही रहा है। हम बहुत ही आभारी हैं उन वकीलों के जो आज आंदोलन का ही एक हिस्सा बन गये हैं। फिर भी डूब का सामना करने के लिये एक जमीनी रणनीति तो बननी ही चाहिये।
 एक के बाद एक जन-आंदोलन, धरने-प्रदर्शन, लम्बे उपवास, देशभर में तमाम साथी बने, कलाकार,

लोकविज्ञानियों, लेखक, फिल्मकार, वकील, बुद्धिजीवी सहित तमाम जनसंगठनों ने साथ दिया-साथ लिया। पर्यावरण की तो बात ही एकतरफ कर दी गई, लाभ-हानि की बात ही नहीं की गई किन्तु एक समय बाद अदालतों ने भी कहीं हद तक आकर अंत में माना ही कि पुनर्वास नहीं हो पाया है। तमाम पूर्व न्यायाधीशों ने अपनी रिर्पोटों में नर्मदा घाटी की असलियत जाहिर की। नर्मदा बचाओ आंदोलन ने करोड़ो रुपये के भ्रष्टाचार को उजागर किया।"

सरकार ने सरदार सरोवर को प्रतिष्ठा का प्रश्न बनाया
The government made a prestige issue Sardar Sarovar
नर्मदा बचाओ आंदोलन  ने कहा है, "सरकारों ने खासकर वर्तमान सरकार ने सरदार सरोवर को प्रतिष्ठा का प्रश्न बनाया है। सभी सच्चाईयों को एक तरफ करके महज बाँध को पूरा करने की तैयारी की है।
परियोजना की अंतिम लागत 90,000 करोड़ तक! 30 वर्षों में केवल 30 प्रतिशत नहरें गुजरात में बनी। बाँध की 122 मीटर की ऊंचाई होने पर 8 लाख हेo भूमि का सिंचित करने के दावे के विपरीत 2 लाख हेo से भी कम भूमि की सिंचाई हुई। लाभ क्षेत्र से 4 लाख हेo भूमि निकालकर किसानों को वंचित करने की कोशिश की गई है। लाभ क्षेत्र की भूमि तथा जलाशय का जल कोर्पोरेट्स को दिया जा रहा है। मध्यप्रदेश तथा महाराष्ट्र को ‘‘मुफ्त बिजली‘‘ देने के झूठे राजनैतिक वादे। जबकि दोनों राज्यों का करोड़ों रुo और हजारों हेo जमीन का निवेश है। हजारों लीटर पानी न्यूनतम मूल्यों पर बोतलबंद जलउद्योगों को दिया जा रहा है। सरदार पटेल पर्यटन परियोजना के लिए 3,000 करोड़ का निवेश, जो कि तीनों राज्यों के परियोजना प्रभावितों के कुल पुनर्वास खर्च से ज्यादा है! बाँध में अभी तक जमा हुये पानी का भी नियोजन सही नहीं हो पाया है। प्रारंभिक योजना से अलग जाकर पानी का इस्तेमाल हो रहा है। सूखे कच्छ की बात करके पानी को अहमदाबाद जैसे शहरों व उद्योगो को पानी दिया जा रहा है।"
Narmada disaster period, the country's social worker will discuss strategic