मीडिया में जनतंत्र, समता और सामाजिक न्याय का किस्सा जनसत्ता है।
आप घूमकर कहेंगे कि वाह जनाब, आप तो बाकायदा सबसे बड़े जनप्रतिबद्ध अखबार जनसत्ता से हैं।
अब हमारी हैसियत का ख्याल भी कीजिये जनाब।
जनसत्ता के संस्थापक संपादक रहे माननीय प्रभाष जोशी।
उनके बाद कायदे से बनवारी को बनना चाहिए था, बनाये गये राहुल देव।
राहुल देव बेहतरीन संपादक रहे हैं और बाकायदा उनके पास जनसत्ता रिलांच करने की मुकममल योजना थी। वे ताश के पत्तों को फेंट देना चाहते थे। जल्द ही वे निपटा दिये गये।
अच्युतानंद मिश्र भी संपादक रहे और उनके किये धरे का कुछ अता पता नहीं चला।
राजस्थान पत्रिका की इतवारी से उठाकर जोशी जी ने ओम थानवी की ताजपोशी की। तो उनसे हमारा कोई संवाद कभी नहीं रहा है। न उनने कभी आमने-सामने हमारी सुनवाई की। कोलकाता में हम अनाथ की तरह अखबार निकालते रहे।
बहरहाल राहत की बात यह थी कि ओम थानवी ने धर्मोन्मादी राष्ट्रवाद से आखिरी वक्त तक लोहा लिया और जनसत्ता को केसरिया बनने नहीं दिया।
प्रदीप सिंह मुंबई के स्थानीय संपादक बने तो अखबार ही बंद कर दिया गया।
अंबरीश कुमार को रायपुर का प्रभार सौंपा गया तो वह एडीशन भी ठप।
लखनऊ में कोई चिड़िया या चिडि़या का बच्चा है या नहीं, हम नहीं जानते।
कोलकाता में श्याम आचार्य के बाद शंभूनाथ शुक्ल विराजमान रहे तो करीब पंद्रह साल से शैलेंद्र प्रभारी है। यह अजूबा है। हमारे लिए राहत की बात है कि ओम थानवी ने हमारे निवेदन पर गौर करके शैलेंद्र की सेवा जारी रखी है।
हम उनका आभार ठीक से जता भी नहीं पाये कि उनका जाना तय हो गया और चंडीगढ़ से मुकेश भारद्वाज जनसत्ता के नये कार्यकारी संपादक हो गये।
अब बताइये, इस जनसत्ता में हम क्या हैं और हमारी हैसियत क्या है।
बाकी अखबारों में मजीठिया लागू करने के बाद पदोन्नतियां दी गयी हैं। कोलकाता एडिशन की ग्रेडिंग सबसे नीचे है और वेतनमान दो दर्जा ऊपर हो
एरियर हमें वेतन का मिल रहा है। हमने मजीठिया के मद्दनजर पीएफ 24 फीसद कटवाना शुरु किया ताकि आयकर बचाया जा सके। लेकिन वेतन के एरिअर पर पीएफ काटा नहीं जा रहा है और सोर्स से ही बीस फीसद के हिसाब से पूरे वेतन पर आयकर काटा जा रहा है। मालिक पक्ष का योगदान बचाने के लिए हम लोगों के वेतन पर जबरन बीस फीसद आयकर काटा जा रहा है।
और तो और कोलकाता में, मुंबई रोड पर आये अरसा हो जाने के बावजूद किसी को परिचय पत्र भी नहीं मिला है।
मीडिया में जनतंत्र, समता और सामाजिक न्याय का किस्सा जनसत्ता है।
पलाश विश्वास