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अरुण माहेश्वरी

हिंदी के अख़बारों में अनुवाद का एक छोटा सा नमूना :

उटपटांग या एक प्रकार का मच्छरमार अनुवाद ( अगर पाठ की मूल प्रति में कहीं मरा हुआ मच्छर चिपका हो तो अनुवाद में भी एक मच्छर को मार कर चिपकाने वाला अनुवाद) कैसे दूसरी भाषा के पाठ की हत्या करता है, इसका आज एक और उदाहरण देखा ‘जनसत्ता’ में छपे पी चिदंबरम के स्तंभ ‘दूसरी नजर’ में । यह किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा किया गया अनुवाद है जिसे आर्थिक विषयों और पदों की शायद न्यूनतम जानकारी भी नहीं है और न अंग्रेज़ी भाषा की है। ऊपर से प्रूफ़ की ढेर सारी भूलें इसे और भी बदतर बना दे रही है ।

इसमें की गई एक क्लासिक भूल है ‘CSO’ अर्थात Central Statistical Organisation, जिसका हिंदी नाम है ‘केंद्रीय सांख्यिकी संगठन’, उसे ‘कस्टमर सर्विस आर्डर’ बना दिया गया है । मंदी को हर जगह ‘मंदन’ लिखा गया है ।

और देखिये, मूल अंग्रेज़ी में चिदंम्बरम ने लिखा है - ‘A careful diagnosis would have revealed that the proximate causes were the sputtering engines of private investment, private consumption and exports.’

(अर्थात, सावधानी से जाँच करने पर पता चलता कि रोग के प्रमुख कारण निजी निवेश, निजी खपत और निर्यात की डांवाडोल स्थिति है।)

इसका जनसत्ता में अनुवाद है - “ सावधानीपूर्वक किया गया निदान यह रहस्य खोलेगा कि इंजन की चरमराहट का निकटस्थ कारण है निजी निवेश, निजी खपत और निर्यात “ ।

इस स्तंभ के अनुवाद के पहले वाक्य से अंतिम वाक्य तक की यही स्थिति है ।

हमारा सवाल है कि ‘जनसत्ता’ चिदंबरम के ‘इंडियन एक्सप्रेस’ के लोकप्रिय स्तंभ का अनुवाद हिंदी के पाठकों तक चिदंबरम के विचारों को पहुँचाने के लिये करता है या हिंदी के पाठकों के लिये उन विचारों की हत्या करने के लिये ?