अजमेर, 05 सितंबर 2019. हाल ही देश के प्रमुख मुस्लिम संगठन जमीयत उलेमा-ए-हिंद के प्रमुख मौलाना अरशद मदनी की राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत से मुलाकात (Jamiat Ulema-e-Hind chief Maulana Arshad Madni meets Rashtriya Swayamsevak Sangh's Mohan Bhagwat) हुई। बताया जाता है कि इस दौरान दोनों के बीच हिन्दू-मुस्लिम एकता (Hindu-Muslim unity) को बढ़ावा देने और भीड़ द्वारा हत्या की घटनाओं (मॉब लिंचिंग- Mob lynching) सहित कई मुद्दों पर बातचीत हुई। जानकारी के अनुसार दोनों की मुलाकात की भूमिका लंबे से तैयार हो रही थी और इसके लिए भाजपा के पूर्व संगठन महासचिव राम लाल मुख्य रूप से प्रयासरत थे।
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मौलाना मदनी ने आरएसएस प्रमुख से कहा कि हिंदू-मुस्लिम एकता और सांप्रदायिक सद्भाव के बिना हमारा देश बड़ी ताकत नहीं बन सकता। उन्होंने भीड़ द्वारा हत्या, घृणा अपराधों की घटनाओं को रोकने के लिए ठोस कदम उठाने की जरूरत पर भी जोर दिया। एनआरसी और कुछ अन्य मुद्दों पर भी बात हुई।
दोनों की मुलाकात ने मीडिया में खासी सुर्खियां बटोरीं। मीडिया में इस पर भी बहस हुई कि क्या इस मुलाकात के मायने ये निकाले जाएं कि संघ अब मुस्लिमों के प्रति कुछ उदार होने की दिशा में कदम उठा रहा है, वरना उन्हें मुस्लिम नेता कर क्या हासिल करना था।
ज्ञातव्य है कि इससे पूर्व भागवत इस आशय का बयान भी दे चुके हैं कि इस हिंदुस्तान का हर नागरिक हिंदू है, अर्थात वे मुस्लिमों को अलग कर के नहीं देखते। इसके पीछे उनके अपने तर्क हैं।
संघ की मूल अवधारणा भी है कि हिंदू कोई धर्म नहीं, अपितु एक संस्कृति है, जीवन पद्धति है, जिसमें यहां पल रहे सभी धर्मावलम्बी शामिल हैं।
इसे इस संदर्भ में भी देखा जा सकता है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने पहले कार्यकाल में सबका साथ, सबका विकास नारा दिया था, जिसे दूसरे कार्यकाल में बदल
आपको ख्याल होगा कि किसी जमाने में जब वे गुजरात के मुख्यमंत्री थे तो मंच पर एक मुस्लिम नेता के हाथों टोपी पहनने से इंकार कर दिए जाने के कारण उन्हें कट्टरवादी करार दिया गया। बाद में प्रधानमंत्री बनने पर इस्लामिक देशों की यात्रा के दौरान उनका नरम हुआ रुख सबके सामने है।
हमें यह बात भी ख्याल में रखनी होगी कि मुस्लिमों को मुख्य हिंदूवादी धारा या राष्ट्रवाद से जोड़ने के लिए संघ के ही प्रमुख नेता इन्द्रेश कुमार पिछले कई साल से सतत प्रयास कर रहे हैं। मुस्लिम आत्मिक रूप से कितने जुड़ पाए हैं, इसका तो पता नहीं, मगर उनके सम्मेलनों में भारी तादाद में मुस्लिमों को शिरकत करते देखा गया है।
इसी संदर्भ में संघ के ही एक प्रमुख विचारक ने लिखा है कि आजादी से पूर्व संघ के संस्थापक डॉ. केशवराव बलिराम हेडगेवार की सबसे बड़ी पीड़ा यह थी कि इस देश का सबसे प्राचीन समाज यानि हिन्दू समाज राष्ट्रीय स्वाभिमान से शून्यप्राय:, आत्म विस्मृति में डूबा था। इसी परिप्रेक्ष्य में संघ का उद्देश्य हिन्दू संगठन यानि इस देश के प्राचीन समाज में राष्ट्रीय स्वाभिमान, नि:स्वार्थ भावना व एकजुटता का भाव निर्माण करना बना।
डॉ. हेडगेवार का यह विचार सकारात्मक सोच का परिणाम था। किसी के विरोध में या किसी क्षणिक विषय की प्रतिक्रिया में से यह कार्य नहीं खड़ा हुआ। अत: इस कार्य को मुस्लिम विरोधी या ईसाई विरोधी कहना संगठन की मूल भावना के ही विरुद्ध हो जायेगा।
विषय के विस्तार में जाएं तो हिन्दू के मूल स्वभाव - उदारता व सहिष्णुता के कारण दुनिया के सभी मत-पंथों को भारत में प्रवेश व प्रश्रय मिला। संघ की प्रार्थना में प्रार्थना में मातृभूमि की वंदना, प्रभु का आशीर्वाद, संगठन के कार्य के लिए गुण, राष्ट्र के परम वैभव (सुख, शांति, समृद्धि) की कल्पना की गई है। प्रार्थना में हिन्दुओं का परम वैभव नहीं कहा है, राष्ट्र का परम वैभव कहा है। अर्थात संघ मुसलमानों को अपने से अलग करके नहीं मान रहा, भले ही उनकी पूजा पद्धति भिन्न है।
तस्वीर का दूसरा रुख ये है कि आज तक अधिकतर मुस्लिमों ने संघ से दूरी बना रखी है। ऐसे में संघ के समक्ष यह चुनौती है कि मोहन भागवत अजमेर की सरजमीं से यह संदेश दें कि संघ मुस्लिमों अथवा उनके धर्मस्थलों के प्रति घृणा का भाव नहीं रखता। विशेष रूप से सूफी मत की इस कदीमी दरगाह के प्रति, जो कट्टरवादी इस्लाम से अलग हट कर सभी धर्मों में भाईचारे का संदेश दे रही है।
प्रचंड बहुमत से सत्ता पर काबिज भाजपा के मातृ संगठन के प्रमुख के नाते उनकी ऐतिहासिक व पौराणिक पुष्कर में गरिमामय मौजूदगी विशेष अर्थ रखती है। तीर्थराज पुष्कर व सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह (Dargah of Sufi Saint Khwaja Moinuddin Chishti) को अपने आचंल में समेटे ऐतिहासिक अजमेर दुनिया भर को सांप्रदायिक सौहार्द्र का संदेश देता है।
अजमेर शरीफ इस बात का भी गवाह रहा है कि राजा हो या रंक, हर कोई दोनों अंतर्राष्ट्रीय धर्मस्थलों पर हाजिरी जरूर देता है। ऐसे में आमजन में यह सवाल कुलबुला रहा है कि क्या आप भी पुष्कर के अतिरिक्त दरगाह के प्रति भी अपनी श्रद्धा व्यक्त करेंगे। अजमेर में अपनी मौजूदगी का लाभ उठाएंगे? क्या दरगाह जियारत करके अथवा दरगाह में सिर्फ औपचारिकता मात्र के लिए श्रद्धा सुमन अर्पित करके कोई उदाहरण पेश करेंगे? क्या भाजपा से जुड़े मुस्लिमों को अपनी जमात में गर्व से सिर उठाने का मौका देंगे? या फिर इस सवाल को अनुत्तरित ही छोड़ देंगे?
Mohan Bhagwat in Ajmer
उल्लेखनीय है कि तकरीबन दस साल बाद भागवत अजमेर की सरजमीं पर उपस्थित हुए हैं। पूर्व में वे अजयनगर के अविनाश माहेश्वरी पब्लिक स्कूल परिसर में ठहरे थे। तीन दिन के अजमेर प्रवास और अंत में आजाद बाग में उन्होंने संघ कार्यकर्ताओं को संबोधित किया था। ठीक दस साल बाद मोहन भागवत अजमेर की धरती पर आए हैं और इस बार ब्रह्मा की नगरी तीर्थराज पुष्कर की धरा पर प्रवास कर रहे हैं। दस साल पूर्व भी अजमेर आगमन पर ये सवाल उठा था कि क्या वे दरगाह जियारत को जाएंगे? आज भी यह सवाल मौजूं है। विशेष रूप से मौलाना अरशद मदनी से हुई मुलाकात से तनिक उदार होने का संकेत मिलने के बाद।
अजमेर से गिरधर तेजवानी