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-भूपेन्दर पाल सिंह

लखनऊ। उत्तर प्रदेश के कांग्रेस कार्यकर्ताओं में अब राज्य नेतृत्व के खिलाफ असन्तोष दिखाई देने लगा है। बताया जाता है कि जमीनी कार्यकर्ताओं के अभाव को दूर करने के लिए उत्तर प्रदेश काँग्रेस के अध्यक्ष राजबब्बर कोई कार्ययोजना नहीं ला पाए और जब कोई कार्ययोजना बनी ही नहीँ तो उस पर अमल का सवाल ही नहीं उठता।

इसी कमी के चलते काँग्रेस के युवराज को राजगद्दी पर आसीन होने के बाद अपने निर्वाचन क्षेत्र अमेठी में बडे पैमाने पर काले झण्डों और मुर्दाबाद के नारों का सामना करना पडा।

जो सूचनाएं छन कर बाहर आ रही हैं उनके मुताबिक काँग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी अपने अध्यक्ष बनने के बाद प्रथम उत्तर प्रदेश आगमन पर अमौसी एयरपोर्ट पर बेहद कमजोर स्वागत और अपने निर्वाचन क्षेत्र में विरोधियों द्वारा किए गए प्रदर्शन और नारेबाजी को लेकर बेहद खिन्न हैं।

दूसरी और काँग्रेस अध्यक्ष के आगमन पर दिखी कमजोरियों से पार्टी के समर्पित कार्यकर्ता भी बेहद नाराज हैं। उनका कहना है कि प्रदेश अध्यक्ष ने समर्पित कार्यकर्ताओं की उपेक्षा कर ऐसे लोगोँ को पदों से नवाजना शुरू कर दिया जिनका काँग्रेस संगठन में कभी कोई योगदान नहीँ रहा, बस उन्होंने अपनी ठेकेदारी की कमाई से प्रदेश अध्यक्ष की सुख सुविधाओं पर पैसा खर्च किया और उसी पैसे के दम पर प्रदेश अध्यक्ष को अपने घेरे में कैद कर रखा है।

हाल ही में सोशल मीडिया पर समर्पित कार्यकर्ताओं ने यह सवाल भी उठाया है कि प्रदेश अध्यक्ष को पार्टी कार्यकर्ताओं से इतना डर है कि वे स्पॉन्सर्ड बॉक्सरोँ की टोली से घिर कर पार्टी कार्यालय आते हैँ। इस पोस्ट को लेकर भी काँग्रेस में चर्चाओं का बाजार गर्म है।

कार्यकर्ता अभी भी यह आस लगाए हैँ कि हाईकमान तक ये बातेँ पहुंचेंगी और हाईकमान जल्दी ही कोई निर्णय लेगा, लेकिन देरी होने पर कार्यकर्ताओं का गुस्सा और बढ सकता है ।

कार्यकर्ताओं का कहना

है कि काँग्रेस ने अमेठी का जवाब बनारस में अमित शाह के आगमन पर विरोध प्रदर्शन कर देने की कोशिश ज़रूर की लेकिन ज़मीनी नेटवर्किँग की कमजोरी के चलते जब विरोध प्रदर्शन करने वालों की गिरफ्तारियां की गयीं तो गिरफ्तार नेता और कार्यकर्ता मिलाकर भी एक बस भरने भर की सँख्या पूरी नहीं कर पाए। इस जमीनी कार्यकर्ताओं की कमजोरी के लिए भी कार्यकर्ता प्रदेश अध्यक्ष को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं।

दरअसल जब राजबब्बर को सूबे की कमान सौंपी गई थी तो ये उम्मीद की गई थी कि उनकी पुरानी जुझारू समाजवादी छवि का पार्टी को फायदा होगा और यूपी में 27 साल से बेहाल कांग्रेस के दिन बहुरेंगे, लेकिन इसे काँग्रेस की गुटबाजी की राजनीति कहें या कह लें कि राजबब्बार के अंदर का समाजवादी थक गया है और वह काँग्रेस के लिए दीमक साबित हो रहे प्रतापगढ़ के एक बड़े काँग्रेसी की झोली में ही समा कर रह गए।   

उधर ये ख़बरें भी फैलीं कि सपा महासचिव रामगोपाल यादव से अपनी नज़दीकियों के चलते राजबब्बर ने जानबूझ कर ज़मीनी स्तर पर कार्य नहीं किया, क्योंकि अगर यूपी में कांग्रेस ज़िन्दा होती तो सपा दफन हो जाती। 

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