भारत के नये राष्ट्रपति ने अपने शपथ ग्रहण समारोह के भाषण में "महात्मा गांधी और दीनदयाल उपाध्याय जी के सपनों के " समतावादी समाज के निर्माण का आह्वान किया !
गांधी जी पूरी तरह से एक सार्वजनिक व्यक्ति थे। कहते हैं उस ज़माने में, जब संचार की आज की तरह की आधुनिक तकनीक विकसित नहीं हुई थी, भारत की आबादी के लगभग एक चौथाई लोगों ने गांधी जी को सशरीर अपनी आँखों से देखा था। पूरे भारत के सुदूरतम कोने में भी शायद एक आदमी नहीं होगा, जिसने महात्मा जी का नाम न सुना हो। गांधी जी नि:संकोच कहते थे - "मेरा जीवन ही मेरा संदेश है ।"
कहना न होगा, किसी भी गिरोहबंद व्यक्ति की तरह ही दीनदयाल उपाध्याय सार्वजनिकता से कोसों दूर आरएसएस के गुह्य संसार के एक छिपे हुए व्यक्ति थे। मुट्ठी भर प्रचारकों के बीच विचरण करने वाले व्यक्ति। आरएसएस में उन्हें जन संघ का काम सौंपा गया था, लेकिन वे कभी सत्ता के पद पर में नहीं आए। इसीलिये संघ वालों ने उन्हें महान विचारक का दर्जा दे दिया! जबकि, देखने पर पता चलता है कि विचारों के नाम पर मात्र सौ-डेढ़ सौ पन्नों के पतले-पतले सात खंडों में उनका समग्र चिंतन 'विचार-दर्शन' सीमित है।
उपाध्याय जी की मृत्यु बड़े रहस्यमय ढंग से ट्रेन के बाथरूम में हुई थी जिसे संघ वाले अपनी प्रकृति के अनुसार और भी गाढ़ा बना कर दुनिया को बताया करते हैं।
दीन दयाल उपाध्याय का राजनीतिक विचार धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक भारत गणराज्य के मूल्यों विरूद्ध है
कहना न होगा, हमारे नये राष्ट्रपति की समग्र बौद्धिक पूँजी इन्हीं गुटका-विचारों की पूँजी है, इसीलिये दीनदयाल उपाध्याय को गांधी जी के समकक्ष रखने में उन्हें जरा भी झिझक नहीं हुई ! यह भी पत्थर में प्राण-प्रतिष्ठा का एक कोरा कर्मकांड ही है !
The Sex Scam of Hate Politics : BJP-RSS, have been indulging increasingly in the crime politics