Hastakshep.com-देश-Begusarai-begusarai-Corporate media-corporate-media-CPI-cpi-hatred-hatred-Kanhaiya Kumar-kanhaiya-kumar-कन्हैया कुमार-knhaiyaa-kumaar-कन्हैया का विरोध-knhaiyaa-kaa-virodh-कारपोरेट मीडिया-kaarporett-miiddiyaa-घृणा-ghrnnaa-जेएनयू-jeenyuu-जानिए-jaanie-नागपुर-naagpur-बेगूसराय-beguusraay

वे कन्हैया कुमार (Kanhaiya Kumar) से नफरत क्यों करते हैं ? यह सवाल हमें बार-बार पूछना चाहिए। जितनी बार इस सवाल पर सोचेंगे नए कारण हाथ लगेंगे। कन्हैया कुमार ने कोई अपराध नहीं किया, फिर भी उसे घृणा का पात्र (character of hatred) बनाकर वे प्रचार कर रहे हैं। घृणा में जीने वाले कभी देशभक्त नहीं हो सकते। हिन्दू भी नहीं हैं, वे तो फासिस्ट हैं। घृणा तो फ़ासिज़्म का विटामिन है।

वे कन्हैया कुमार से घृणा इसलिए करते हैं कि क्योंकि वे घृणा का प्रतीक (Symbol of hatred) बनाए बिना जी नहीं सकते।

बटुकसंघ को चंगा रखने के लिए उन्होंने कन्हैया को घृणा का प्रतीक बनाया है, इस काम में उन्होंने कारपोरेट मीडिया (corporate media) की मदद ली है। यह काम वे इसलिए कर रहे हैं क्योंकि वे घृणा से प्रेम करते हैं। वे घृणा के पात्र निर्मित करने में सिद्धहस्त हैं। वे घृणा के विचार बनाने में भी सिद्धहस्त हैं।

मसलन् उनको नेहरू से नफरत है, समाजवाद से नफरत है, धर्मनिरपेक्षता से नफ़रत है, मुसलमानों से नफ़रत है। पाक से नफरत है। इसी कड़ी में वे कन्हैया कुमार से भी नफरत करने लगे हैं। असल में बटुकसंघ की विचारधारा का आधार है घृणा की धारावाहिकता, उनके लिए घृणा ही सर्वस्व है।

कन्हैया कुमार बहुत खराब घृणा का पात्र है वह ज्यादा लोगों को अपने खिलाफ प्रतिवाद के लिए उकसा नहीं पा रहा है। मैं मुजफ्फरपुर में था वहां भी 15-20 लोग विरोध कर रहे थे। कुछ समय पहले नागपुर में भी इतने ही लोग उसका विरोध कर रहे थे। कन्हैया कुमार का विरोध करने वाले नागपुर में यदि 15-20लोग ही जुगाड़ कर पाए हैं तो यह तो बहुत खराब आंकड़ा है, हिन्दुत्व के पराक्रम को धिक्कार है ! संघ की

विशाल सदस्यता को देखते हुए यह संख्या अपमानजनक है, राष्ट्र का अपमान है !!

दूसरी बात यह कि जेएनयू में कन्हैया का विरोध (opposing Kanhaiya in JNU) करने के लिए बटुकसंघ इतने लोग भी जुगाड़ नहीं कर पाता है। इसे बटुकसंघ की ताकत कहें या कन्हैया कुमार और जेएनयू की साख का प्रताप कहें !!

Jagadishwar Chaturvedi

कुछ साल पहले वे जानते थे जूता कन्हैया कुमार पर नहीं आम्बेडकर पर फेंक रहे हैं। आम्बेडकर के कार्यक्रम में फेंका जाने वाला जूता अंततः आम्बेडकर पर ही गिरा है। एक ओर देश में एक जगह पीएम ने आम्बेडकर को माला पहनाई। वहीं दूसरी ओर बटुकसंघ के लोगों ने आम्बेडकर के नागपुर कार्यक्रम में बोलने आए कन्हैया कुमार पर जूता फेंका।

सच में जाहिल हैं ये लोग, इतना तक नहीं जानते कि आम्बेडकर की याद में होने वाले कार्यक्रम में जूता फेंकना वस्तुतः आम्बेडकर पर ही जूते फेंकना है। ये कैसे हिन्दुत्ववादी हैं जो आम्बेडकर के कार्यक्रम में जाकर जूते फेंक रहे हैं। यानी बटुकसंघ का साफ संदेश है कि आम्बेडकर की उनके यहां कहां पर जगह है। निंदनीय है उनकी हरकतें।

इधर लोकसभा चुनाव में कन्हैया कुमार बेगूसराय (Begusarai) से सीपीआई (CPI) की ओर से चुनाव लड रहे हैं, सब जानते हैं सीपीआई का वैचारिक चरित्र क्या है ? कम्युनिस्टों में व्यक्ति नहीं नीति और पार्टी महत्वपूर्ण है, इसके बावजूद तरह तरह के जातिगत कारकों को प्रचार अभियान में इस तरह उछाला जा रहा है गोया भारत में कम्युनिस्ट जातिवाद के आधार पर चुनाव लड़ते रहे हैं। जबकि वास्तविकता इससे एकदम भिन्न है।

नामांकन की घोषणा के बाद जितना जहरीला प्रचार आरएसएस और उनके हितचिंतकों ने उसके खिलाफ किया है उससे एक बात तय है कि कन्हैया कुमार वजनदार उम्मीदवार है।

जगदीश्वर चतुर्वेदी

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