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असद हयात

संविधान में संशोधन संसद कर सकती है। पाबंदी ये है कि ऐसा संशोधन संविधान के आवश्यक तत्व (मूलभूत सिद्धान्त और मूलाधिकारों ) के विरुद्ध नहीं होना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने संसद और विधान सभाओं से पारित कानूनों और संविधान संशोधनों को भी अवैध ठहरा दिया है जो संविधान के मूलभूत ढांचे, तत्वों (मूलाधिकारों) के विरुद्ध हो। (देखें केशवानंद भारती केस)

संसद आर्थिक आधार पर पिछड़ों की पहचान करा कर उनको आरक्षण दे सकती है ?

आरक्षण सामाजिक न्याय का औज़ार है। मंडल कमीशन की रिपोर्ट के आधार पर ओबीसी जातियों को आरक्षण दिया जाना सामाजिक न्याय का ही काम था। संविधान का आर्टिकल 16 संसद को अधिकार देता है कि संसद सरकारी नौकरियों के अवसरों और सरकारी संसाधनों के प्रयोग के लिए उन वंचित वर्गों को अधिकार यानी आरक्षण दे सकती है। इसलिए ऐसा कानून मूलाधिकारों और संविधान के मूल सिद्धांतों और उसके स्वरूप के विरुद्ध नहीं होगा।

इसी तरह छुआछूत और सामाजिक भेदभाव के आधार पर एससी जातियों को भी आरक्षण दिया गया। इसलिये कोई सवर्ण जाति इसका विरोध नहीं कर सकी।

ग़रीबी असल वजह किसी भी व्यक्ति के स्वास्थ/ शिक्षा में पिछड़ेपन की है। ओबीसी और एससी के पिछड़ेपन की वजह उनका सामाजिक रूप से पिछड़ा होना भी था। गरीबी के कारण ही सवर्णों में भी बहुत लोगों में शैक्षिक और स्वास्थ्य का पिछड़ापन है और उनको समान अवसर नहीं मिले हैं। इसलिए समानता के सिद्धांत के आधार पर उनकी पहचान होनी चाहिये। मगर 5 एकड़ जमीन होने और 8 लाख सालाना आय होने का पैमाना उचित नहीं है और असमानता है।

आइए, पहले नीचे संविधान आर्टिकल 16 (4) पढ़ते हैं जिस में साफ लिखा है कि पिछड़ा होने के आधार पर किसी वर्ग की पहचान करके उसको आरक्षण संसद दे सकती है।

नोट - पिछड़ा होने का आर्टिकल 16 (4) में मतलब सिर्फ ये नहीं कि वो पिछड़ा

केवल घोषित किए गए ओबीसी या एससी/ST वर्ग से ही होगा। सवर्ण जातियों में भी जो गरीबी अथवा किसी भी कारण से पिछड़ गए हैं और अन्य सवर्गीय सवर्णों के साथ गरीबी के कारण प्रतिस्पर्धा नहीं कर पा रहे हैं, उनकी पहचान भी आर्टिकल 16 (4) के तहत संसद कर सकती है। इस पर संविधान ने कोई रोक नहीं लगाई है।

सामाजिक न्याय की चाशनी : सवर्णों को 10 फीसदी आरक्षण और क्यों अवैध है संविधान संशोधन

124 वां संविधान संशोधन और उनकी संवैधानिक वैधता

सुप्रीम कोर्ट का आदेश कि आरक्षण 50%से अधिक नहीं हो सकता, इस संविधान संशोधन पर लागू नहीं होता

मंडल कमीशन ने जिन पिछड़ी जातियों की पहचान की वो सभी ओबीसी आरक्षण का लाभ ले रहीं हैं। सुप्रीम कोर्ट ने इंदिरा साहनी केस में कहा है कि मंडल कमीशन रिपोर्ट के तहत ओबीसी/ ST/ एससी को दिया जा रहा आरक्षण 50% से अधिक नहीं होना चाहिए। इसका मतलब ये है कि ओबीसी/एससी/ST जातियों को दिया गया आरक्षण 50%से अधिक नहीं होगा क्यों कि शेष 50% सामान्य श्रेणी अनाक्षरित रहेगी और सामान्य वर्ग के लोगों का अधिकार प्रभावित नहीं होना चाहिये। महत्वपूर्ण तथ्य है कि मौजूद संविधान संशोधन से ओबीसी/एससी/ST के आरक्षण में कोई इज़ाफ़ा नहीं हो रहा है इसलिये ये 50% से अधिक आरक्षण न होने की शर्त से पाबंद नहीं है।

मौजूद संविधान संशोधन से ओबीसी/एससी/ST के अधिकार प्रभावित नहीं होते। ऐतराज़ केवल 40 %सामान्य वर्ग के वो लोग कर सकते हैं जिनकी सालाना आय 8 लाख से अधिक है या जो 5 एकड़ से अधिक ज़मीन रखते हैं।

मेरी राय में अगर संसद ऐसे गरीबों का नया वर्ग बनाती है जिनसे ओबीसी/एससी/ST के आरक्षण पर कोई विपरीत प्रभाव न हो तो यह संविधान आर्टिकल 16 (4) और सुप्रीम कोर्ट के इंदिरा साहनी केस के विरुद्ध नहीं है। संसद को सवर्णों में पिछड़े वर्ग के हित में, उनको सामाजिक न्याय मुहैया कराने के लिये कानून बनाने का आर्टिकल 16 (4) के अंतर्गत अधिकार है।

मगर ये युक्तियुक्त वर्गीकरण यानी reasonable classification नहीं है और इसलिये अवैध है जिसकी आगे चर्चा कर रहा हूँ।

Article 16 in The Constitution Of India

16. Equality of opportunity in matters of public employment

(1) There shall be equality of opportunity for all citizens in matters relating to employment or appointment to any office under the State

(2) No citizen shall, on grounds only of religion, race, caste, sex, deएससीent, place of birth, residence or any of them, be ineligible for, or diएससीriminated against in respect or, any employment or office under the State

(3) Nothing in this article shall prevent Parliament from making any law preएससीribing, in regard to a class or classes of employment or appointment to an office under the Government of, or any local or other authority within, a State or Union territory, any requirement as to residence within that State or Union territory prior to such employment or appointment

(4) Nothing in this article shall prevent the State from making any provision for the reservation of appointments or posts in favor of any backward class of citizens which, in the opinion of the State, is not adequately represented in the services under the State

(5) Nothing in this article shall affect the operation of any law which provides that the incumbent of an office in connection with the affairs of any religious or denominational institution or any member of the governing body thereof shall be a person professing a particular religion or belonging to a particular denomination.

संविधान संशोधन क्यों अवैध है

1. ग़रीबी ओबीसी और एससी /ST जातियों में भी बहुत है। मगर उनको मिले आरक्षण का लाभ उनका धनाढ्य वर्ग ही लेता आ रहा है। कोई क्रीमी लेयर नहीं है। जिस तरह 8 लाख तक आय और 5 एकड़ भूमि की सीमा रेखा सवर्ण वर्ग के आरक्षण में रखी गई है वैसी ही सीमा रेखा ओबीसी, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जन जातियों के साथ भी रखी जानी चाहिए थी तभी उनका महादलित और अतिपिछड़ा वर्ग लाभान्वित होता जो वास्तव में अभी तक महादलित और अति पिछड़ा ही चला आ रहा है, जो दिन प्रतिदिन और अधिक गरीब हो रहा है।

इस तरह या तो 5 एकड़ जमीन और आठ लाख आय होने की सीमा रेखा सवर्णों के आरक्षण पाने की नहीं होनी चाहिए थी और अगर उनको सीमा रेखा दी जा रही है तो ऐसी ही सीमा रेखा ओबीसी और अनुसूचित जातियों और जन जातियों के लिए भी होनी चाहिए थी। ये एक तरह से क्रीमी लेयर है।

चूंकि ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है इसलिए आर्टिकल 16 के तहत ये सीमा रेखा संसद को बनानी चाहिए।

क्या कोई ओबीसी या अनुसूचित व्यक्ति ये सीमा रेखा पसंद करेगा ?

नहीं, और यही सामाजिक अन्याय है। जब तक समान रूप से ओबीसी और अनसूचित जातियों का क्रीमीलेयर पैमाना निर्धारित न हो जाता तब तक संसद को सवर्णों के "गरीबों" के लिए ये कानून नहीं बनाना चाहिए था।

सभी सवर्ण युवक बेरोजगार हैं तो क्या सभी आरक्षण मांगेंगे

कोई भी स्वर्ण व्यक्ति जो नौकरी के लिए आएगा वो यही कहेगा कि उसकी सालाना आय तो निल है या इनकम टैक्स रेखा से कम है और उसके पास 5 एकड़ ज़मीन भी नहीं है और सालाना आय 8 लाख से कम है (भले ही उसके माता पिता के पास हो) तो हर आदमी 10 प्रतिशत के आरक्षण लेने के लिये अपनी पात्रता दर्ज कराएगा। क्या उसका परिवारी अन्य व्यक्ति की सालाना आय के आधार पर उस को 10 प्रतिशत आरक्षण के लाभ पाने से वंचित करना उचित है ? क्या ये उस के मूल अधिकार और समानता के मूल अधिकार के विरुद्ध नहीं है।

(लेखक वरिष्ठ अधिवक्ता हैं।)

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