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Shiv Kumar Batalvi is an unforgettable poet

-           वीणा भाटिया

 शिव कुमार बटालवी को पंजाबी कविता का ध्रुवतारा कहा गया है, एक ऐसा गीतकार जिसके स्वर वातावरण में सदा गूंजते रहेंगे। शिव कुमार बटालवी एक अविस्मरणीय कवि हैं। आज भी पंजाब एवं पंजाब के बाहर के लोग इनकी कविताओं, गीतों और ग़ज़लों के दीवाने हैं। बहुत ही कम उम्र में जैसी लोकप्रियता शिव कुमार बटालवी को मिली, कम ही कवियों को मिल पाती है। इसके पीछे उनकी कविता की वह खासियत है, जिसके बारे में अमृता प्रीतम ने लिखा है कि उनकी कला में पंजाब की धरती के पेड़-पौधे, वहां की रस्में-रवायतें, परंपराएं, संस्कार मुखरित हो उठते हैं, परंतु दर्द जैसे सारी दुनिया का उसमें समा गया है। यही दर्द शिव कुमार बटालवी की कविता की पहचान है। वह पंजाब की मिट्टी, वहां की लोक-परंपरा से जुड़े कवि हैं। उनकी कविताओं और गीतों में पंजाब की आबोहवा इस क़दर घुल-मिल गई है कि उससे अलग कर के कवि को देखा नहीं जा सकता। जिसे पंजाबियत कहा जाता है, वह बटालवी के गीतों की पहचान है।

Shiv Kumar batalvi poetry in hindi

आधुनिक कवि होते हुए भी बटालवी ने कविता में रोमांटिसिज्म को जिस मुकाम पर पहुंचाया, दूसरा कोई कवि ऐसा नहीं कर पाया। यह बटालवी की मौलिकता थी। शिव कुमार बटालवी ने यद्यपि उम्र कम पाई, पर अपनी बेमिसाल रचनाओं के कारण साहित्य के इतिहास में अमर हो गए। उनकी ‘पीडा दा परागा’,

‘लाजवंती’, ‘आटे दीयां चिड़ियां’, ‘मैंनू विदा करो’, ‘बिरहा तूं सुल्तान’, ‘दरदमदां दीयां’, ‘आही’, ’लूणा’(खंडकाव्य) और ‘मैं ते मैं’ जैसी किताबें साहित्य की अमूल्य निधि हैं।

शिव कुमार बटालवी एक ऐसे कवि थे जिन्होंने  दर्द को पूरी तरह जिया था। उन्हें दर्द से ही मानो मुहब्बत हो गई थी। अपने एक गीत में वे लिखते हैं, “मैं दर्द नूं काबा कैह बैठा, रब ना (नाम) रख बैठा पीडां दा  की पूछदे ओ हाल फकीरां दा।“ लेकिन इससे अलग भी उनके गीतों में जन-जीवन से जुड़ी चीजें आई हैं, पर उनका मूल स्वर प्रेम और विरह है। उस समय जब अन्य कवि यथार्थवादी कविताओं की रचना कर रहे थे, शिव कुमार बटालवी ने रोमांटिसिज्म को चरम पर पहुंचा दिया। यही कारण है कि कई बार इनकी तुलना अंग्रेजी के विश्वप्रसिद्ध कवि जॉन कीट्स से की जाती है, दुर्भाग्यवश जिनकी भी अल्प आयु में ही मृत्यु हो गई थी, जैसे शिव कुमार बटालवी की।

1973 में जब शिव कुमार की मौत हुई, उनकी उम्र सिर्फ 36 साल थी। उनका जन्म 23 जुलाई 1936 को गांव बड़ा पिंड लोहटिया, शकरगढ़ तहसील (अब पाकिस्तान के पंजाब प्रांत) में हुआ था। देश के विभाजन के बाद उनका परिवार गुरदासपुर जिले के बटाला चला आया। 16 साल की उम्र में उन्होंने लिखना शुरू किया था, पर इतनी कम उम्र में ही उनकी कविता पंजाब से होते हुए पूरे देश में विख्यात हो गई। कहा जाता है कि कवि-सम्मेलनों में उन्हें सुनने के लिए अंत तक श्रोता जमे रहते थे। शिव कुमार बटालवी ने स्वर भी अद्भुत पाया था। जब वे गीत गाने लगते थे, तो श्रोता सुध-बुध खो देते थे। कवि सम्मेलनों की ऐसी परंपरा रही है कि वरिष्ठ कवि सबसे अंत में कविता सुनाते हैं। पर शिव कुमार बटालवी की लोकप्रियता को देखते हुए उन्हें मंच पर सबसे अंत में पेश किया जाता था।

स्वयं अमृता प्रीतम कहती थीं कि बटालवी सबसे अंत में कविता-पाठ करेगा।

इस तरह, उनके दोस्त-यार ही नहीं, वरिष्ठ पीढ़ी भी उनका बहुत सम्मान करती थी। ऐसी बात नहीं कि शिव कुमार बटालवी की कविता में प्रेम और विरह का कोई सतही रूप सामने आता है। उसमें बहुत ही गहराई है और पंजाब की सदियों की जो लोक-परंपरा है, वह उनमें प्रवाहित होती है। उनका साहित्य श्रेष्ठ है। यही कारण है कि 1965 में महज 28 वर्ष की उम्र में ‘लूणा’ खंडकाव्य के लिए उन्हें साहित्य अकादमी का पुरस्कार मिला। सबसे कम उम्र में यह पुरस्कार पाने वाले शिव कुमार बटालवी संभवत: पहले कवि हैं।

Separation is the original voice of Shiv Kumar Batalvi's poem.

शिव कुमार बटालवी जिस दौर में लिख रहे थे, वह दौर साहित्य में प्रगतिशीलता का था। छायावाद और रोमांटिसिज्म का दौर खत्म हो चुका था। पर शिव किसी वाद के दायरे में बंधे नहीं थे। कविता सहज रूप में उनके हृदय से प्रवाहित होती थी।  विरह शिव कुमार बटालवी की कविता का मूल स्वर है, क्योंकि इसे अपने जीवन में उन्होंने भोगा था। वे कविता में क्रांति, व्यवस्था-परिवर्तन आदि की बातें नहीं करते थे, बल्कि मनुष्य के स्वभाव, प्रेम, विरह और मनुष्यता की बात करते थे। वे लोककथाओं से कविता के विषय को उठाते थे, तो लोक को कठघरे में खड़ा भी करते थे। लेकिन उस दौर में लगभग सारी भारतीय भाषाओं में कविता और साहित्य पर नक्सलवादी आंदोलन का प्रभाव पड़ना शुरू हो गया था। शिव कुमार बटालवी की कविता इस प्रभाव से अछूती रही, इसीलिए पंजाबी कविता के प्रगतिशील तबक़े ने उन्हें ख़ारिज करना शुरू कर दिया।

शिव कुमार बटालवी के अध्येता दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रोफेसर डॉक्टर बलजिंदर नसराली उस वक्त को याद करते हुए कहते हैं,

“जब पंजाब में नक्सलवादी लहर चलने लगी तो रोमांटिक कविता को आलोचकों ने उपेक्षित कर दिया और उन्हें कमतर आंकने लगे। इसे देखते हुए शिव कुमार बटालवी बहुत निराश रहने लगे और इस निराशा में उन्होंने पहले से ज्यादा शराब पीनी शुरू कर दी। पर उनका लिखना बंद नहीं हुआ। लेखन उनके खून में था।“ पंजाबी साहित्य में बटालवी की जगह कोई नहीं ले सकता। वे पंजाब की लोक परंपरा के कवि थे और कविता के क्षेत्र में किसी जमे-जमाए सिद्धांत को महत्त्व नहीं देते थे। वे आम जनता के लिए लिखते थे।

बटालवी के बारे में उनकी सभी कविताओं का संकलन करने वाले मनमोहन सिंह, आईएएस ने लिखा है-

“जब भी परमात्मा किसी पैगंबर को संसार में भेजता है तो वह या तो फकीर का रूप लेता है या कवि का। बटालवी ऐसे ही कवि थे। उनका स्थान और कोई दूसरा नहीं ले सकता।”

‘बटालवी को बिरह का सुल्तान’ कहा गया। बटालवी लोककवि हैं। लोककवि पढ़े कम जाते हैं, सुने ज्यादा जाते हैं। पंजाब में जैसे वारिस शाह की ‘हीर’ गाई और सुनी जाती है, वैसे ही बटालवी। इनके गीतों को सभी पंजाबी गायकों ने गाया है।

शिव कुमार बटालवी हिन्दी कविता

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