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शुरूआती स्तर पर एमआरआई से दृष्टि और जान बचाई जा सकती है

मेरठ, 23 सितंबर, 2018: मेरठ के सुन्दर को जब चिकित्सक के पास लाया गया था तब उसे गंभीर सिरदर्द और उल्टी के साथ ही उसकी नज़र लगातार कमजोर होने की शिकायत थी। मरीज की हालत को देखते हुए डॉ. राहुल गुप्ता, एडिशनल डायरेक्टर, डिपार्टमेंट ऑफ न्यूरोसर्जरी, फोर्टिस हॉस्पिटल, नोएडा ने उसे तत्काल एमआरआई जांच कराने की सलाह दी।

चिकित्सक को जिसे लेकर संदेह था, एमआरआई रिपोर्ट में उसकी पुष्टि हुई। सुन्दर ब्रेन ट्यूमर से पीड़ित था। मरीज की खुशकिस्मती थी कि ब्रेन ट्यूमर का पता बीमारी के शुरूआती चरण में चल गया और उसका उपचार मिनिमल इन्वैसिव सर्जिकल प्रक्रिया जिसे एंडोस्कोपिक ट्रांस नेजल सर्जरी के नाम से जाना जाता है, से किया जा सकता था। मेरठ में इस तरह की सर्जरी करने की सुविधा उपलब्ध नहीं है और मरीज अक्सर अपने पास के शहरों ममें कुषल और विषेशज्ञ न्यूरोसर्जन्स के पास जाना चाहते हैं।

डॉ. गुप्ता ने ऐसे दो मरीजों का उपचार किया है और दोनों ही मामले मेरठ के हैं। दूसरी मरीज कलावती नाम की महिला है।

क्या है एंडोस्कोपिक ट्रांस नेजल सर्जिकल

एंडोस्कोपिक ट्रांस नेजल सर्जिकल प्रक्रिया निशान रहित और बहुत ही सुरक्षित सर्जिकल प्रक्रिया है। इसमें न्यूरोसर्जरी में मिनिमल इन्वैसिव तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है। इसके लिए उच्च स्तरीय विषेशज्ञता तथा सटीकता की जरूरत होती है और इसे सामान्यतया अनुभवी और कुशल न्यूरोसर्जन द्वारा किया जाता है। न्यूरोसर्जन एक एंडोस्कोप का इस्तेमाल करते हैं, जिसे स्कल बेस के सामने की ओर के ब्रेन डिफैक्ट्स या ट्यूमर को ठीक करने या उसे हटाने के लिए नाक के माध्यम से प्रवेष कराया जाता है। इसमें नाक की कैविटी के पीछे छोटा सा चीरा लगाकर किया जाता है जिससे नासिका के टिश्यूज़ को थोड़ा नुकसान होता है। पिट्यूटरी का पता चलने के बाद न्यूरोसर्जन ट्यूमर को हटा देते हैं। सर्जरी

का यह विकल्प स्थापित रूप से सुरक्षित, प्रभावी और उपचार के योग्य है।

ब्रेन ट्यूमर के मरीजों में शुरूआती लक्षण

डॉ. राहुल गुप्ता, एडिशनल डायरेक्टर, डिपार्टमेंट ऑफ न्यूरो-सर्जरी, फोर्टिस हॉस्पिटल, नोएडा ने कहा, ‘‘ब्रेन ट्यूमर के मामले में सबसे महत्वपूर्ण चीज एमआरआई जांच कराना होता है, जिससे चिकित्सकीय समस्या की पुष्टि होती है। ब्रेन ट्यूमर के मरीजों में शुरूआती लक्षणों में गंभीर सिरदर्द के साथ उल्टियां, नज़र कमजोर होना, बिना कोई कारण के नाक बहना और जिगैन्टिज़्म शामिल हैं। महिलाओें में अनियमित मासिक धर्म या बिना कोई कारण के पीरियड्स का लंबा रहना और स्तनों से अप्रत्याशित रूप से सफेद डिस्चार्ज होने को भी इस बीमारी के लक्षणों के तौर पर देखा जा सकता है। सामान्यतया, मरीज अपनी सामान्य बीमारी, शरीर के किसी हिस्से के ज्यादा बढ़ने या नज़र कमजोर होने के उपचार के लिए फिजिशियन, एंडोक्राइनोलॉजिस्ट्स या ऑप्थेलमोलॉजिस्ट से संपर्क करते हैं। महिलाएं हार्मोनल उपचार के लिए अक्सर गाइनोकोलॉजिस्ट के पास जाती हैं क्योंकि वह समझती हैं कि मासिक धर्म की समस्या हार्मोन में असंतुलन की वजह से हो सकती है। जब समस्या बनी रहती है और दृश्टि (विज़न) काफी खराब होने लगती है, तो कई बार काफी देर हो जाती है क्योंकि तब तक न ही ट्यूमर का पता चल पाता है, बल्कि उसका आकार भी काफी बढ़ जाता है। हालांकि ट्यूमर को तब भी सफलतापूर्वक हटाया जा सकता है, लेकिन अंतिम चरण में उपचार के लिए आने वाले मरीजों में से 50 प्रतिशत को अक्सर अपनी दृष्टि गंवानी पड़ती है।’’

एक दशक में ब्रेन ट्यूमर्स के मामलों में काफी वृद्धि

भारत में प्राथमिक ब्रेन ट्यूमर के मामले पुरुषों में प्रति 1,00,000 पर 3.4 और महिलाओं में प्रति 1,00,000 की आबादी पर 1.2 हैं। पिछले एक दशक में ब्रेन ट्यूमर्स के मामलों में काफी वृद्धि देखी गई है। हालांकि इसकी मुख्य वजह डायग्नॉस्टिक इमेजिंग की व्यापक उपलब्धता के कारण जांच दर में बढ़ोतरी भी हो सकती है। वैश्विक आबादी में वृद्धि और उम्र बढ़ने की वजह से 2030 तक यह आंकड़ा बढ़ सकता है और 17 लाख नए मामले आ सकते हैं।

डॉ. राहुल गुप्ता ने कहा,

‘‘हम हर महीने करीब 10 से 12 ब्रेन ट्यूमर के मरीजों का उपचार करते हैं। इनमें से प्रतिमाह हमारे पास 2 से 3 मरीज ऐसे आते हैं जिनका ट्यूमर पीयूश ग्रंथि (पिट्यूटरी ग्लैंड) में होता है। एंडोस्कोपिक ट्रांस नेजल सर्जरी की-होल एप्रोच का उपयोग कर किया जाता है। दिखाई देने वाला चीरा नहीं लगाया जाता है और सर्जरी के दौरान सुरक्षित तरीका अपनाया जाता है। आंखों के पीछे और मस्तिष्क (ब्रेन) के सामने नीचे की ओर पीयूश ग्रंथि में स्थित ट्यूमर तक पहुंचने के लिए आंखों के पीछे छोटी पतली हड्डी में छिद्र किया जाता है। मरीज को अधिकतम पांच दिन तक अस्पताल में रहने की जरूरत होती है लेकिन उपचार के बाद घाव को कोई निशान नहीं रहता है।’’ 

ब्रेन ट्यूमर का कारण

डॉ. गुप्ता ने बताया कि मरीजों में ब्रेन ट्यूमर होने की वजह का निर्धारण नहीं किया जा सकता है। किसी को भी ब्रेन ट्यूमर हो सकता है। सबसे महत्वपूर्ण चीज इस बीमारी और इससे जुड़े लक्षणों के बारे में जागरूकता लाना है। लक्षणों के लंबे समय तक बने रहने और उसका उपचार नहीं कराने से ट्यूमर काफी बढ़ जाता है। ट्यूमर का आकार बढ़ने से ऑप्टिकल नसों पर दबाव बढ़ता है जिसके परिणामस्वरूप आंखों की रोशनी पूरी तरह से खत्म हो जाती है। हालांकि कुछ मामलों में जहां ज्यादा नुकसान नहीं हुआ हो, रोशनी वापस लाई जा सकती हैं।

किसी भी मेडिकल परिस्थितियों या लक्षणों, जिन पर तत्काल ध्यान देने की जरूरत होती है, के बारे में जागरूकता की कमी के कारण अक्सर अपरिवर्तनीय क्षति होती है। इसलिए समय की जरूरत है कि समस्या होने पर तत्काल एमआरआई कराएं और सही विषेशज्ञ के पास पहुंचना तथा समय पर उपचार कराना सुनिश्चित करें।

कुछ शोध से पता चलता है कि मस्तिष्क विकिरण से पूर्व एक्सपोजर प्राथमिक ब्रेन ट्यूमर के विकास का सबसे ठोस जोखिम कारक है। कुछ मामलों में निश्चित तरह के दुर्लभ जेनेटिक पारिस्थितियों से जुड़े अनुवांशिक कारक ब्रेन ट्यूमर के विकास के जोखिम को बढ़ाते हैं। लेकिन अधिकांश मामलों में इसके कारण ज्ञात नहीं होते हैं।

कौन हैं डॉ. राहुल गुप्ता

एक विज्ञप्ति में डॉ. राहुल गुप्ता फोर्टिस हॉस्पिटल, नोएडा के न्यूरोसर्जरी विभाग में एडिशनल डायरेक्टर हैं और इस क्षेत्र में उनके पास 15 साल से ज्यादा का अनुभव है। वे गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज, रोहतक और पीजीआईएमईआर, चंडीगढ़ से प्रशिक्षित हैं और पीजीआईएमईआर, चंडीगढ़ तथा जीबी पंत हॉस्पिटल, नई दिल्ली में अपनी सेवाएं भी दे चुके हैं। वह राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस में कई पेपर्स भी प्रस्तुत कर चुके हैं और प्रतिष्ठित राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय साइंटिफिक पत्रिकाओं (जर्नल्स) में उनके करीब 40 आर्टिकल्स भी प्रकाशित हो चुके हैं। उन्हें 2011 में नागोया यूनिवर्सिटी ऑफ मेडिकल साइंस, जापान में प्रतिष्ठित सुगिता स्कॉलशिप से सम्मानित किया गया था। डॉ. राहुल ने घातक ग्लिओमा सर्जरी में फ्लोरोसेंस (5-एएलए) के उपयोग ग्राज़, ऑस्ट्रिया में और फंक्षनल न्यूरोसर्जरी के लिए एम्स्टर्डम, हॉलैंड में प्रशिक्षण प्राप्त किया है। वह कई न्यूरोलॉजिकल सोसाइटीज़ के सदस्य और सक्रिय प्रतिभागी भी हैं।

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