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नई दिल्ली, 16 जनवरी। फोर्टिस एस्कॉर्ट्स अस्पताल Fortis Escorts Hospital मरीज़ों को चिकित्सा सेवाएं उपलब्ध कराने का तीन दशक लंबा अनुभव रखने वाला ओखला का यह अस्पताल अब लखनऊ में अजंता अस्पताल Ajanta Hospital in Lucknow के नाम से ‘सुपर स्पेशियलिटी किडनी सेवाSuper Specialty Kidney Service शुरू कर रहा है। यह इस अग्रणी हेल्थकेयर अस्पताल द्वारा क्वालिटी हेल्थकेयर उपलब्ध कराने के मकसद से किया गया एक और सार्थक प्रयास है।

ओपीडी सेवा रीनल ट्रांसप्लांट एवं नेफ्रोलॉजिकल रोगों Renal Transplant and Nephrological Disease के लिए हर तीसरे बुधवार को सवेरे 11 बजे से दोपहर 2 बजे तक चालू रहेगी। इसमें कोई दो राय नहीं कि इस सेवा के चलते लखनऊ और आसपास के इलाकों के मरीज़ों एवं यहां के निवासियों को फोर्टिस एस्कॉर्ट्स अस्पताल, नई दिल्ली के विषेशज्ञों का लाभ लगातार मिलता रहेगा।

डॉ. (प्रोफेसर) संजीव गुलाटी, डायरेक्टर-नेफ्रोलॉजी ऐंड रीनल ट्रांसप्लांट, फोर्टिस एस्कॉर्ट्स किडनी ऐंड यूरोलॉजी इंस्टीट्यूट, नई दिल्ली एवं पूर्व एडिशनल प्रोफेसर, डिपार्टमेंट ऑफ नेफ्रोलॉजी, एसजीपीजीआईएमएस, ने कहा, ‘इस ओपीडी सेवा के माध्यम से हम मरीज़ों तथा उनके परिवारवालों को किडनी की समस्याओं से कैसे बचें, उस बारे में बताएंगे। 

सावधानी बरत कर किडनी ट्रांसप्लांट से भी बच सकते हैं मरीज।

Patients can also avoid kidney transplants by taking caution.

ऐसा करने से न केवल डायलसिस का खर्च बचेगा, बल्कि सर्जरी के बाद जीवन की गुणवत्ता भी बेहतर हो जाएगी।’

ज्ञात हो कि डॉ. गुलाटी गुर्दा रोगों के क्षेत्र में अग्रणी विषेशज्ञ हैं और उन्हें इस राज्य में 25 साल से अधिक समय से लोगों की सेवाएं करने का अनुभव हासिल है।

यहां यह बता देना जरूरी है कि रीनल साइंसेज के क्षेत्र में सेंटर ऑफ एक्सीलेंस के अंतर्गत यूरोलॉजी तथा नेफ्रोलॉजी शामिल है और यह क्षेत्र में रीनलकेयर के लिए प्रमुख रेफरल सेंटर बन चुका है। संक्रमण के जोखिम को कम से कम रखने के लिए डायलिसिस यूनिट में क्वालिटी सेवाएं सुनिश्चित की जाती

हैं, जो एक नियंत्रित वातावरण में डायलिसिस सेवाएं प्रदान करती हैं।

Due to the increase in the number of patients with diabetes, the number of patients with Chronic Kidney Disease (CKD) also increases.

डॉ. गुलाटी ने आगे कहा,

‘हर साल, 2 लाख से अधिक मरीज़ों को किडनी ट्रांसप्लांट कराने का इंतज़ार रहता है, जबकि डोनर सिर्फ 15000 ही होते हैं। यानी हर साल सिर्फ 0.02 प्रतिशत रीनल ट्रांसप्लांट की जरूरत ही पूरी होती है, जो कि इस बारे में जागरूकता के अभाव और लाइव डोनर ट्रांसप्लांट के लिए परिजनों के स्तर पर संकोच का परिणाम है। भारत में मधुमेह के रोगियों की संख्या में लगातार वृद्धि के चलते क्रोनिक किडनी डिज़ीज़ (सीकेडी) मरीज़ों की संख्या भी बढ़ती है। जागरूकता के अभाव में मरीज़ एंड स्टेज डायलिसिस में ही मदद के लिए आते हैं, जबकि ऐसे में किडनी ट्रांसप्लांट ही एकमात्र विकल्प बचता है। हालांकि टेक्नोलॉजी में लगातार प्रगति के चलते रीनल ट्रांसप्लांट के तौर-तरीकों में काफी बदलाव आया है, जो कि सर्जरी की वजह से पैदा होनेवाली जटिलताओं के लिए मिनीमल इन्वेंसिव तरीकों को अपनाए जाने की वजह से संभव हो सका है।’

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