नई दिल्ली, 30 सितंबर 2019. एक कश्मीरी पंडित और सर्वोच्च न्यायालय के अवकाश प्राप्त न्यायाधीश व प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया के पूर्व चेयरमैन जस्टिस मार्कंडेय काटजू ने चिताया है कि कश्मीर जल्द ही भारत का वियतनाम युद्ध बन जाएगा, क्योंकि केंद्र सरकार की नीतियों ने बड़े पैमाने पर छापामार युद्ध के लिए बीज बोया है।
जस्टिस काटजू ने द वीक में अंग्रेजी में लिखे अपने लेख - "Kashmir will become India’s Vietnam war" की शुरूआत में लिखा है कि “सच बोलने के लिए एक समय आता है, और मुझे लगता है कि वह समय आ गया है और यह वह है जो मुझे बिल्ली के गले में घंटा बाँधना होगा। तो यहाँ यह है : कश्मीर जल्द ही भारत के लिए वियतनाम बन जाएगा जो फ्रांसीसी और अमेरिकियों के लिए था, अफगानिस्तान रूसियों के लिए, और नेपोलियन के लिए स्पेन।“
उन्होंने आगे लिखा,
“जो लोग आज धारा 370 को खत्म करने की अपनी महान जीत ’का जश्न मना रहे हैं, वे जल्द ही एक दुःस्वप्न से जागेंगे, जब कश्मीर से बड़ी संख्या में ताबूत वापस आने लगेंगे, जैसे अमेरिकियों ने वियतनाम से वापसी देखी थी।“
श्री काटजू ने लिखा कि इंटरनेट और मोबाइल आज एक आवश्यकता है, न कि विलासिता। लोगों को एक दिन के लिए भी इससे वंचित करना किसी को भी दुखी कर सकता है, इसलिए लगभग दो महीने से बिना इंटरनेट और मोबाइल के जी रहे लोगों का दुख समझा जा सकता है।
उन्होंने कहा कि
“आज प्रतिबंध हटा दें, और लोकप्रिय विरोध पूरी घाटी को घेर लेगा। इन प्रतिबंधों को जारी रखें तो बर्तन तब तक उबलेगा, जब तक यह विस्फोट न हो जाए। जैसा कि हिंदी में कहा जाता है, स्थिति ऐसी है कि 'ना निगलते बन रहा, ना उगलते बन रहा' - कोई इसे न तो निगल सकता है, न ही उलटी कर सकता है। “
केंद्र सरकार की नीतियों
“सच्चाई यह है कि दशकों से कश्मीर को लेकर केंद्र सरकारों की गलत-कल्पित और अदूरदर्शी नीतियों, विशेष रूप से 5 अगस्त को अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के बाद, के कारण, और कश्मीर की लगभग पूरी आबादी आज पूरी तरह से भारत से अलग और भारत के प्रति कटु शत्रुतापूर्ण है। परिणामस्वरूप, वियतनाम में जैसा हुआ, वैसा ही एक पूर्ण विकसित विद्रोह, जल्द ही उभरने के लिए बाध्य है, और फिर ताबूत वापस आना शुरू हो जाएंगे।“
शेर, मोर को मार सकता है, मच्छरों को नहीं A tiger can kill an antelope, it cannot kill a swarm of mosquitoes
सेना का जिक्र करते हुए जस्टिस काटजू ने लिखा
“एक सेना दूसरी सेना से लड़ सकती है, वह जनता से नहीं लड़ सकती। एक बाघ एक मृग को मार सकता है, यह मच्छरों के झुंड को नहीं मार सकता है। नेपोलियन ने रूस में यह महसूस किया (टॉलस्टॉय का युद्ध और शांति – War and peace पढ़ें), और वियतनाम में जनरल वेस्टमोरलैंड ने। “
उन्होंने आगे लिखा
“इसमें कोई संदेह नहीं है, कि हमारे पास कश्मीर में आधा मिलियन सैन्य और अर्धसैनिक बल हैं, लेकिन वे एक ऐसे दुश्मन से कैसे लड़ सकते हैं जो दिखाई नहीं देता, जो छाया में चलता है, जो कहीं नहीं है और हर जगह है? हमने एक ऐसी स्थिति बनाई है जिसमें बड़े पैमाने पर छापामार युद्ध उभरने के लिए बाध्य है, और गुरिल्ला को आश्चर्य का लाभ होता है, हिट-एंड-रन रणनीति का उपयोग करते हुए, और हमले के स्थान, समय और अवधि का निर्णय लेते हैं और उनके तेज गति से वापसी का भी।“
क्या होता है गुरिल्ला युद्ध What is guerrilla war
कश्मीर में गुरिल्ला युद्ध की परिस्थितियां क्यों उभर रही हैं, इसका कारण बताते हुए जस्टिस काटजू ने लिखा
“गुरिल्ला युद्ध एक क्रूर युद्ध है, जिसमें पारंपरिक युद्ध के नियमों का पालन नहीं किया जाता है। जैसे यह विकसित होता है, और जैसा कि कश्मीर में विकसित होने के लिए बाध्य है, अधिक से अधिक गैर-आतंकवादी उग्रवादी बन जाएंगे, जब एक गैर-आतंकवादी अपने निर्दोष रिश्तेदार या दोस्त को गोलीबारी में मरता हुआ देखता है, तो वह उत्तेजित हो जाता है और आतंकवादियों से जुड़ जाता है। इसलिए वर्तमान में केवल कुछ सौ कहा जाने वाले आतंकवादियों की संख्या का तेजी से बढ़ना अवश्यंभावी है। यह सब कहां खत्म होगा कोई कह नहीं सकता। लेकिन, एक बात निश्चित रूप से कही जा सकती है: हम कश्मीर में एक लंबी अंधेरी सुरंग में हैं।“
अपने ऐतिहासिक फैसलों के लिए प्रसिद्ध रहे जस्टिस मार्कंडेय काटजू 2011 में सुप्रीम कोर्ट से सेवानिवृत्त हुए उसके बाद वह प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया के चेयरमैन रहे। आजकल वह अमेरिका प्रवास पर कैलीफोर्निया में समय व्यतीत कर रहे हैं और सोशल मीडिया पर खासे सक्रिय हैं और भारत की समस्याओं पर खुलकर अपने विचार व्यक्त कर रहे हैं।
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