Hastakshep.com-देश-climate change-climate-change-ecosystem-ecosystem-Marine Life-marine-life-Octopus farming-octopus-farming-ऑक्टोपस की खेती-onkttops-kii-khetii-जलवायु परिवर्तन-jlvaayu-privrtn-प्लास्टिक-plaasttik-पारिस्थितिकी तंत्र-paaristhitikii-tntr-मछली-mchlii-समुद्री जीवन-smudrii-jiivn

जेनिफर जैक्वेट, न्यूयॉर्क विश्वविद्यालय के पर्यावरण अध्ययन विभाग में सहायक प्रोफेसर हैं और वैश्विक जलवायु सहयोग, जैसे कि जलवायु परिवर्तन और मछली पकड़ने और इंटरनेट वन्यजीव व्यापार के माध्यम से जंगली जानवरों का शोषण आदि में रुचि रखती हैं। उनकी टीम का कहना है कि दुनिया भर में तटवर्ती जल क्षेत्र में ऑक्टोपस फॉर्म (Plan for making octopus form in coastal water area) बनाने की योजना नैतिक रूप से अक्षम्य व पर्यावरणीय रूप से खतरनाक है। ऑक्टोपस की खेती (Octopus farming)  करने के लिए, उन्हें खिलाने के लिए बड़ी संख्या में मछलियों व घोंघा को पकड़ने की जरूरत होगी। इससे पारिस्थितिकी तंत्र गड़बड़ाएगा और धरती के समुद्री जीवन (Marine Life) पर दबाब बढ़ेगा, जो पहले से ही खतरे में है।

जेनिफर जैक्वेट की टीम (Jennifer Jacquet, Assistant Professor of Department of Environmental Studies; Affiliated Faculty Stern School of Business; Affiliated Faculty Center for Data Science) ने जो कहा है वो सिर्फ एक छोटा सा उदाहरण भर है कि किस तरह मनुष्य अपने क्षुद्र आर्थिक लाभ के लिए प्रकृति से छेड़छाड़ कर रहा है जिसके चलते दुनिया के पारिस्थितिकी तंत्र पर संकट छा रहा है। एक रिपोर्ट् में कहा गया है कि दस लाख प्रजातियां विलुप्त होने के कगार पर हैं।

Nature’s Dangerous Decline ‘Unprecedented’ Species Extinction Rates ‘Accelerating’

यूएन इंटरगवर्नमेंटल साइंस-पॉलिसी प्लेटफॉर्म ऑन बायोडायवर्सिटी एंड इकोसिस्टम सर्विसेज - Intergovernmental Science-Policy Platform on Biodiversity and Ecosystem Services (IPBES) ने जैव विविधता पर अपनी नवीनतम रिपोर्ट जारी की है। रिपोर्ट के अनुसार- प्रजातियों के विलुप्त होने की दर बढ़ रही है और लगभग दस लाख प्रजातियों के विलुप्त होने का खतरा है। यह अपनी तरह का सबसे व्यापक मूल्यांकन है। इस रिपोर्ट का सार विगत 29 अप्रैल से 4 मई तक पेरिस में चले आईपीबीईएस के सातवें सत्र में जारी किया गया।

आईपीबीईएस के अध्यक्ष, सर रॉबर्ट वाटसन (Sir Robert Tony Watson)

के मुताबिक

"पारिस्थितिकी तंत्र का स्वास्थ्य, जिस पर हम और अन्य सभी प्रजातियां निर्भर हैं, पहले से कहीं अधिक तेजी से बिगड़ रहा है। हम दुनिया भर में अपनी अर्थव्यवस्थाओं, आजीविका, खाद्य सुरक्षा, स्वास्थ्य और जीवन की गुणवत्ता की नींव को मिटा रहे हैं।”

रिपोर्ट हमें यह भी बताती है कि अभी भी पारिस्थितिकी तंत्र को बचाने के लिए कार्य करने में बहुत देर नहीं हुई है, लेकिन ऐसा केवल तभी संभव है जब हम स्थानीय से लेकर वैश्विक स्तर पर हर स्तर पर इसकी शुरुआत करेंगे। वाटसन कहते हैं कि अभी भी प्रकृति को संरक्षित व स्वस्थ किया जा सकता है।

जैव विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं पर IPBES की रिपोर्ट अब तक की सबसे व्यापक वैश्विक मूल्यांकन रिपोर्ट है। यह अपनी तरह की पहली अंतर सरकारी रिपोर्ट है और 2005 के ऐतिहासिक मिलेनियम इकोसिस्टम आकलन के आधार पर तैयार की गई है, जो सबूतों के मूल्यांकन के नए तरीके पेश करती है।

विगत तीन वर्षों में 50 देशों के 145 विशेषज्ञ लेखकों द्वारा संकलित, और 310 अन्य लेखकों के योगदान के साथ, रिपोर्ट में पिछले पांच दशकों में बदलाव का आकलन किया गया है, जो आर्थिक विकास मार्गों और प्रकृति पर उनके प्रभावों के बीच संबंधों की एक व्यापक तस्वीर प्रदान करता है। यह रिपोर्ट आने वाले दशकों के लिए संभावित परिदृश्यों की एक श्रृंखला प्रदान करती है।

Biodiversity and nature’s contributions to people

प्रो. सैंड्रा डिआज़ (अर्जेंटीना), जिन्होंने प्रो. जोसेफ सेटल (जर्मनी) और प्रो. एडुआर्डो एस. ब्रोंडीज़ियो (ब्राजील और यूएसए) के साथ मूल्यांकन की अध्यक्षता की, का कहना है कि

“जैव विविधता और प्रकृति का लोगों के लिए योगदान हमारी साझी विरासत है और और मानवता का सबसे महत्वपूर्ण जीवन-सहायक 'सुरक्षा जाल' है। लेकिन हमारा सेफ्टी नेट लगभग ब्रेकिंग पॉइंट तक पहुंच गया है।”

रिपोर्ट कहती है कि कुछ दशकों के भीतर ही लगभग एक मिलियन पशु और पौधों की प्रजातियों को अब विलुप्त होने का खतरा है, मानव इतिहास में ऐसा खतरा पहले कभी नहीं हुआ।

लगभग 15,000 वैज्ञानिक और सरकारी स्रोतों की व्यवस्थित समीक्षा के आधार पर तैयार यह रिपोर्ट देशज और स्थानीय समुदायों के ज्ञान पर विशेष रूप से स्वदेशी लोगों और स्थानीय समुदायों से संबंधित मुद्दों को संबोधित करती है।

रिपोर्ट के मुताबिक 1990 के बाद से थलचर प्रजातियों की उत्पत्ति में  20% की गिरावट आई है। 40% से अधिक उभयचर प्रजातियां खतरे में हैं जिनमें, लगभग 33% रीफ़-कोरल यानी समुद्री वन या प्रवाल शैल और एक तिहाई से अधिक सभी समुद्री स्तनपायी जीव शामिल हैं। हालांकि कीट प्रजातियों की तस्वीर कम स्पष्ट है, लेकिन उपलब्ध साक्ष्य 10% अस्थायी क्षति के अनुमान की गवाही देते हैं।

रिपोर्ट (IPBES Global Assessment Report on Biodiversity and Ecosystem Services) में खुलासा किया गया है कि 16 वीं शताब्दी से वर्ष 2016 तक कम से कम 680 कशेरुक प्रजातियां विलुप्त हो गईं। खाद्य और कृषि के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले स्तनधारियों की सभी घरेलू नस्लों की 9% से अधिक प्रजातियां 2016 तक विलुप्त हो गई थीं, और कम से कम 1,000 से अधिक नस्लों को अभी भी खतरा है।

प्रो. जोसेफ सेटल के मुताबिक पारिस्थितिकी तंत्र, प्रजातियां, जंगली आबादी, पालतू पौधों और जानवरों की स्थानीय किस्में और नस्लें सिकुड़ रही हैं, बिगड़ रही हैं या लुप्त हो रही हैं। धरती पर जीवन का आवश्यक अंतर्जाल छोटा होता जा रहा है और तेजी से कम हो रहा है। वह कहते हैं कि

"पारिस्थितिकी तंत्र को यह नुकसान सीधे-सीधे मानव गतिविधि का परिणाम है और दुनिया के सभी क्षेत्रों में मानव कल्याण के लिए सीधा खतरा है।"

रिपोर्ट की नीति प्रासंगिकता बढ़ाने के लिए इस अध्ययन के लेखकों ने उपलब्ध साक्ष्यों के गहन अध्ययन के आधार पर प्रकृति में परिवर्तन के पांच प्रत्यक्ष चालक अपराधियों की रैंकिंग की है। अवरोही क्रम में प्रकृति के ये पाँच प्रमुख अपराधी हैं -

(1) भूमि और समुद्री उपयोग में परिवर्तन;

(2) जीवों का प्रत्यक्ष शोषण;

(3) जलवायु परिवर्तन;

(4) प्रदूषण और

(5) आक्रामक अन्यदेशीय प्रजातियां।

रिपोर्ट में कहा गया है कि, 1980 के बाद से, ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन दोगुना हो गया है।

इस रिपोर्ट को पढ़कर कहा जा सकता है कि इसलिए जैव विविधता की क्षति न केवल एक पर्यावरणीय मुद्दा है, बल्कि एक विकासात्मक, आर्थिक, सुरक्षा, सामाजिक और नैतिक मुद्दा भी है।

यह रिपोर्ट एक और खतरनाक सूचना देती है कि दुनिया की एक तिहाई से अधिक भूमि की सतह और लगभग 75% मीठे पानी के संसाधन अब फसल या पशुधन उत्पादन के लिए समर्पित हैं। और 1970 के बाद से कृषि फसल उत्पादन का मूल्य लगभग 300% बढ़ा है।

रिपोर्ट बताती है कि मानव गतिविधियों के कारण समुद्री पर्यावरण में लगभग 66% बदलाव हुआ है। रिपोर्ट यह भी बताती है कि 55% से अधिक समुद्री क्षेत्र पर मछली पकड़ने वाले औद्योगिक समूहों का कब्जा है।

भूमि क्षरण के चलते 23% वैश्विक भूमि की सतह की उत्पादकता कम हो गई है।

1992 से शहरी क्षेत्र में दोगुने से अधिक का इजाफा हुआ है।

रिपोर्ट बताती है कि 1980 से प्लास्टिक प्रदूषण दस गुना बढ़ गया है। इतना ही नहीं औद्योगिक इकाइयों से सालाना 300-400 मिलियन टन भारी धातु, सॉल्वैंट्स, जहरीला कचरा और अन्य अपशिष्टों को दुनिया के जल में डाला जाता है।

तटीय पारिस्थितिक तंत्र में उर्वरकों ने 400 से अधिक महासागरीय डेड जोन बना दिए हैं, जो कुल मिलाकर 245,000 किमी है, जो यूनाइटेड किंगडम के क्षेत्र की तुलना में अधिक है।

Amalendu Upadhyaya hastakshep अमलेन्दु उपाध्याय लेखक वरिष्ठ पत्रकार, राजनैतिक विश्लेषक व टीवी पैनलिस्ट हैं। अमलेन्दु उपाध्याय लेखक वरिष्ठ पत्रकार, राजनैतिक विश्लेषक व टीवी पैनलिस्ट हैं।

इस सबके अलावा जो महत्वपूर्ण बात यह रिपोर्ट इंगित करती है वह है कि वैश्विक भूमि क्षेत्र का कम से कम एक चौथाई हिस्सा पारंपरिक रूप से आदिवासियों के स्वामित्व, प्रबंधन, उपयोग या कब्जे में है। इन क्षेत्रों में लगभग 35% क्षेत्र शामिल हैं जो औपचारिक रूप से संरक्षित हैं, और लगभग 35% शेष सभी स्थलीय क्षेत्रों में बहुत कम मानवीय हस्तक्षेप है।

यानी अगर ये दुनिया अभी तक बची हुई है तो इसमें दुनिया भर के आदिवासियों की अहम भूमिका है और अगर इस दुनिया पर कोई खतरा है तो वो तथाकथित विकास है जो जल, जंगल, जमीन और प्राणियों के लिए विनाश का कारण बन रहा है। आप समझ सकते हैं कि क्यों हमारे देश में भी विकास के नाम पर आदिवासियों को माओवादी ठहराया जा रहा है।

बहरहाल यह रिपोर्ट मुनाफे की पागल दौड़ में शरीक कॉरपोरेट्स के लिए भी चिंता का सबब होना चाहिए कि अगर ये दुनिया ही न रही तो मुनाफा किसके लिए ?

अमलेन्दु उपाध्याय

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार, राजनीतिक समीक्षक व टीवी पैनलिस्ट हैं।)

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