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ऑर्गन डोनेशन मंथ : किडनी रोग और डायलिसिस की समस्याओं पर लोगों को किया जागरूक. Organ donation month: made people aware on kidney disease and dialysis problems

गुरुग्राम, 22 अगस्त 2019. ऑर्गन डोनेशन मंथ (Organ donation month 2019) को ध्यान में रखते हुए, फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट, गुड़गांव (Fortis Memorial Research Institute, Gurgaon) ने अंग दान की जरूरत और महत्व (need and importance of organ donation) के बारे में जागरुकता अभियान का आयोजन किया। हिसार और आसपास के क्षेत्रों के मरीजों के किडनी प्रत्यारोपण (kidney transplant) के कुछ अनोखे मामलों को दिखाकर, फोर्टिस ने लोगों जागरूक किया।

About 90 thousand patients need kidney transplant every year in India

हर साल प्रति मिलियन लगभग 100 लोग किडनी की बीमारी से ग्रस्त होते हैं। भारत में प्रति वर्ष लगभग 90 हजार मरीजों को किडनी प्रत्यारोपण की जरूरत पड़ती है, जबकि किडनी की उप्लब्धता में कमी के कारण हर साल केवल 5000 प्रत्यारोपण ही संभव हो पाते हैं। इस भारी अंतर के कारण अधिकांश मरीजों को अपनी जान गंवानी पड़ती है। लोगों में अंग दान (कैडेवर डोनर या जिंदा डोनर) के बारे में जागरुकता की मदद से मृत्यु दर को कम किया जा सकता है।

More expense in dialysis than kidney transplant !

फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट, गुड़गांव में नेफ्रोलॉजी (Nephrology) और किडनी प्रत्यारोपण के निदेशक और एचओडी, डॉक्टर सलिल जैन ने बताया कि,

“बदलती जीवनशैली और डायबिटीज और हाई ब्लड प्रेशर के बढ़ते खतरों के कारण पिछले कुछ सालों से किडनी के रोगियों की संख्या में वृद्धि हुई है। इनमें से अधिकांश मरीज किडनी प्रत्यारोपण के इंतजार में डायलेसिस पर हैं और 3 में से 1 मरीज के परिवार में कोई डोनर उपलब्ध नहीं होता है। ब्रेन डेथ और अंग दान के बारे में जागरुकता से उपलब्धता और जरूरत के बीच के भारी अंतर को खत्म किया जा सकता है। जो मरीज डायलेसिस पर हैं उनकी

तुलना में उन मरीजों का जीवन बेहतर और लंबा होता है जो किडनी प्रत्यारोपण से गुजर रहे होते हैं। इसके अलावा किडनी प्रत्यारोपण की तुलना में डायलिसिस में खर्च भी ज्यादा लगता है।”

51 साल के सुरेश कुमार का भी मामला भी कुछ ऐसा ही था। यह मामला बहुत ही चुनौतीपूर्ण था। मरीज पिछले 4 साल से किडनी की समस्या का सामना कर रहा था, लेकिन उसे 4 महीने पहले ही डायलिसिस पर रखा गया था। उसकी पत्नी उसे अपनी किडनी दान करना चाहती थी, लेकिन ब्लड ग्रुप मैच नहीं होने के कारण वह अंग दान नहीं कर सकती थी। डॉक्टर जैन ने तब उन्हें स्वैप किडनी प्रत्यारोपण (Swap kidney transplant) के बारे में बताया, जो उन्होंने जुलाई 2019 में सफलतापूर्वक पूरा किया था। जब रोगी का रक्त दाता के साथ मेल नहीं खाता है, तो एबीओ - प्रत्यारोपण या स्वैप प्रत्यारोपण एकमात्र विकल्प है। किडनी प्रत्यारोपण के कई अन्य मरीज भी इस अवसर पर मौजूद थे।

फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट, गुड़गांव में यूरोलॉजी और किडनी प्रत्यारोपण के निदेशक और हेड, डॉक्टर प्रदीप बंसल ने बताया कि,

“आज के समय में किडनी प्रत्यारोपण की प्रक्रिया (Kidney transplant procedure) बहुत आसान हो गई है और अब इसमें होने वाली समस्याएं भी कम हो गई हैं। यह सब लैप्रोस्कोपी और रोबोटिक्स के इस्तेमाल से संभव हो सका है। इन एडवांस सर्जरी में पहले की तुलना में बहुत छोटा कट लगाना पड़ता है, जिससे सर्जरी के बाद रोगी को किसी प्रकार की समस्या नहीं होती है और वह जल्द ही अपने जीवन को सामान्य रूप से शुरू कर सकता है। इसके अलावा डोनर को भी कोई समस्या नहीं होती है और एक हफ्ते में ही दिन-प्रतिदिन की गतिविधियों को फिर से शुरू कर सकते हैं।”

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