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शमशाद इलाही शम्स

1 जून 2017 को विश्व राजनीति में 'सार्वभौम अमेरिकी हत्याकांड' के लिए याद किया जाना चाहिए. डोनाल्ड ट्रम्प ने इसी दिन पेरिस पर्यावरण संधि से अपने आप को अलग करने की घोषणा की थी. इस संधि पर निकारागुआ और सीरिया को छोड़ कर लगभग 200 देशों ने दस्तखत किये थे.

300 से अधिक कोरपोरेट समूहों ने अमेरिकी राष्ट्रपति और कांग्रेस को खुला पत्र लिख कर यह गुहार की थी कि अमेरिका इस संधि में बना रहे. इन्हें 280 से अधिक उन निवेशक कम्पनियों का समर्थन भी हासिल था, जिनकी कुल संपदा 17 ख़रब डालर के बराबर है. जाहिर है डोनाल्ड ट्रम्प ने पर्यावरण संधि से अलग होने की घोषणा कर ततईयों के छत्ते में हाथ डाल दिया है.

(पेरिस संधि को आखिर कोरपोरेट समर्थन मिलने के क्या कारण है? क्या धनपशु वर्ग में कोई जन प्रिय योजना उनके वर्ग हितों के विपरीत जन्म ले सकती है?, यह एक अलग विषय है)

आइए जानें, क्या है पेरिस जलवायु समझौता

संधि तोड़ने की जटिलताएं ऐसी है कि यदि अमेरिका इससे अलग होना ही चाहता है तब भी नवंबर 2020 से पहले इसे अमल में नहीं लाया जा सकता. जाहिर है इस अवधि से पूर्व मौजूदा राष्ट्रपति का कार्यकाल पूरा हो जायेगा और जो हालत डोनाल्ड ट्रम्प की है उसे देख कर नहीं लगता कि अमेरिकी जनता इस कोढ़ को दोबारा लपेटने के लिए तैयार है.

पेरिस पर्यावरण संधि (दिसंबर 2015) सयुंक्त राष्ट्र संघ के वर्षों चले प्रयासों का नतीजा थी, लाखों लोग यूरोप और अमेरिका की सडकों पर पर्यावरण को बचाने और अपनी-अपनी सरकारों को इस मुद्दे पर कुछ करने के लिए अमादा करने के लिए दशकों लम्बे संघर्ष का नतीजा थी. विश्व के बड़े देशों (अमेरिका, चीन सहित) ने बड़े मान मुनव्वल के बाद इस पर हस्ताक्षर किये थे, जिसे ट्रम्प की मूढ़ता ने (अमेरिका को संधि से अलग कर) दुनिया की साढ़े

सात अरब की आबादी के भविष्य पर प्रश्न चिह्न लगा कर कथित रूप से उत्तर कोरियाई नेता किम जोंग उन से भी बड़ा अपराध पूरी मानवता के प्रति किया है.

जलवायु परिवर्तन की वास्तविकता से कोसों दूर हैं डोनाल्ड ट्रम्प: ग्रीनपीस

उत्तर कोरिया अपनी आत्म रक्षा के लिए मिसाईल नहीं बना सकता, परमाणु बम नहीं बना सकता, लेकिन अमेरिका का राष्ट्रपति पर्यावरण जैसे संवेदनशील मुद्दे को बोगस बता कर करोड़ों इंसानों की जानों को खतरे में डाल सकता है.

उत्तर कोरिया को उसके कथित अपराधों के लिए उस पर व्यापारिक प्रतिबन्ध लगाकर पूरी दुनिया से काटा जा सकता है लेकिन क्या मजाल कि सयुंक्त राष्ट्र संघ में अमेरिका के खिलाफ इस मुद्दे पर एक आलोचना प्रस्ताव भी पारित हो जाए?

पूरी दुनिया के नेता अमेरिका के इस रुख को लम्बे होंठों के साथ शब्द कुचल-कुचल कर मिमियाते नज़र आ रहे हैं, अमेरिका के आपराधिक दुस्साहस पर आखिर बोले तो कौन बोले?      

अमेजन रीफ पर मंडरा रहा खतरा, और बढ़ा देगा जलवायु परिवर्तन के मुश्किलों को