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#एसिड_अटैक_पीड़ितों के लिये खोले गए #शीरोज़ पर भी भाजपा सरकार की बुरी नज़र

अजीत प्रताप सिंह

एक तरफ अखिलेश यादव जी लैपटॉप बांट कर देश की आने वाली पीढ़ी को अपने पैरों पर खड़े होने में मदद कर रहे हैं और दूसरी तरफ उनकी सहायता से अपने पैरों पर खड़ी #एसिड_अटैक_पीड़ितों के सम्मान और आत्मविश्वास का जरिया बना #शीरोज_हैंगआउट उनसे छीना जा रहा है। आप बताएं देश को किस तरह के लोगों की जरूरत है..."

 "##शर्मना #अक्षम्य #आपराधिक #एसिड_अटैक_पीड़ितों के लिये खोले गए #शीरोज़ पर भी सरकार की बुरी नज़र

Ajit Pratap Singhलखनऊ शहर के #गोमतीनगर इलाके में शिरोज़ हैंगआउट जिसे एसिड अटैक लड़कियों को आत्मनिर्भर बनाने की नीयत से संवेदनशील पूर्व मुख्यमंत्री श्री अखिलेश यादव द्वारा खोला गया था। लोगों ने इस जगह का दिल से स्वागत किया। चर्चायें, गोष्ठी और भी तमाम तरह के सांस्कृतिक कार्यक्रमों के लिए ये जगह मशहूर होने लगी। यहाँ पर काम करने वाली लड़कियां, जिनके चेहरे एसिड से जला दिए गए थे, उन चेहरों में मुस्कुराहट और आत्मविश्वास नज़र आने लगा। लेकिन अब शिरोज़ को #हटाया जा रहा है। आत्मविश्वास से भरी इन लड़कियों के चेहरे से मुस्कुराहट छीनी जा रही है।

इसलिए जरूरी है और मेरा अपने तमाम साथियों से अनुरोध है कि हम सब पार्टी लाइन छोड़कर, इंसानियत की लाइन पकड़ें, बहनों के लिये सड़क पर उतरे और शिरोज़ को बचाने की कोशिश करें...."

क्या है विवाद

नवभारत टाइम्स की ख़बर के मुताबिक

“यूपी महिला कल्याण निगम की ओर से यह कैफे अब लोटस हॉस्पिटैलिटी संस्था को आवंटित कर दिया गया है। ऐसे में शनिवार को वर्तमान संचालक संस्था छांव फाउंडेशन ने कल्याण निगम पर अपनी करीबी संस्था को फायदा पहुंचाने का आरोप लगाया है। संस्था का कहना है कि टेंडर खुलने से पहले ही लोटस संस्था के प्रतिनिधि कैफे आकर काम करने वाले सरवाइवर को

प्रलोभन दे रहे थे। ऐसे में सवाल उठता है जब टेंडर ही नहीं खुला था तो उन्हें कैसे पता था कि टेंडर उन्हें मिल रहा है।

शीरोज हैंगआउट आगरा में संचालित कैफे की तर्ज पर 2016 में खोला गया था। उस समय दो साल का कॉन्ट्रैक्ट छांव फाउंडेशन के साथ हुआ था। इसमें बारह सरवाइवर काम करती हैं, जिनका वेतन महिला कल्याण निगम की ओर से दिया जाता है। छांव फाउंडेशन के निदेशक आशीष शुक्ला का कहना है कि हम नॉन प्रॉफिटेबल संस्था हैं। इसलिए हमने पहले ही कह दिया था यह ड्राफ्ट हम जमा नहीं कर पाएंगे। इस पर वित्तीय पक्ष को बाद में तय करने को कहा गया था। टेंडर के फॉर्म में यह शर्तें थीं कि जिस संस्था ने एसिड अटैक सरवाइवर के साथ काम किया हो और जिसे उनकी सर्जरी आदि की जानकारी हो और उनका इलाज करने वाले हॉस्पिटल आदि से संपर्क हो। उसी संस्था को टेंडर दिया जाए। आरोप है कि शीरोज हैंगआउट को महिला कल्याण निगम ने एक कैंटीन की तरह ट्रीट किया, जबकि इसे पीड़ित महिलाओं के कल्याण के लिए खोला गया था।“

(लेखक समाजवादी पार्टी के नेता हैं।)

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