Hastakshep.com-देश-cancer in the lungs-cancer-in-the-lungs-Dr. V. P. Singh-dr-v-p-singh-Identification of lung cancer-identification-of-lung-cancer-Pulmonologist-pulmonologist-पटना के सवेरा कैंसर एंड मल्टीस्पेशियलिटी अस्पताल-pttnaa-ke-sveraa-kainsr-endd-mlttiispeshiylittii-asptaal-फेफड़े में कैंसर-phephdde-men-kainsr-फेफड़ा रोग विशेषज्ञ-phephddaa-rog-vishessjny-वायु प्रदूषण-vaayu-prduussnn

वायु प्रदूषण से फेफड़े में कैंसर का खतरा : डॉ. वी. पी. सिंह

The risk of cancer in the lungs due to air pollution: Dr. V. P. Singh

पटना, 22 दिसंबर। एक ओर जहां बिहार की राजधानी पटना और मुजफ्फरपुर में वायु प्रदूषण बढ़ रहा है, वहीं चिकित्सकों का कहना है कि वायु प्रदूषण के कारण फेफड़े में कैंसर का खतरा बना रहता है। चिकित्सकों का कहना है कि धूम्रपान फेफड़े के कैंसर की मुख्य वजह मानी जाती थी, लेकिन हाल के दिनों में यह बात भी सामने आई है कि फेफड़े के कैंसर के बढ़ते मामलों में प्रदूषित हवा की भूमिका भी बढ़ रही है।

पटना के सवेरा कैंसर एंड मल्टीस्पेशियलिटी अस्पताल के चिकित्सकों के मुताबिक, कैंसर धूम्रपान नहीं करने वाले लोगों को भी हो रहा है। यहां के चिकित्सकों की टीम ने मार्च, 2012 से जून, 2018 तक 150 से ज्यादा मरीजों का विश्लेषण किया, जिसमें पाया गया कि बिना धूम्रपान करने वाले व्यक्ति भी कैंसर के शिकार बन रहे हैं।

पटना के जाने-माने कैंसर सर्जन डॉ. वी़ पी़ सिंह ने सर्वेक्षण के आधार पर बताया कि इन मरीजों में तकरीबन 20 प्रतिशत मरीज ऐसे थे, जो धूम्रपान नहीं करते थे। 50 वर्ष से कम उम्र समूह में यह आंकड़ा तो 30 प्रतिशत तक पहुंचा। ये लोग धूम्रपान नहीं करते थे।

उन्होंने हालांकि कहा कि फेफड़ों से जुड़े कैंसर का सबसे बड़ा कारण धूम्रपान होता है। धूम्रपान से होने वाले इस आम कैंसर के बारे में तमाम जागरूकता अभियान चलाए जाते हैं, इसके बावजूद वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाइजेशन (डब्लूएचओ) की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 76 लाख से ज्यादा लोग हर साल इस बीमारी का शिकार होते हैं।

डॉ. सिंह ने कहा कि फेफड़े के कैंसर से धूम्रपान करने वाले ही नहीं, बल्कि धूम्रपान न करने वाले युवक-युवतियां भी जूझ रहे हैं और ऐसा बढ़ते वायु प्रदूषण के कारण हो रहा है।

उन्होंने कहा कि फेफड़े का

कैंसर खतरनाक बीमारी है और इसके निदान के बाद भी पांच साल तक जीवित रहने की उम्मीद कम ही होती है।

डॉ. सिंह ने कहा, "पारंपरिक ज्ञान यह कहता है कि फेफड़े के कैंसर का धूम्रपान मुख्य कारण है, लेकिन हाल के दिनों में हुए शोधों से पता चलता है कि फेफड़े के कैंसर के बढ़ते मामलों में प्रदूषित हवा की भूमिका बढ़ रही है।"

फेफड़े के कैंसर की पहचान

Identification of lung cancer

रोग के लक्षणों और बचने के तरीकों के बारे में उन्होंने कहा कि फेफड़े के कैंसर को आसानी से पहचाना जा सकता है। उन्होंने कहा कि छाती में दर्द, छोटी सांसें लेना और हमेशा कफ रहना, चेहरे और गर्दन पर सूजन, थकान, सिरदर्द, हड्डियों में दर्द तथा वजन कम होना इस बीमारी के मुख्य लक्षण हैं।

उन्होंने कहा कि किसी भी व्यक्ति को 'पैसिव स्मोकिंग' (सिगरेट के धुएं) से बचना चाहिए। उन्होंने लोगों को प्रतिदिन व्यायाम करने की सलाह देते हुए फल और सब्जियां खाने पर जोर दिया। उन्होंने लोगों से 'सेकेंड हैंड स्मोकिंग' से भी बचने की सलाह दी।

उल्लेखनीय है कि 21 दिसंबर को पटना का वायु गुणवत्ता सूचकांक 456 था।

दिल्ली स्थित जलवायु अनुसंधान कंपनी क्लाइमेट ट्रेंड्स ने एक रिपोर्ट जारी कर बताया था कि जलवायु परिवर्तन के दुष्परिणाम गरीबों को ज्यादा झेलने होते हैं और जलवायु परिवर्तन भारत में असमानता के अंतर को और बढ़ा देगा।

क्लाइमेट ट्रेंड्स की रिपोर्ट कहती है कि सरकारी आंकड़ों पर आधारित एक हालिया अध्ययन में कहा गया है कि तीव्र मौसम की घटनाओं के कारण भारत में प्रतिवर्ष लगभग 5600 लोग अथवा पांच व्यक्ति प्रति मिलियन लोग काल कवलित हो जाते हैं। भारत में कुल आकस्मिक मौतों की एक चौथाई आकस्मिक मौतें प्राकृतिक आपदाओं के कारण होती हैं। यह संख्या कम अनुमानित होने की संभावना है क्योंकि सूखे से हुई मौतें इसमें शामिल नहीं हैं, उदाहरण के लिए 2015-16 के भारतीय सूखे से लगभग 330 मिलियन लोग प्रभावित हुए।

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